आज हमारे राष्ट्र पिता की जयंती है । उन्होंने १४२ साल पहले गुजरात के पोरबंदर में जीवन की पहली सांस ली थी । तब से अब तक सार्वजानिक जीवन की गरिमा आसमान से गिर कर ज़मीन तक और रसातल तक पहुँच गयी है । अब राजनीति एक दूसरे के ऊपर कीचड फेंकने की प्रतियोगिता बनी हुई है। इस दौर में किसी का भी दामन साफ नहीं लगता भले ही कोई खुद कों बेदाग दिखाने की लाख कोशिश करे। कीचड इतना ज्यादा बिखरा है कि गंदगी दिल और दिमाग के कण कण में समाई है । बापू ने क्या कभी किसी के द्वारा लगाये गए आरोप का जवाब दिया था , क्या बापू ने कभी किसी पर लांछन लगाया था , क्या कभी किसी का दिल दुखाया था , क्या कभी किसी के ज़ख्म पर नमक डाला था ? उत्तर है नहीं , नहीं, नहीं, मगर आज बापू की समाधि पर फूल समर्पित करने वाले सभी नेता बापू के आदर्शों की बलि देने पर आमादा हैं और वे कीचड के थोक व्यापारी बने हुए हैं, ऐसे में बापू कों इस तरह याद करना केवल दिखावा हैं।
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