सड़क है या द्रौपदी

दिल्ली में सड़क की तुलना द्रौपदी से की जाये तो कुछ गलत नहीं होगा. सडक एक , रखवाले पांच
. कहिये कैसा लगा, सुनके. आपको जाना है रामलीला मैदान से इंदिरा गाँधी एअरपोर्ट, ऍम सी डी, एन डी एम् सी , पी दब्लेयू डी , एन एच ए आई और कब्जापति दिल्ली मेट्रो . कब्जापति का मतलब है फ़िलहाल सडक पर उसका कब्ज़ा है. पांच पति, पांच रखवाले, सड़क पर पांच तरह के हालात, पांच तरह की खूबियाँ, खामियां . कई हिस्से ऐसे कि लगता है जैसे नो मेंस लैंड हो और बिलकुल लावारिस. क्या इस तरह की सडक पर कोई नाज़ कर सकता है.
ये दिल्ली है मेरी जान. यह शहर है या कोई अजायबघर. भीड़ है तरह तरह के निकायों की. इसे ही तो बहु निकाय व्यवस्था कहते हैं . यानी काम एक, करने वाले अनेक और एक दूसरे को एक दूसरे के दायरे का पता नहीं , आपसी अधिकार पर जारी वार और वार प्रति वार . ऐ व्यवस्था तेरे अंजाम पर रोना आया. एक ही सड़क कहीं कुछ बोलती है तो कहीं कुछ और. कहीं फुटपाथ चौड़ा है तो कहीं संकरा, कहीं स्ट्रीट लाइट झुकी है तो कहीं ऊंची. कहीं सपाट है तो कहीं गढ़हों से भरपूर . इतना ही नहीं , अगर कोई सड़क बननी है तो उसका एक हिस्सा दस साल तक नहीं बना क्योंकि रास्ते का इलाका छावनी बोर्ड का है इसलिए प्रोजक्ट पूरा नहीं हो सकता. दिल्ली सरकार और कनतोंमेंट बोर्ड बरसों बैठकें करते रहे मगर जनकपुरी से धौला कुआँ के बीच कैंट के इलाके में विशेष सड़क नहीं बन सकी.
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दिल्ली में पुल बनना है तो न जाने कितने पुल लाघने पड़ते हैं, न जाने कितनी एजेंसियों से अनुमति लेनी होती है. एजेंसियां भी सभी लाजवाब. इनमें से कुछ को दिल्ली की शहरी कला देखनी है, किसी को ज़मीन के इस्तेमाल की वास्तविकता जांचनी है, किसी को ऊंचाई नापनी है कि हवाई मार्ग में रूकावट तो नहीं होगी, किसी को पेड़ों की ज़िम्मेदारी निभानी है और किसी को समाधियों में विश्राम कर रहे महापुरुषों की नींद में कोई खलल न हो यह सुनिश्चित करना है. एजेंसियां एक से बढ़ कर एक और सभी के दांत तीखे और नुकीले और सबसे बढ़ कर यहाँ की अदालतें. इन सबके मद्देनज़र पहले तो योजना मुश्किल से बन सकेगी और बन गई तो गति की दुर्गति हो जाने का अंदेशा बना रहता है .

यहाँ हर कदम पर स्पीड ब्रेकर हैं. एक दिल्ली नगर निगम है जिसका कदम ज़ोरदार मन जाता है मगर किसी पार्षद, विधायक या एम् पी के कहने पर आसानी से बदल जाता है. एक विधायक सड़क किनारे टॉयलेट बनवाता है तो दूसरा गिरवाता है . बहरहाल उसकी नगर नियोजन की नीति अड़होक रही है. एक है दिल दार एजेंसी यानि डी डी ए . फ्लैट के लिए पंजीकरण कराएँगे तो भरोसा नहीं कि आपकी तीसरी पीढ़ी को भी फ्लैट मिले . डी डी ए ने सचमुच कई पीढ़ियों का हिसाब किताब रखने के लिए रजिस्टर बना रखे हैं.

ज्यादा निकाय होने का फायदा मच्छर भी उठा रहे हैं. डेंगू का खतरा हुआ तो मच्छरों पर हमला हुआ. एक मच्छर आराम बाग़ से गोल मार्केट आ गया . एन डी एम् सी के कर्मचारी आये तो बोला मैं एम् सी डी का मच्छर हूँ. फिर वही रेलवे स्टेशन चला गया तो यह कर बच गया कि मैं एन डी एम् सी का हूँ . यानि जितनी एजेंसियां , उतनी मुसीबत.

1 टिप्पणियाँ:

sir ,
AApke har ek sabad me sachai hai par....
ye delhi hai.. mari delhi hamari delhi .......hum sabki delhi....humhe hi kuch karna huga....


kuch kadam tum chalo ,
kuch kadam hum badaye.
tabhi to desh aage badega..

 

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