रेल पटरी पर दबंग

रेल की पटरी पर दबंग

दबगाई का क्रूर नज़ारा दिख रहा है रेल पटरियों पर . इन लोगों ने अब दूध की सप्लाई बंद करने की धमकी देकर मासूम बच्चों के मुंह से दूध छीन लेने की तैयारी कर ली है . इतना ही नहीं दबंग का एक नया पहलू यह है कि प्यासे के पास ही कुआँ चल कर आये . दबंग लोगों ने एक ऐसी घोषणा की है कि वह अपनी मांगों पर बातचीत करने के लिए न तो प्रदेश की राजधानी जायेंगे और न ही किसी नेता या अधिकारी के पास. अगर किसी ने बात करनी है तो वह उनके पास चल कर रेल पटरी पर ही आये . अपनी मांग पर जोर देने के लिए दबंग आन्दोलनकारियों ने रेल पटरी को अपना ठिकाना , आशियाना बना लिया है. इसी स्थान पर बनाया जा रहा है खाना और साथ की जगह बन गया है खुला पाखाना. ये लोग इस तरह रेल पटरियां खींच खींच कर उखाड़ फैंक रहे है जैसे ये पटरियां नहीं अपितु रावण की लंका में अशोक वाटिका में लगे पेड़ , पत्ते या फल हों.

लोकतंत्र में आन्दोलन करने की छूट है. अपनी बात रखने और मांग करने और उस पर जोर देने के लिए वाजिब तरीके अपनाने की परिपाटी है मगर आन्दोलन और धरने को adiyalpan और बेशर्मी की पराकाष्ठा में बदलने का किसी को भी हक नहीं है. हठधर्मी जब सीमाओं का उल्लंघन करने लगती है तो इसे घर , परिवार में भी बर्दाश्त नहीं किया जाता . हठ में जब कोई तस से मस नहीं होता तो टकराव टाला नहीं जा सकता . ऐसे में हठधर्मियों को नुकसान का सामना करना पड़ता है. लोकतंत्र में अनशन , आन्दोलन करने का अचूक अस्त्र हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने दिया था . ऐसे आंदोलनों में शांति बनाये रखने और सुलह सफाई से हल निकालने के लिए बातचीत की हमेशा गुंजाईश बनी रहती थी. ऐसे आंदोलनों में न तो हठधर्मी के अंश हुआ करते थे और न ही बेशर्मी के .

रेल पटरी पर डटे दमंगों के इरादे हो सकता हैं अपने समुदाय के लिए अच्छे हों मगर उनके व्यव्हार से तो बेवजह राजस्थान बदनाम हो रहा है . ऐसे आन्दोलनकारियों के पास लोगों के निर्बाध आवागमन के संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन का क्या हक है . रेल पटरी पर कड़ाके की सर्दी में अलाव जलाकर बुजुर्गों की पिकनिक , दर्जनों गाड़ियों के हजारों मुसाफिरों को ठण्ड के दिनों में रास्ते में अटके हुए भूख से परेशानी , कई यात्रियों की इस वजह से इंटर वियु की तरीख निकल जाने तथा ट्रेन और विमान मिस होने, रेल पटरियों को उखाड़ देने, अटके बीमार यात्रियों के दम तोड़ जाने और अहंकार के नशे में आन्दोलनकारियों की बेहूदी हरकतों को किस पैमाने पर लोकतान्त्रिक कहा जा सकता है ? बेशर्मी और हठधर्मिता की यह हवा कहीं दूसरे राज्यों और शहरों तक पहुंचे इससे पहले इस पर समुचित और संवैधानिक तरीके से लगाम लगाया जाना ज़रूरी है.

पेड़ है कि बोलता नहीं

पेड़ है कि बोलता नहीं

पेड़ है सचमुच बोल नहीं सकता, चुपचाप शहरीकरण की मार सहता है,कटता है,छंटता है,घटता है क्योंकि उसकी जुबान नहीं है. तभी तो हाई कोर्ट को पेड़ की जुबान बनना पड़ता है,उसके दुःख दर्द को कहना पड़ता है. पेड़ बेजुबान है मगर बेदर्द नहीं बल्कि वह तो मेहरबान है, न किसी से कुछ मांगता है और न ही कोई उम्मीद करता है. अपना खाना खुद बनाता है और इन्सान को ताज़ा हवा,फल और फूल भी देता है. इसकी हरियाली और दरयादिली दोनों लाजवाब हैं. हाई कोर्ट ने कहा कि पेड़ों के आसपास लगाया गया कंक्रीट हटाया जाये क्योंकि पेड़ों को फैलने ,बड़ा होने और अंगड़ाई लेने में दिक्कतें आती हैं. हाई कोर्ट ने इस मामले में एम् सी डी और एन डी एम् सी से एक्शन लेने को कहा है. यह तो सच है कि पेड़ों को सांस लेने में भी तकलीफ होती है. हमें उन पेड़ों की सांस पर रोक लगाने का क्या हक है जो हमें मुफ्त यानि बिलकुल मुफ्त बेइंतहा आक्सीजन देते हैं. हमें उसकी ज़िन्दगी लेने का क्या हक है जी हमें ज़िन्दगी , लम्बी उम्र का वरदान देते हैं. मगर इस कंक्रीट के जंगलवाले शहर से कंक्रीट हटाना कितना आसान होगा यह कहा नहीं जा सकता.

दिल्ली का जैसे जैसे विस्तार हुआ वैसे वैसे पेड़ों का संहार हुआ, पेड़ों पर वार हुआ, प्रहार हुआ और पेड़ सिमट कर रह गए. डवलपमेंट के लिए पेड़ों पर कुल्हाड़ियाँ पड़ती गई और पेड़ों की दुनिया सिमटती गई. कहते हैं जंगल का कानून ,यानि खून के बदले खून, जंगल से ज्यादा सभ्यता में चलता है. आदमी का खून करने पर मिलती मौत की सजा, पेड़ का क़त्ल करने पर बच निकलता है . इसके मद्देनज़र दिल्ली सरकार ने डवलपमेंट के लिए काटे जाने वाले एक पेड़ के बदले दस पेड़ लगाये जाने का कानून बनाया है . इसके अलावा अब पेड़ काटे जाने की मंज़ूरी की अर्जी देने पर जमा किये जाने वाली रकम भी २८ गुना कर दी गयी है . अब तो ऐसी हालत हो गई है कि पेड़ काटा तो मुसीबत आई . पेड़ काटने के बाद हुए नुकसान को पूरा करने के लिए पेड़ लगाने की भी ज़िम्मेदारी तय की गई है. यह नए नियम तो इंसानियत और कुदरत के हक में है. इन नियमों को सख्ती से लागू करने में ही सब की भलाई है. जैसे हमें जीने का हक है वैसा ही हक पेड़ों को भी मिले. बेजुबान पेड़ों की कौन जुबान बनना चाहेगा. ज़रुरत इस बात की है कि हम इन पेड़ों की जुबान और रखवाले भी बनें.

एस एम् एस का संसार

एस एम् एस का संसार
वक़्त के साथ ज़माना बदलता है, कई बार तो ज़माना वक़्त से आगे चलता है . वक़्त के साथ बदलने में ही भलाई है क्योंकि अगर आप नहीं बदल पाते तो पिछड़ जाते हैं. कभी बधाई देने के लिए खुद जा कर मिलने, चिट्ठियां और कार्ड डालने और फोन करने का सिलसिला चला करता था लेकिन अब इसकी जगह एस एम् एस ने ले ली है और आज का संसार एस एम् एस का संसार बन गया है. कहने को इसे शार्ट मैसेज सर्विस कहा जाता है मगर यह तो कई जगह सीक्रेट मैसेज सर्विस बन कर रह गई है और इसके तहत एक आदमी के दिल की आवाज़ सीधे उस आदमी के दिल तक जा पहुंचती है जिसे वह भेजना चाहता है और दोनों यानि मैसेज भेजने वाला और मैसेज पाने वाला इसे तुरंत डिलीट कर देते हैं. कई बार मैसेज भले ही डिलीट कर दिए जाएं मगर भेजे गए मैसेज दिल पर असर छोड़ जाते हैं और ऐसे मैसेज से ज़िन्दगी की शुरुआत भी हो जाती है. न्यू ईयर , दीवाली और कई दूसरे त्योहारों पर तो एस एम् एस करने वालों में होड़ लग जाती है. थोक में एस एम् एस भेजे जाते हैं औए मोबाइल लाईनों पर कंजेशन हो जाता है. कई मैसेज इस कंजेशन में अटक और भटक जाते हैं और मैसेज नहीं भेजने वाले दोस्तों के लिए बहाना बन जाता है कि उन्हों ने मैसेज तो भेजा था पता नहीं क्यों नहीं मिला . ऐसे मौकों पर एस एम् एस करना महज़ फार्मेलिटी ही बन गया है. भले ही दिल में मैसेज करने की तमन्ना हो या नहीं हो मगर अपनी हाजिरी रजिस्टर कराने के लिए ऐसा करना ज़रूरी बन जाता है. यूँ तो लोग मोबाइल फोन पर मिस्ड काल दे कर भी अपनी मौजूदगी रजिस्टर करवाते हैं मगर मिस्ड काल से बेहतर तो एस एम् एस माना जाता है .

एस एम् एस का मतलब बन गया है सस्ती मेमोरी सर्विस मगर एक पैसा या ५ पैसे में एस एम् एस सेवा देने का दावा करनेवाली मोबाइल कम्पनियां भी न्यू ईयर और दीवाली जैसे मौकों पर अपने रेट बढ़ा कर तीन रुपये का एक एस एम् एस कर देती हैं मगर ऐसा करने से इन कंपनियों के कमर्शियल रवय्ये का तो पता चलता है लेकिन एस एम् एस का तूफ़ान रुकता नहीं है और लोग बढ़ाये गए रेट की परवाह किये बगैर अंधाधुंध एस एम् एस करते रहते हैं. जब दिल की बात दिल तक पहुंचानी हो तो फिर बढ़ाये गए रेट दीवार नहीं बन सकते. एस एम् एस कोई दीवार नहीं बल्कि एक दिल से दूसरे दिल तक पहुँचाने का मज़बूत पुल है. एस एम् एस का चलन इतना बढ़ गया है कि अब बिजली कम्पनियाँ, रेलवे , स्कूल , कालेज , सिनेमाघर आदि अपनी सूचना देने के लिए एस एम् एस का इस्तेमाल करते हैं. आज व्यापर में एस एम् एस मददगार बन गया है. रियल एस्टेट वाली कम्पनियां तो अपने प्रोजेक्ट के बारे में दिन में दस दस बार एस एम् एस कर के नाक में दम कर देती हैं. टी वी पर रियल्टी शो और कई क्विज़ का जवाब देने के लिए एस एम् एस से ये कम्पनियां कमाई करती हैं क्योंकि ऐसे एस एम् एस का रेट ६ रुपये होता है जिसमें से ज़्यादातर रकम उस कंपनी को मिलती है जिसका शो या क्विज़ होता है. न्यूज पेपर और मीडिया भी लोगों से राय लेने के लिए ऐसे महंगे एस एम् एस का सहारा लेते हैं कुछ भी हो एस एम् एस ने लव बर्ड्स यानि इश्क करने वालों को एक नयी उड़ान दी है. उनका प्यार का संसार एस एम् एस पर मयस्सर हो गया है. इश्क करने वालों की उंगलियाँ मोबाइल पर इतनी तेज़ी से मीठे मीठे मैसेज टाईप करती हैं . इतना ही नहीं उन आशिकों ने एस एम् एस की नयी भाषा, नया व्याकरण और नए संकेत इजाद किये हैं जो हमारे लिटरेचर का हिस्सा बनते जा रहे हैं . इसका नमूना कुछ ऐसे अख़बारों में दिखता है जो लव बर्ड्स को अपने अख़बार के ज़रिये मैसेज देने का मौक़ा देते हैं.

क्या क्या कामन

हमारी दिल्ली में आखिरकार कामनवेल्थ गेम्स का आगाज़ हो गया . बेहद मीन मेख, नुक्ता चीनीं , तल्खियों के बाद खुशनुमा रंगीनियों के साथ गेम्स की धमाकेदार शुरुआत हुई. बहुत शोर शराबा था आशंकाओं का मगर गेम्स की शुरुआत के साथ सब कुछ ठीक ठाक हो गया . शको शुबा के बीच अनहोनी होने की ज़ोरदार चर्चा बनी हुई थी मगर जब गेम्स शुरू हुए तो तमाम अफवाहें , तमाम निराशाएं काफूर हो गयीं . बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल के , जो चीरा तो कतरा ए खून निकला. जब गेम्स शरू हुए तो रत्ती भर भी नाकामी दिखाई नहीं दी . गेम्स के रास्ते में स्पीड ब्रेकर लगाने के लिए न जाने कितनी नामी गिरामी हस्तियों ने अपने दांव पेंच लगाये मगर वही हुआ जो होना था . गेम्स शुरू होते ही सब हस्तियों की खुदगर्जी भरे अहमियत हासिल करने के खेलों का अंत हो गया . हुआ वही जो ऊपर वाले को मंज़ूर था . यानी वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है --यह साबित हो गया .

कुछ भी हो दिल्ली की किस्मत में खेलों की मेजबानी आने से दिल्ली की तकदीर ही बदल गयी . दिल्ली तो नई दिल्ली से नई नकोर दिल्ली बन गयी . सज गई , संवर गई , निखर गई दिल्ली सचमुच हरेक के दिलो दिमाग मैं उतर गई . हरेक खिलाड़ी और टूरिस्ट के दिल मे बस गई . दिल्ली में इतना ज्यादा निर्माण का काम हुआ कि यह शहर दुनिया के बेहतरीन शहरों की कतार में बहुत आगे पहुँच गया. यहाँ की लाजवाब हरियाली, सुन्दरता और खुशहाली की कहानी कहती है . दिल्ली में बने फ्लाई ओवर , स्टेडियम ,सड़कें,मेट्रो , नया हवाई अड्डा ,अंडर पास , फुट ओवर ब्रिज , नई नई बसें --ये सब तो दिल्ली की कामन वेल्थ यानि साझा दौलत बन गई है. कामन वेल्थ ने इन तमाम सुविधाओं को हरेक आम और ख़ास के लिए कामन बना दिया है . कहते हैं कि अगर दिल्ली को कामनवेल्थ गेम्स नहीं मिले होते तो दिल्ली को इतनी तरक्की का मौक़ा नहीं मिलता और न ही हमें 'कामन ' महसूस करने का अहसास होता . दिल्ली का तमाम बुनयादी ढांचा कामन हो गया है, सभी को दिल्ली के अपनेपन का अहसास हुआ है, सभी दिल्ली को और कामन वेल्थ गेम्स को अपनी आन, बान, शान , पहचान के साथ जुड़ा हुआ मान रहे हैं.


ये तो सच है कि दिल्ली में अब सब कुछ कामन दिखाई देता है मगर इस महानगर में एक करोड़ सत्तर लाख लोगों की भीड़ में सब कुछ कामन होने के बावजूद किसी के भी सुख दुःख कामन नहीं हैं. हरेक आदमी अपनी ख़ुशी में और अपनी गमी में खुद ही ऐसे पल गुजारने को मजबूर होता है . ये बात अलग है कि कुछ लोग रस्मी तौर पर चंद मिनट के लिए ' दो शब्द ' बोल कर अपनी 'सिम्पथी ' या बाहरी ख़ुशी का अहसास कराते हैं लेकिन उसके बाद प्रभावित आदमी को हालत से जूझने और खुद को ' नार्मल' बनाने के लिए ' तन्हा ' छोड़ देते हैं. ऐसा बर्ताव फॅमिली से बाहर के लोग ही नहीं करते बल्कि अपने भाई बहन और अपनी औलाद भी करती है.

इस महानगर में अब यह सचमुच सही लगता है --जिस तन लागे सो तन जाने, बाकी सब तो बने बेगाने . इन अजनबियों कि भीड़ में भी आदमी कुछ अपनों की तलाश करता है मगर वह अपनी कोशिश में बुरी तरह टूट जाता है . तब उसके लिए दिवाली की जगमग भी अंधकार लगती है और ईद की ख़ुशी में भी वीरानी दिखाई देती है . दिल्ली महानगर अनूठा है . यहाँ कोई किसी को अपना नहीं मान सकता . ऐसे माहौल में सुख दुःख कैसे कामन हो सकते हैं. अब न कोई 'रीयल' दोस्ती दिखाई देती है और न ही कोई 'रीयल' रिश्तेदारी. अब रिश्तों की बुनियाद भावनाएं नहीं दौलत बनती जा रही है. भले ही 'कामनवेल्थ' का जोश कामन बन गया हो मगर दिल्ली में सुख दुःख 'कामं' होने का सपना अब शायद ही कभी पूरा हो सके.

परहेज़

तुम चले आओ किसी बहाने से . मुझे परहेज़ है बुलाने से .

कामनवेल्थ गेम्स , खेल तमाशा नहीं

हमारी दिल्ली कामनवेल्थ गेम्स की मेजबानी को तैयार है . इस स्थिति तक पहुँचने में आयीं बाधाएं हज़ार, मगर आज हम हैं पूरी तरह तैयार. ये गेम्स दिल्ली और देश की इजज़त से जुड़े हैं. अगर खेल कामयाब हुए तो दिल्ली और देश का नाम रोशन होगा वरना हम उसी तरह एक दूसरे को अपमानित करने का खेल खेलते रहेंगे जो पिछले कुछ सालों में जारी रहा. बहरहाल किसी भी तरह हम इस मुकाम पर पहुँच गए हैं कि खेल का आयोजन करें, इसे वक़्त हमें मिल जुल कर जुट कर इन खेलों की कामयाबी के लिए काम करना होगा . अब वक़्त नहीं कि किसी नेता की या किसी एजेंसी की नुक्ता चीनी की जाये. ऐसे अवसर बार बार नहीं आते कि देश के मान सम्मान को बुलंदी पर ले जाया जा सके. हमें इस मौके का भरपूर फायदा उठाना है और देश को संसार की नज़रों में शानदार बनाना है. खेलों से दिल्ली और देश का रुतबा बढ़ रहा है. दिल्ली में अनूठा विकास हुआ है . इस का फायदा समस्त दिल्लीवासियों को आगे भी मिलता रहेगा. ये वक़्त ऐसा है कि मीडिया भी अनुकूल दृष्टिकोण अपनाये. ये वक़्त रास्ते रोकने या फिर दूध पानी बंद करने या फिर अपनी मांगे मनवाने के लिए दबाव डालने का नहीं है. ऐसा करने वाले समझ जाएँ, अपनी ऐसी करतूतों से बाज़ आयें. उन्होंने अगर ऐसा किया तो इतिहास उन्हें माफ़ नहीं करेगा , देश उन पर कभी विश्वास नहीं करेगा. खेल होने दिए जाए, कोई खेल तमाशा नहीं होना चाहिए . समझ लें ये मणि और एक विशेष जात, सन्देश ये है बेहद साफ़. आमीन

फिट है बॉस

फिट है बॉस

अजब क्रिकेट की गज़ब कहानी , जीत गए तो जोश ए जवानी , हार गए तो बंद हुक्का पानी . हमारी क्रिकेट की टीम आई पी एल के लिए और विज्ञापन के लिए हरदम, दिन रात , लगातार फिट रहती है. या यूँ कहिये --फिट है बॉस --मगर दूसरे देशों के साथ मुकाबलों में कई बार या यूँ कहिये कि अक्सर पिट जाती है . जब कोई हिट टीम पिट जाती है तो वह अनफिट हो जाती है . अगर यही अनफिट टीम तीर तुक्के से जीत जाए तो फिट. फिट और अनफिट के बीच बहुत महीन न दिखने वाली लकीर होती है. ये क्रिकेट है जनाब इसे अनिश्तित्ता का खेल कहते हैं. इसमें हर गेंद पर कुछ भी हो सकता है. एक गेंद मुकद्दर बना सकती है तो वही एक गेंद तम्बू उखाड़ फेंकती है. यहाँ गेंद, गेंद की महिमा है , यहाँ गेंद ,गेंद की माया है. कोई लौट पविलियन आया है , किसी ने सिक्स लगाया है .

कुछ भी हो क्रिकेट के लिए जो दीवानगी है उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती. क्रिकेट मैं अलग अलग तरह के रंग हैं. क्रिकेट मैं नशा है , जोश है, शबाब है, शराब है, हेरा फेरी बेहिसाब है, शौहरत है, मोहब्बत है, याराना है , हर रोज़ नया फ़साना है , इश्क है प्यार है, बेवजह तकरार है. कहते हैं कि क्रिकेट का खिलाडी होता होशियार है. इतना होशियार कि जब चाहे वह ज़ख़्मी हो जाए , जब चाहे सोए , जब चाहे जग जाए. उसका सोना , रोना, हँसना , थप्पड़ लगाना और थप्पड़ खाना भी खबर बनता है . क्रिकेट का खिलाडी सही मायने मैं खिलाडी होता है. वह टिकता भी है और फिक्सिंग के दौरान बिकता भी है. बहरहाल हमारी टीम के कई खिलाडी अनफिट करार दिए गए . कोई बात नहीं हमारे देश में न जाने कितने ओहदों पर अनफिट लोग बैठे हैं फिर भी देश दौड़ रहा है. खिलाडी अगर अनफिट हुए तो क्या हुआ वह बल्ला और गेंद तो पकड़ सकता है. बल्ला चलाएंगे या फिर गेंद फेंकेंगे गेंद कहीं न कहीं तो जाएगी आखिर दूसरी टीम के लोग उसे संभाल लेंगे .

अगर क्रिकेट में खिलाडी अनफिट है तो क्या हुआ रेल चलाने वाले, प्लेन चलाने वाले और तो और देश चलाने वाले भी अक्सर सब कुछ ऊपर वाले यानी भगवान भरोसे छोड़ देते हैं क्योंकि उन्हें यह अहसास है कि वे पूरी तरह फिट नहीं हैं यानी अनफिट हैं. हम अनफिट हुए तो अनाड़ी तो नहीं , हम ने देश की सूरत बिगाड़ी तो नहीं. मेडिकल टेस्ट में भी आदमी कई बार अनफिट होने के बाद फिट होता है. कोई बात नहीं क्रिकेट के खिलाडी भी हारते , गिरते, पिटते , दबते एक न एक दिन फिट हो जायेंगे और फिर वही मुकद्दर के सिकंदर कहलायेंगे.

लिव इन रिलेशनशिप अंग्रेजी में

LIVE IN RELATIONSHIP--------------SAT PAL







There has been 60 percent increase in number of live- in relationship cases in India since 2004. The trend, no doubt, indicates a significant shift in our social behavior as well as institution of marriage in the country despite the long-standing belief that marriages are arranged in heaven though solemnized on earth.



Recently the Hon’ble Supreme Court opined that two persons living together without marriage couldn’t be construed as an offence. Further no law prohibits live- in relationship and pre martial sex. Article 21 of the Indian Constitution provides a right to life and liberty as a Fundamental Right. It has become clear that two adults may be male or female or male and female can have a live- in relationship in case they have similar likings, vibes, wavelength and an outlook towards life. It is a matter of liking per se and no body can deny them of their right to life as guaranteed by the Constitution. It may be noted that the Courts have been becoming liberal as far as interpretation of law is considered. The ruling of Hon’ble High Court of Delhi in respect of section 377 IPC could be understood in the changing attitude and personal commitments. The youth is not at all bound to accede to the diktat of their families as they have adopted a new life style and proved their non-dependence on their elders. They want to live as per their liking. Moreover this sort of live- in relationship is like an unwritten agreement which cant be a matter of any dispute as they can live together as long as they feel comfortable with each other. In today’s world all those single can mingle and get to know each other’s compatibility. They can freely decide their terms and conditions mutually. They can even break up at their convenience. The live in relationship is like any political alliance that takes place without any thing in black white and exists till both parties continue to feel that another party is not overlooking their interests. The breakup in live- in relationship results in no encumbrances and liabilities after the break though the National Commission for Women has been stressing upon the need of change in the definition of wife as defined in section 125 IPC which deals with maintenance. The commission has also been demanding inclusion of women involved in a live-in relationship in above stated definition. Apart from this the long-term relationships are being stated to be valid to claim alimony.



There are a few social network sites to facilitate selection of a partner for a live-in relationship. In some cases the partners under a live-in relationship are left with no choice but to conceal their relation to find a house or an apartment on rent. In some cases it has been observed that such a relationship is taken as a test to decide compatibility and go for a marriage in case every thing goes well. Eyebrows are also being raised on the aspect of an adverse effect on morality due to live-in relationship. It is also being stated that such relationships were in existence in the past as in mythological reference a live in relationship between Radha and Krishna is being taken in high esteem by the devotees till today. Anyhow, the increase in the cases of live in relationship will bring down number of cases related to the family law as more and more persons will mutually opt for such relationship and decide to breakup without knocking at the doors of the judiciary. Let us watch this social change and wait to analyze the pros and cons of this new trend. Aamin!

SAT PAL , N-224, GF, GK Part I , New Delhi-110048. Mobile 9818495500,spvpd@yahoo.co.in





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चूहे का रिसेप्शन

चूहे का रिसेप्शन

खबर गर्म है कि दिल्ली में बल्लीमारान के चूहे चूं चूं की बदरपुर की चुहिया चीं चीं से शादी होने वाली है . पूरे चूहे जगत में इसका बेसब्री के साथ इंतजार किया जा रहा है . चूहा चूं चूं इसलिए मशहूर है कि उसके दांत इतने ज्यादा तीखे हैं कि उनसे बड़ी से बड़ी , सख्त से सख्त चीज़ को कुतर कर तहस नहस किया जा सकता है और उधर चुहिया चीं चीं इतनी तेज़ है कि वह बिल्ली को चकमा देने में माहिर है . आज तक कोई भी बिल्ली चीं चीं पर हल्ला नहीं बोल सकी . चूहे वाले और चुहिया वाले इस शादी की दिल से तैयारी में जुटे हैं . उनका कहना है कि शादी तो सादी होगी , कोई तड़क भड़क नहीं की जाएगी और न ही कुछ वेस्टेज की जायेगी मगर शादी के बाद रिसेप्शन में चूहे जगत के यानि कुतर बिरादरी के बीस लाख मेंबर शामिल होंगे . चूहों का कहना है कि हम यह साबित करना चाहते हैं कि लाखों की भीड़ जमा करना केवल किसी चीफ मिनिस्टर का हक़ नहीं हो सकता . यह हक़ हमारा भी है.
चूं चूं और चीं चीं को एक डर सता रहा है कि इतनी बड़ी भीड़ अगर चूहा बिरादरी की जमा हुई तो आदमियों के पौ बारह हो जाएगी . उन्होंने अपना रिसेप्शन राम लीला मैदान में रखने का फैसला किया है क्योंकि भीड़ के लिए बैठने की , हिलने डुलने की जगह तो होनी चाहिए . वे ख़ुशी में डांस भी तो करेंगे . दुनिया के बेहतरीन ड़ी जे rat माउस कंपनी को बुलाया गया है. यह कंपनी तो मइकल जेक्सन के मुय्जिक
में भी मदद दिया करती थी . चूहे बिरादरी ने सब इंतजाम कर लिए हैं , उनके पास ब्लैक rat कमांडो भी हैं जो किसी भी बिल्ली को दिल्ली में फटकने नहीं देंगे . यह इंतजाम रिसेप्शन के दिन के लिए हैं मगर उन्हें आदमियों से डर लगता है.
आदमी से जब भगवान डरता है तो चूहों की क्या बिसात. आदमियों से डर का कारण यह है कि एम् सी ड़ी ने ऐलान किया है कि जो कोई जितने चूहे पकड़ कर लायेगा , उसे हर चूहे पर बड़ी रकम के इनाम की दर पर नोट दिए जायेंगे . चूहे जानते हैं कि आदमी लालची होते हैं . वह उस दिन अपने सब काम धंधे छोड़ कर चूहे पकड़ने को आ पहुंचेंगे . हम बीस लाख होंगे तो वह तीस लाख . इस तरह हमारे रिसेप्शन का मज़ा किरकिरा हो जायेगा . चूहों का कहना है कि करने को हम रिसेप्शन अंडर ग्राउंड भी कर सकते हैं , हमने नीचे मैदान बना रखा है मगर हमें अपनी एकता भी तो दिखानी है.
अब चूहों ने एम् सी ड़ी को सबक सिखाने कि कसम खाई है. उनका कहना है कि वह ज़मीन के नीचे अपनी सुरंगों से टाउन हाल पहुँच कर उसकी बुनियाद कुतर देंगे. इतना ही नहीं इसी तरह नए टाउन हाल की भी बुनियाफ्द बर्बाद कर देंगे. ऊन्होंने कहा कि हम तो आदमियों को रियायत देते हैं . अगर हम चाहें तो दस दिन में दिल्ली मेट्रो का अंडर ग्राउंड सिस्टम तहस नहस कर दें . हमारी इतनी क़ाबलियत है कि हम मेट्रो जैसी सुरंग पांच दिन में बना सकते हैं जिसे बनाने में मेट्रो को पांच साल लगे.
चूहों का यह भी कहना है कि हम महात्मा गाँधी के देश में रहते हैं. हम हिंसा करना नहीं चाहते. हम टेररिस्ट नहीं जो पार्लिअमेंट
पर हमला कर दें. हम एम् सी ड़ी को अल्टीमेटम दे रहे हैं कि चूहों को पकड़ने पर नकद इनाम देने की स्कीम लागू न करे वर्ना हम भी नार्थ ईस्ट के अंडर ग्राउंड हथियारबंद लोगों की तरह एम् सी ड़ी को हिला कर रख देंगे . हम चाहते हैं कि हमारा रिसेप्शन बिना किसी रोक टोक के हो जाये वर्ना हमारे दांतों में भी दम है . वे बखूबी समझ लें कि हमने भी चुहिया का दूध पी रखा है. हम सब के दांत खट्टे कर देंगे. हम दिल्ली हिला देंगे.

Tainted खाकी --------इंग्लिश में

Tainted Khaki, Fainted Hopes------------------SAT PAL





If we peep into the past, we will definitely come to understand the frightening essence of the Khaki, which used to inculcate a sense of becoming law-abiding citizens all the time. That was the time when khaki reminded us of its real power of being a protector of the system of faith in the functioning of the police mechanism in the country. Those days are gone and so those memories are fast fading out of our minds. The cops and their Khaki uniform is not at all being taken seriously these days since we come across enormous unusual incidents quite often which continue to shake our confidence.



The latest is an incident that took place in Mumbai where the top brass of the police were caught ‘shaking a leg’ with gangster and criminal mafia. They were dancing on the tune of Don, history sheeters and undesirable elements. One of the IPS officers was also involved in this show of disgrace on the eve of a religious festival. Of course, this is only one incident that is enough to speak of senior police officer’s association with dreaded elements trying to control the functioning of the government agencies with their muscle and money power.



It is an irony that an elected M.P. from Rajasthan has been forced to go on hunger strike to put pressure on the state government to bring to books an absconding senior police officer involved in a rape case a many years ago. There are a number of such cases in which involvement of the kaki is talked openly and spreads with the word of mouth.





In one of the much discussed case these days an officer of the level of a Director General Police has been involved beyond any doubt and eyebrows are being raised on the quantum of the sentence by various sections of the society including socialites and eminent personalities. It is astonishing to note that the tainted super cop used his influence to delay justice continuously for 19 years. This case has also opened a new Pandora box of leveling allegations on each other bya present and two former Chief Ministers of a neighboring state of the national capital that are known political adversaries. Though the case has become a hot issue for the media and is becoming a subject matter of the headlines daily, people are afraid of the ultimate outcome of the case. The case will continue to be in the limelight during the coming years. If we look into the pending cases against the police officers in this neighboring state of the national capital, we will be shocked to learn the statistics. The khaki has been fully exposed as criminal cases are pending against not less than 450 police officers in this progressive state. 19 out of 21 districts of the state are affected by such cases. The number could have been much more as most of the cases are settled mutually or not even been reported at all due to fear of police backlash. One of the national dailies has reported that FIR’s are being filed only in 10 per cent of the cases. These facts are alarming. With tainting of the khaki the hopes are, infact, fading. Let us all pray to the almighty to grant us wisdom to tackle such situations.

ऑटो एक्सपो

देश की राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में लगी ऑटो एक्सपो प्रदर्शनी दिल्ली के लिए नयी नयी सौगात ले कर आई तो सड़कों तो सड़कों पर ट्राफ्फिक जाम की आफत भी ले कर आई . नयी नयी चमकती आकर्षक गाड़ियों को देखने बड़ी तादाद में गाड़ियों वाले आये.
प्रदशनी के अन्दर नयी गाड़ियों के सामने देखने वालों की भीड़ , प्रगति मैदान के गेट पर अन्दर जाने वालों की भीड़ और सड़कों पर एक के साथ एक चिपक कर चलती गाड़ियों की लम्बी फौज . यूँ लगा कि जैसे सडको पर एक सुई रखने की जगह भी नहीं दिख रही थी . कार देखने वह भी आये जो कभी खरीदने का सपना ही नहीं देख सकते . चारों ओर कार के लिए हा हा कार था . यह कार मेला था या हा हा कार मेला . इस प्रदर्शनी में महँगी से महँगी और सस्ती से सस्ती कारें , मोटर सयिक्लें और बयिसयिकलें भी दिखाई दी . इतना ही नहीं जब विंटेज कारों की ओर निगाह गयी तो लगा जैसे ८० से ९० वर्ष की लाठी के सहारे चलती बालाएं भी दुल्हन की पोशाक डाल कर अपनी अदाओं का जादू बिखेर रही हों.

बहरहाल इस प्रदर्शनी ने यह साबित कर दिया कि किसी भी अच्छी से अच्छी चीज़ की मार्केटिंग केवल उसकी खूबियों के बूते पर बिलकुल नहीं की जा सकती मगर इसकेलिए ग्लेमर की ज़रुरत होती है . अगर ग्लेमर का साथ हो तो आप मिटटी को भी सोना बता कर बेच सकते है . ग्लेमर के बिना सोने का भी खरीददार ढूँढना मुश्किल होता है. इसलिए कार निर्माताओं ने कारों के आभामंडल को आकर्षक बनाए के लिए हुस्न परियों यानि डीअर गर्ल्स का सहारा लिया जैसे कि ट्वंटी ट्वंटी क्रिकट को पापुलर बनाने के लिए चीयर गर्ल्स का सहारा लिया गया. इस का मतलब है .....बिना हुस्न सब सून, दिल्ली हो या देहरादून.

सड़क है या द्रौपदी

दिल्ली में सड़क की तुलना द्रौपदी से की जाये तो कुछ गलत नहीं होगा. सडक एक , रखवाले पांच
. कहिये कैसा लगा, सुनके. आपको जाना है रामलीला मैदान से इंदिरा गाँधी एअरपोर्ट, ऍम सी डी, एन डी एम् सी , पी दब्लेयू डी , एन एच ए आई और कब्जापति दिल्ली मेट्रो . कब्जापति का मतलब है फ़िलहाल सडक पर उसका कब्ज़ा है. पांच पति, पांच रखवाले, सड़क पर पांच तरह के हालात, पांच तरह की खूबियाँ, खामियां . कई हिस्से ऐसे कि लगता है जैसे नो मेंस लैंड हो और बिलकुल लावारिस. क्या इस तरह की सडक पर कोई नाज़ कर सकता है.
ये दिल्ली है मेरी जान. यह शहर है या कोई अजायबघर. भीड़ है तरह तरह के निकायों की. इसे ही तो बहु निकाय व्यवस्था कहते हैं . यानी काम एक, करने वाले अनेक और एक दूसरे को एक दूसरे के दायरे का पता नहीं , आपसी अधिकार पर जारी वार और वार प्रति वार . ऐ व्यवस्था तेरे अंजाम पर रोना आया. एक ही सड़क कहीं कुछ बोलती है तो कहीं कुछ और. कहीं फुटपाथ चौड़ा है तो कहीं संकरा, कहीं स्ट्रीट लाइट झुकी है तो कहीं ऊंची. कहीं सपाट है तो कहीं गढ़हों से भरपूर . इतना ही नहीं , अगर कोई सड़क बननी है तो उसका एक हिस्सा दस साल तक नहीं बना क्योंकि रास्ते का इलाका छावनी बोर्ड का है इसलिए प्रोजक्ट पूरा नहीं हो सकता. दिल्ली सरकार और कनतोंमेंट बोर्ड बरसों बैठकें करते रहे मगर जनकपुरी से धौला कुआँ के बीच कैंट के इलाके में विशेष सड़क नहीं बन सकी.
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दिल्ली में पुल बनना है तो न जाने कितने पुल लाघने पड़ते हैं, न जाने कितनी एजेंसियों से अनुमति लेनी होती है. एजेंसियां भी सभी लाजवाब. इनमें से कुछ को दिल्ली की शहरी कला देखनी है, किसी को ज़मीन के इस्तेमाल की वास्तविकता जांचनी है, किसी को ऊंचाई नापनी है कि हवाई मार्ग में रूकावट तो नहीं होगी, किसी को पेड़ों की ज़िम्मेदारी निभानी है और किसी को समाधियों में विश्राम कर रहे महापुरुषों की नींद में कोई खलल न हो यह सुनिश्चित करना है. एजेंसियां एक से बढ़ कर एक और सभी के दांत तीखे और नुकीले और सबसे बढ़ कर यहाँ की अदालतें. इन सबके मद्देनज़र पहले तो योजना मुश्किल से बन सकेगी और बन गई तो गति की दुर्गति हो जाने का अंदेशा बना रहता है .

यहाँ हर कदम पर स्पीड ब्रेकर हैं. एक दिल्ली नगर निगम है जिसका कदम ज़ोरदार मन जाता है मगर किसी पार्षद, विधायक या एम् पी के कहने पर आसानी से बदल जाता है. एक विधायक सड़क किनारे टॉयलेट बनवाता है तो दूसरा गिरवाता है . बहरहाल उसकी नगर नियोजन की नीति अड़होक रही है. एक है दिल दार एजेंसी यानि डी डी ए . फ्लैट के लिए पंजीकरण कराएँगे तो भरोसा नहीं कि आपकी तीसरी पीढ़ी को भी फ्लैट मिले . डी डी ए ने सचमुच कई पीढ़ियों का हिसाब किताब रखने के लिए रजिस्टर बना रखे हैं.

ज्यादा निकाय होने का फायदा मच्छर भी उठा रहे हैं. डेंगू का खतरा हुआ तो मच्छरों पर हमला हुआ. एक मच्छर आराम बाग़ से गोल मार्केट आ गया . एन डी एम् सी के कर्मचारी आये तो बोला मैं एम् सी डी का मच्छर हूँ. फिर वही रेलवे स्टेशन चला गया तो यह कर बच गया कि मैं एन डी एम् सी का हूँ . यानि जितनी एजेंसियां , उतनी मुसीबत.