कुछ तो करो रहम

कुछ तो करो रहम ---
कुर्सी का मामला है, कुछ तो करो रहम . ममता है नाम जिसका , करने लगी सितम. अजी साहब, रेल चलाना कोई बच्चों का खेल नहीं होता. इतना बड़ा देश है , कहीं भी रेल टकराने का मतलब सिर बुरी तरह चकराने जैसा होता है. मैंने तो एक एक बूँद से सागर भरने की कोशिश की. दो, दो , पांच, पांच, दस, दस पैसे बढ़ाने की ईमानदार कोशिश की ताकि खजाने लबालब हो जाएँ लेकिन यह भी दीदी को रास नहीं आया. दीदी तो दीदी हैं , बड़ी नेता हैं तो ज़ाहिर है गुस्सा भी बड़ा और विकराल होगा. हमारी नेता हैं, कहने को समझदार, हर अखाड़े को नंदीग्राम बनाना चाहती हैं. उनके दिमाग में उबाल है, उछाल है, सवाल है, बवाल है मगर एक भी शंतिग्राम नहीं है. रेल का ज़िम्मा दिलवाया है तो मुझे त्रिवेदी से चतुर्वेदी बनने, आगे बढ़ने का वाजिब मौक़ा भी मिलना चाहिए. अगर मैं कुछ दमदार , वज़नदार हो जाऊँगा तो भी दीदी के लिए कोई खतरा नहीं बन सकता . मैं यकीन दिलाता हूँ कि आगे से मैं भी तत्कालीन रेल मंत्री अपनी दीदी की तरह कभी भी दुर्घटना स्थल पर नहीं जाऊँगा और महीने में कम से कम अट्ठाईस दिन कोलकाता में ही गुज़ारूंगा . यह भी यकीन दिलाता हूँ कि यह जो दो , दो , पांच , पांच पैसे बढ़ाये जा रहे हैं उससे भरे खजाने से पश्चिम बंगाल को आर्थिक पैकेज दिलवाऊंगा. आखिर मैं रेल भाड़ा बढ़ा कर पी एम् की गुड बुक्स में आ गया हूँ. पैकेज देने में वो मेरी बात ज़रूर मानेंगे. अपने दिल की एक बात मैं और कह रहा हूँ , मगर शर्त है कि आप इसे अपने भीतर रखना . बात यह है कि दीदी और पी एम् की नाम राशि तो एक है. पी एम् में मधुरता है , ममता है मगर दीदी में तो ज्वाला है, घर निकाला है . बहरहाल, कुछ तो करो रहम .