हम होंगे छः करोड़

हम होंगे छः करोड़

एक अनुमान के अनुसार अगले पंद्रह वर्ष में दिल्ली पूरे संसार में सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर बन जायेगा. दिल्ली में आज हम एक करोड़ सत्तर लाख , २०२५ के बाद हमारी तादाद बढ़कर ६ करोड़ ४१ लाख हो जाएगी यानि लगभग १५ वर्ष में वन इन टू फोर के बराबर हो जाएँगे. यह कोई गर्व की उपलब्धि नहीं हालाँकि मानव संसाधन और जन शक्ति बढ़ेगी मगर संसाधन और सुविधाएँ तो दम तोड़ देंगी. ऐसे में हम सही मानव संसाधन और जन शक्ति की उम्मीद नहीं कर सकते .
आज सुविधाओं का नगर दिल्ली २०२५ में समस्याओं और चुनौतियों का शहर दिखाई देगा. यह शहर अजीब दिखाई देगा, दमघोंटू माहौल दिखाई देगा. दिलदार दिल्ली की ऐसी दर्दनाक दास्ताँ की कल्पना करते ही दिल दहलने लगता है .
आबादी तो बढ़ेगी ही क्योंकि दिल्ली मिनी इण्डिया है , राष्ट्रीय राजधानी है. यहाँ किसी के आकर बसने की कोई रोक टोक नहीं . दिल्ली है दिलदार, यह ऐसी धर्मशाला जिसका नहीं कोई द्वार . २०२५ में दिल्ली में प्रति किलो मीटर आबादी का घनत्व होगा ४४ हज़ार होगा .
साढ़े छः करोड़ आबादी का शहर क्या मुसीबतों का कहर नहीं कहलायेगा ? कोई भी अपने घर अतिथि नहीं बुलाएगा. आज जब रिहायशी इकाईओं की कमी है तो उस समय क्या होगा ? आसमान छूने वाली इमारतों में फ्लैट बनाने के बावजूद कमी तो रहेगी. अंडर ग्राउंड कालोनियां होंगी, यमुना पर हेंगिंग फ्लैट बनेंगे और तब छः छः गज के आशियाने वाले को खुशकिस्मत मन जायेगा. पीने के पानी की कीमत प्रति दस ग्राम तय होगी जैसे की आज सोने की कीमत होती है. आक्सीजन पाउच में मिलेगी, महंगे से महंगे दाम . और आखिर बिजली २० हज़ार मेगा वाट कहाँ से आयेगी. मेट्रो और बसें आखिर कितनी सवारियां ढोएंगी. सड़कों पर कार तो क्या साईकिल चलाने के लिए भी खुर्दबीन लेकर जगह तलाशनी होगी. आखिर कहाँ कहाँ से सब्जियां और अनाज की आपूर्ति होगी ? सडकों पर भीड़ तो होगी मगर भीड़ को लक्ष्य दिखाई नहीं देगा.
बच्चों के खेल के मैदान बीते दिनों की बात बन जायेंगे क्योंकि उन पर तो कब्ज़ा करने वाले टूट पड़ेंगे . इसके आलावा कितने स्कूल खोल पायेगी सरकार ?
दिल्ली जहाँ आकर्षक है आज, क्या कल आकर्षण रहित हो जाएगी ? क्या ऐसे में लोग दिल्ली छोड़ कर भागेंगे और प्राकृतिक संतुलन का नियम प्रभावी होगा ? ऐसा निश्चित नहीं लगता क्योंकि जो दिल्ली मैं आता है कभी लौटकर नहीं जाता . फर्क बस इतना है कि आज हरेक पार्टी दिल्ली में सत्ता में आना चाहती है और जब हम छः करोड़ होंगे तब कोई भी पार्टी चुनाव जीतना नहीं चाहेगी. चुनौतियों के हिमालय से टकराने से अच्छा समझा जायेगा कि चुनाव में खुद ही हार जाएँ .

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