आरोपों की बरसात

 दिल्ली में पिछले कई वर्षों से आरोपों के बादल छाये रहे। बादलों के साये में करप्शन के खिलाफ अन्ना के नेतृत्व में आंदोलन चला जिसने केवल दिल्ली नहीं अपितु समूचे संसार को हैरान कर दिया जिन्हें निशाना बनाया जा रहा था उन्हें परेशान कर दिया। आरोपों की खबरों को अखबारों के पहले पन्ने पर जगह मिली। अपने मार्गदर्शक की इच्छा के विपरीत आरोपों की जंग में मुखर रहे कप्तान ने आरोपों के बादलों के मंद प्रकाश के तले नयी पार्टी का गठन कर दिया। पार्टी बनाने के बाद बड़ी बड़ी हस्तियों पर जोर शोर से आरोप लगाये जाते रहे लेकिन हर सप्ताह एक और राजनेता को निशाना बना कर कथित रूप से सच्चे-पक्के आरोप लगाये गये। किसी एक और हस्ती पर आरोपों की बौछार की गयी तो पिछले सप्ताह के घोषित आरोपी को भुला कर उसका खाता बंद कर दिया गया। कथित गंभीर और मनोरंजक आरोपलीला के माहौल में पार्टी की चर्चा यत्र,तत्र,सर्वत्र हुई तो इसी आकर्षण में कई पत्रकार और सामाजिक वर्करों ने पार्टी का हाथ थामा। नयी पार्टी के नेताओं ने खुद को पाक साफ, ईमानदार, चरित्रवान होने का जोरदार दावा देश के सामने पेश किया।  दावे के दमखम पर पार्टी ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा और नतीजों ने सभी को स्तब्ध किया। 49 दिन की इस पार्टी की अल्पसंख्यक सरकार की ऑक्सीजन बंद किये जाने के बाद राजधानी ने एक साल तक राष्ट्रपति शासन देखा। इस बीच पार्टी के विधायक तोड़ने की कोशिशें खबरों में रहीं मगर किसी ने कोशिशों का सबूत देने का प्रयास नहीं किया।  पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी का भविष्य शून्य के लघु दायरे में कैद कर दिया और भगवा पार्टी को बस दो या तीन का सबक सिखाया। 2015 में फिर सरकार बनाने के बाद पार्टी ने पुराने आरोपों के संगीत की धुन पर नाचना बंद कर दिया। कुछ महीनों के बाद शायद  पार्टी ने सोचा कि क्यों न आरोपों का खेल इन हाउस खेला जाये। खेल शुरू हुआ तो कई साथियों को हफरा तफरी में बाहर का रास्ता दिखाया गया और पार्टी तथा सरकार के सर्वेसर्वा को कई लोगों ने तानाशाह कहा। आरोपों का खेल मंत्रीमंडल में खेला गया लेकिन पार्टी तथा सरकार में तेजी से सीढ़ियां चढ़ने वाले बर्खास्त मंत्री ने अपने कथित देवता पर आरोपों की मूसलाधार बरसात शुरू कर दी। ऐसा लगा कि वह पूरी हिम्मत और शिद्दत के साथ बेहद गंभीरता से आरोप लगा रहे हैं । वे आरोपों से भले ही सरकार के मुखिया का सीना छलनी नहीं कर सके परंतु उन्होंने करप्शन से लड़ने वाले सबसे बड़े योद्धा को मौन और निरुत्तर कर दिया। ईमानदारी के कथित देवता बचाव नहीं कर सके। बर्खास्त मंत्री रोज आरोपों की बरसात करते हुये गंभीरता की बलि दे बैठे। सरकार के मुखिया ने मौन रहते हुये अपने निवास पर लगातार जनता दरबार लगा साबित कर दिया कि वह अब शासन को चुस्त, दुरुस्त और तंदरुस्त करने में जुटे हैं। मौन में कितनी गंभीरता, ताकत होती है, समय बतायेगा।
मेट्रो की हेरिटेज लाइन


कहते हैं- देर आयद दुरुस्त आयद, जिसका काफी महीनों से था इंतजार, उसका जमीं के नीचे हो गया दीदार। जी हां शाहजहां के बसाये शाहजहांनाबाद में अब बने तहखानों में इस ऐतिहासिक शहर का दिल धड़का तो यूं लगा जैसे पुराने शहर को लगा 21वीं सदी का रौबदार तड़का। वक्त बदलता है, शहर आगे बढ़ता है, नयेपन का जादू चढ़ता है, जमाना चलता है। एसे में दिल्ली गेट से कश्मीरी गेट के बीच दिल्ली मेट्रो के अंडर ग्राउंड रूट का पर्दा हटना, ऐसा लगा कि जैसे पुराने शहर को ताजा तरीन महकती हवा और एक नायाब  तोहफा मिल गया हो। कहने को महज स्टेशन हैं चार मगर इससे फायदे हैं हजार। दिल्ली गेट, जामा मस्जिद, लाल किला और कश्मीरी गेट का जितना रिश्ता दिल्ली के एक करोड़ 87 लाख लोगों के साथ है उससे भी ज्यादा संबंध इतिहास और आजादी के संघर्ष के साथ भी है। इन स्टेशनों के पास से गुजरते और भीतर जाते ही आपको  पुरानी दिल्ली के धड़कते दिल और उसकी कहानी पर से पर्दा हटता महसूस होगा और आपकी नजरों के आगे इतिहास की घटनायें फिर जवान हो कर आपसे एकाकार करने लगेंगी। मेट्रो की हेरिटेज लाइन पर सफर करने के मायने होंगे कि आपने जाने अनजाने दिल्ली के कई सौ साल की हलचल को अपनी आंखों से पढ़ना, देखना और समझना शुरू कर दिया है। अतीत के गौरव और वर्तमान के सत्य तथा भविष्य के सपनों का तिरंगा आपके दिलो दिमाग पर लहरायेगा, दिल्ली की बीते दिनों की करवटों का आभास करायेगा और आपको सफर के झटकों के बगैर मेट्रो के टशन के लटकों के उल्लास से भी रूबरू करवायेगा। इस लाइन के खुल जाने से इतिहास का द्वार खुल गया है और दिल्ली दरबार के अलग थलग रहने वाले मुखिया को भी केन्द्र सरकार के एक अहम वजीर के साथ बैठकर राजधानी के हित में कुछ करने का मतलब समझ आया होगा। नयी हेरिटेज लाइन ने भूमिगत रास्ते से पुरानी दिल्ली की बादशाहत के मरकज लाल किले को नयी दिल्ली के मंडी हाउस तथा जनपथ और अब के राष्ट्राध्यक्ष के भवन एवं  दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ सीधे जोड़ दिया है। इसके अलावा कश्मीरी गेट स्टेशन पर तीन लाइनों का संगम और लाइन बदलने का बड़ा जंक्शन बना दिया है। अब शाहजहांनाबाद के बाजार गुलजार होंगे, सड़कों पर भीड़ कम होगी तो पर्यटक अधिक आयेंगे, स्मारकों के संरक्षण के काम की जरूरत महसूस की जायेगी और शाहजहां की दिल्ली बिना किसी रोक टोक के नये जमाने का आलिंगन कर नवाचार को अपनाते हुये गालिब और जफर के अशआर बार बार लगातार सुनायेगी।


दिल्ली, देश, दुनिया—सत पाल 06-06-2017
शहीद रविन्द्र कुमार
इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली में कई लोगों, संस्थाओं और नगर निगमों को स्वच्छता के क्षेत्र में काम करने और परिणाम दिखाने का जुनून चढ़ा हुआ है। कई सरकारी संगठनों और नगर निगमों पर अपना रैंक सुधारने या फिर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की प्रति दिन की फटकार के कारण अनूठा दबाव भी बना हुआ है। दबाव होता है तो तेजी से काम होता है और लक्ष्य हासिल करने की जिद्द भी बढ़ती है। जब किसी काम में दिवानगी सिर चढ़ कर बोले तो लगता है कि अब कुछ न कुछ बदलाव आने वाला है। सरकारी संगठनों में तो अक्सर काम और लक्ष्यों को ज्यादातर हलके में लिया जाता है और कठिन समय में भी कई लोग अपने अवकाश लेने या अकारण घर बैठ जाने से संकोच नहीं करते मगर पुलिस सेवा में ऐसा नहीं चलता, अवकाश लेना हो तो पहले मंजूरी लेना जरूरी होता है। न फर्लो चलती है और न ही मन मर्जी। अर्जी दी तो मानने या नहीं मानने की मर्जी बॉस की, कहते हैं अर्जी मेरी मर्जी उनकी। इन लोगों को तो गंभीर समय में अवकाश रद्द कर काम पर वापस बुला लिया जाता है। अगर हम किसी ऐसे आदमी की बात करें जिसे कुछ न कुछ करने का जुनून हो तो मानना होगा कि वह चट्टानों, तूफानों, आंधियों, परिणामों से नहीं डरता और अपने संकल्प में बाधा नहीं आने देता भले ही कितनी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़े। ऐसे ही एक आदमी का नाम था रविन्द्र कुमार जिसका मंत्र था- स्वच्छता परमो धर्म। इस ई रिक्शा चालक को यह बर्दाश्त नहीं था कि कोई आदमी देश की राजधानी में सड़क पर दीवार की तरफ खड़ा होकर ईज करता दिखाई  दे और खुले में दबाव भरा नित्य कर्म करता  दिखे। एक दिन सड़क पर दीवार की ओट में नंबर वन कर रहे दो लोगों को जब रविन्द्र कुमार ने रोका तो उसे शायद यह मालूम नहीं होगा कि उसकी आखिरी रात दस्तक दे रही है। उन बिगडैलों ने रात में रविन्द्र को पीट पीट कर यमराज के हवाले कर दिया मगर स्वच्छता के परवाने का जज्बा नहीं समझा। क्या हमें रविन्दंर को शहीद नहीं मानना चाहिये, क्या देश में सबसे उदार दिल्ली सरकार को उसके परिवार को दस करोड़ की अनुग्रह राशि नहीं देनी चाहिये। जब उदार सरकार दूसरे राज्यों के कथित शहीदों की झोलियां भर देती है तो रविन्द्र के लिये कैसी मजबूरी है। पी एम को भी रविन्द्र कुमार का जिक्र मन की बात कार्यक्रम में करना चाहिये और बिग बी को भी अपने अभियान में इस शहीद को नमन करना चाहिये। जज्मे को सलाम करो, न झुको न डरो।
पानी का दर्द
कर्नाटक के पावागाडा तालुक के निवासियों का जीवन मुसीबतों से भरा है क्योंकि उन्हें हर रोज आंध्र प्रदेश जा कर चिकन्नाडुका से पीने और दूसरी जरूरतों के लिये पानी भर कर लाना जरूरी होता है। दस किलोमीटर की इस यात्रा में उनका हमसफर होता है एक साइकिल और वहां पानी की लाइन में इंतजार का वक्त गुजारने का साथी होता है दर्द। उनका यही महज काम है क्योंकि और कुछ करने का उनके पास कोई समय ही नहीं बचता। हे भगवान,सब परेशान।
दो पहलू
आयरलैंड में भारतीय मूल के डाक्टर महाराष्ट्र के 38 साल के लियो वराडकर पी एम बने हैं। जब विदेशों में भारतीय मूल के किसी आदमी को ऐसा पद मिलता है तो हमें अच्छा लगता हैं। वराडकर स्व घोशित समलैंगिक हैं। उधर मलेशिया सरकार ने समलैंगिकता के विरोध में बेहतरीन वीडियो बनाने वाले को एक हजार डॉलर का इनाम देने का एलान किया है। समझा होते हैं न दो पहलू।
दिल्ली, देश, दुनिया---सत पाल 30-06-2017
दुरुस्त आयद
कहते हैं- देर आयद दुरुस्त आयद, जिसका काफी महीनों से था इंतजार, उसका जमीं के नीचे हो गया दीदार। जी हां शाहजहां के बसाये शाहजहांनाबाद में अब बने तहखानों में इस ऐतिहासिक शहर का दिल धड़का तो यूं लगा जैसे पुराने शहर को लगा 21वीं सदी का रौबदार तड़का। वक्त बदलता है, शहर आगे बढ़ता है, नयेपन का जादू चढ़ता है, जमाना चलता है। एसे में दिल्ली गेट से कश्मीरी गेट के बीच दिल्ली मेट्रो के अंडर ग्राउंड रूट का पर्दा हटना, ऐसा लगा कि जैसे पुराने शहर को ताजा तरीन महकती हवा और एक नायाब  तोहफा मिल गया हो। कहने को महज स्टेशन हैं चार मगर इससे फायदे हैं हजार। दिल्ली गेट, जामा मस्जिद, लाल किला और कश्मीरी गेट का जितना रिश्ता दिल्ली के एक करोड़ 87 लाख लोगों के साथ है उससे भी ज्यादा संबंध इतिहास और आजादी के संघर्ष के साथ भी है। इन स्टेशनों के पास से गुजरते और भीतर जाते ही आपको  पुरानी दिल्ली के धड़कते दिल और उसकी कहानी पर से पर्दा हटता महसूस होगा और आपकी नजरों के आगे इतिहास की घटनायें फिर जवान हो कर आपसे एकाकार करने लगेंगी। मेट्रो की हेरिटेज लाइन पर सफर करने के मायने होंगे कि आपने जाने अनजाने दिल्ली के कई सौ साल की हलचल को अपनी आंखों से पढ़ना, देखना और समझना शुरू कर दिया है। अतीत के गौरव और वर्तमान के सत्य तथा भविष्य के सपनों का तिरंगा आपके दिलो दिमाग पर लहरायेगा, दिल्ली की बीते दिनों की करवटों का आभास करायेगा और आपको सफर के झटकों के बगैर मेट्रो के टशन के लटकों के उल्लास से भी रूबरू करवायेगा। इस लाइन के खुल जाने से इतिहास का द्वार खुल गया है और दिल्ली दरबार के अलग थलग रहने वाले मुखिया को भी केन्द्र सरकार के एक अहम वजीर के साथ बैठकर राजधानी के हित में कुछ करने का मतलब समझ आया होगा। नयी हेरिटेज लाइन ने भूमिगत रास्ते से पुरानी दिल्ली की बादशाहत के मरकज लाल किले को नयी दिल्ली के मंडी हाउस तथा जनपथ और अब के राष्ट्राध्यक्ष के भवन एवं  दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ सीधे जोड़ दिया है। इसके अलावा कश्मीरी गेट स्टेशन पर तीन लाइनों का संगम और लाइन बदलने का बड़ा जंक्शन बना दिया है। अब शाहजहांनाबाद के बाजार गुलजार होंगे, सड़कों पर भीड़ कम होगी तो पर्यटक अधिक आयेंगे, स्मारकों के संरक्षण के काम की जरूरत महसूस की जायेगी और शाहजहां की दिल्ली बिना किसी रोक टोक के नये जमाने का आलिंगन कर नवाचार को अपनाते हुये गालिब और जफर के अशआर बार बार लगातार सुनायेगी।
सत्कर्म गये कहां
सत्कर्म ढूंढते रह जाओगे मगर हर शहर, हर डगर पर दास्तान ए दुष्कर्म सुनते, देखते रह जाओगे। कहीं दिल्ली की निर्भया के दर्द वाली दिल्ली, कभी रोहतक, कभी जेवर, कभी बुलंदशहर, कभी मुरथल , कभी बंगलौर क्या है यही है आज का सत्य और नया दौर। इस अंधी हवस और अंधी दौड़ को रोकना होगा वरना हमारा भविष्य दांव पर लगा होगा। कन्या पूजन करने वाला देश किस दिशा में जा रहा है, उत्तर की देश प्रतीक्षा कर रहा है।
क्रिकेट की ओवर डोज
आईपीएल के लगभग दो महीने के शोर शराबे के बाद अब पहली जून से 18 जून के बीच इंगलैंड में आठ देशों के बीच 15 वन डे मैचों कीच चैंपयिंस ट्रॉफी प्रतियोगिता शुरू हो रही है। भारत भी इसमें शामिल है। क्या बात है कि प्लेयर हमारे थकते नहीं हैं। कुछ तो करो रहम , किसी और खेल को भी दे दो सहारा तथा दम। हम 15 देशों के खेल के दीवाने बने हैं मगर 150 से अधिक देशों के खेल फुटबाल में अब भी जीरो हैं।