किराये के मकान, लीडर परेशान

देश की कमार्शैअल राजधानी मुबई में इन दिनों एक नया तूफ़ान उठा हुआ है। माजरा बेहद आसान है। मुद्दा है - किराये के मकान , लीडर परेशान । म्हाडा -महाराष्ट्र सरकार का एक हाऊसिंग बोर्ड है। इसने मुबई और आसपास ऐसे पचास हज़ार फ्लैट बनाने का फ़ैसला किया है जो बहुमंजिले होंगे और गरीबों को किराये पर दिए जायेंगे । योजना तो बहुत अच्छी है मगर इस पर राजनीति करने वाले लीडर अब खुल कर खेल रहे हैं । ऐसे नेता कोहराम मचा रहे हैं कि ये फ्लैट केवल मराठी लोगों को किराये पर मिलने चाहियें । ऐसे नेता मराठी , गैर मराठी के नाम पर लोगों को बाँट रहे हैं । वह बाँट रहे हैं क्योंकि वह गरीब नहीं हैं । गरीबों के दुःख दर्द नहीं जानते। वह उनका दर्द तो बाँट नहीं सकते लेकिन नफरत फैलाने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता ।

काला चश्मा कामयाब

देश के एक दक्षिणी प्रान्त के वरिष्ठ राजनेता ने अपना छियासिवान जन्म दिन चेन्नई में मनाया। उनका काला चश्मा खूब जलवे दिखाता है। यह नेता अपने काले चश्मे की आड़ में जब अपनी राजनीतिक चालें चलता है तो उनकी असली आँखों से उनके सही मकसद का पता नहीं चलता। यह काला चश्मा कई दशक से उनकी ढाल बना हुआ है। इसी ढाल का सहारा लेकर वह नेता अपने तीर फेंकता है जो शायद कही निशाने से नहीं चूकते । इसी काले चश्मे को अपनी हिम्मत की ताकत मान कर किसी भी छोटी बड़ी बात को वह अपना धारदार मुद्दा बना लेता है और भूख हड़ताल पर बैठने से भी गुरेज़ नही करता। यह बात अलग है , वह सत्याग्रह भले ही चंद घंटे तक ही चले। जब यह नेता ज़रा सा नाराज़ हो कर रूठ जाता है तो अस्पताल में जा कर भरती हो जाता है और दिल्ली से बड़े बड़े नेता सुलह सफाई के लिए दस्तक देने पहुँच जाते हैं। इस नेता को शायद अपने काले चश्मे के शुभ होने का भरोसा है जिस वजह से इस नेता को अपने पूरे परिवार को राजनीतिक तौर पर स्थापित करने में कामयाबी मिली है। ऐसे नेता के जन्म दिन पर रौनक होने के बावजूद इस नेता को अम्मा के आने की आशंका सताती रहती है। मगर इस काले चश्मे वाले व्हील चेयर पर से सरकार चलाने वाले नेता को भरोसा है ,उनका तमिल मुद्दा हमेशा उन्हें कामयाबी दिलाता रहेगा, इस से भी ज़्यादा भरोसा उन्हें अपने काले चश्मे पर है क्योंकि काले रंग पर भरोसा है क्योंकि यह सबसे ज़यादा नज़र से बचाता है फ़िर अम्मा से क्या डरना, काला चश्मा कामयाब, नेता जी को रखना याद।

बाल काटे दुनिया देखे

बाल काटे दुनिया देखे, ऐसे ऐक्टर पे मरियो । मैं फ्री में बाल कत्त्वाऊंगा तुम देखते रहियो। दिल्ली में न जाने कितने उत्साही लोगों ने खुलेआम बाल कटवाए और हज्जाम बने जाने माने ऐक्टर आमिर खान । आमिर खान के हाथ में कैंची और बाल काटने की मशीन क्या अजब नज़ारा रहा होगा। आमिर खान के हाथों बाल कटवाने वालों का जमावडा और बाल कटवाने की बेकरारी । लोगों को इस बात की कोई गारंटी नहीं थी , हज्जाम के पास ऐसा काम करने का एक्स्पेरिंस है या नहीं। अगर देखा जाए तो लोग बाल कटवाने के लिए मशहूर सैलून और जाने माने हेयरड्रेसर के पास जाना पसंद करते हैं क्योंकि किसी आदमी की पहचान और शक्सियत तथा चेहरा इस पर मयस्सर होता है कि किस प्रकार के बाल काटे गए हैं । उत्साही लोग इस बात की फ़िक्र किए बगैर बाल कटवाने के लिए आमिर खान के पास पहुंचे । सभी चाहते थे कि लोग आमिर खान के हाथों अपने बाल की aआहुति


दे दें । ये अजब दीवानगी है , कभी लोग एक्टरों के बाल देख कर सफाचट मैदान बना देते हैं अपने सर को और उनके सर पर जब रौशनी पड़ती है तो रिफ्लेक्ट होकर लौट आती है । कभी लोग सर गंजा करवा अपने सर में लाइनें खिचवा लेते हैं और उन्हें हैड ला इन का नाम देते हैं। कई लोग इसे अपने सर पर मांग खींचे जाने का आलम बताते हैं। कभी लोगों ने जॉन अब्राहम की तरह लंबे लंबे बाल रखे तो कभी लोगों ने छोटे बाल रख के पीछे चोटी रखनी शुरू कर दी । कभी तरह तरह के किस्म किस्म के बाल बनवाने की धुन लड़कियों को सवार होती थी और वह अपने सिरों पर कई तरह के घोंसले, पहाड़ ,झरने और धारदार हथियार बनाया करती थीं मगर आज ऐसा जूनून लड़कों में भी साफ़ दिखाई देता है। आख़िर क्यों न हो हम ने लड़की, लड़के में कोई फर्क न होने का संदेश इतना बुलंद कर दिया है लिहाजा लड़के अब लड़कियों से ज़यादा ब्यूटी पर्लोर के भीतर जाते हैं जबकि पहले सज धज कर निकलने वाली लड़कियों के इंतज़ार में ब्यूटी पर्लोर के सामने जमावडा लगाये रखते थे। वह दिन दूर नहीं जब लड़के अपने जीन तो पहनेंगे और उनके साथ ब्लाउज भी डालने लगेंगे क्योंकि उन्होंने अपने कान, नाक, और पलकों के ऊपर सोने, चांदी और डायमंड की बालियाँ डालनी तो शुरू कर दी हैं। बहरहाल हम बात कर रहे थे मुफ्त में बाल काटने वाले बार्बर यानि आमिर खान की। आमिर न केवल ख़ुद को फिट रखने के लिए सब
कुछ करते हैं बल्कि उस फ़िल्म को चरचा में रखने के लिए भी हर तरह का नाटक करते हैं। इससे आमिर का अपनी फ़िल्म को मुल्क के हरेक कोने और हरेक आदमी तक तक पहुचने के इरादे का पता चलता है।

सुट्टा बंद

जी हाँ, अब सरेआम आप धुएँ के छल्ले नहीं देख पाएंगे क्योंकि देश की सबसे बड़ी सरकार यानि नई दिल्ली की सरकार ने सुट्टा बंद करने का पुख्ता प्रबंध किया है । इतना ही नहीं इस काम में मुल्क की बड़ी से बड़ी अदालत ने भी रोक लगाना वाजिब नहीं समझा । अब केन्द्र सरकार ने सिगरेट आदि के पैकेज पर डरावने चित्रों से चेतावनी देना शुरू कर दिया है। सचमुच अब सुट्टा बंद का जज्बा सर चढ़ कर बोलेगा । सुट्टा मारने वालों को अगर यह मौका न मिले तो उनकी बेकरारी ऐसे बढ़ जाती है जैसे समंदर में ज्वार आता है। इस बेकरारी की झलक पाकिस्तानी बैंड के एक गाने --सुट्टा न मिला में साफ़ झलकती है। जब सुट्टा मिल जाता है तो फिर उसका आखिरी कश तक मज़ा लेते हैं लोग भले ही जलती सिगरेट में उनकी उँगलियों की खाल न जल जाए । जब स्मोकिंग से अन्दर के शरीर को घुन लग जाता है तो उगलियों पर आने वाली आंच की कौन परवाह करेगा । स्मोकिंग की भी ऐसी लत है कि छुडाये नहीं छूटती ।कुछ लोग तो इसे स्त्तियोरिय्द कीतरह मानते हैं और रात भर जागने और फिर अपने काम में कन्संत्रत करने के लिए सिगरेट का सहारा लेते हैं। इतना ही नहीं सरकारी दफ्तरों और पुब्लिक डीलिंग की जगह पर अब काम के बन्दे के साथ दोस्ती करना और अपना काम निकालना भी टेढी खीर हो जाएगा क्योंकि सिगरेट ऑफर करने से एक तो इन्फोर्मल रिलेशन बनने लगते हैं और दूसरे दोस्ती की बुनियाद भी पड़ने लगती है। और सिगरेट पीने वाले एक ही सिगरेट से बदल बदल कर कश लेते हैं। आख़िर इतनी इंसानियत और भाईचारे पर ठेस नहीं लगेगी , क्या सुट्टा बंद हो जाने से । अब तक लोग स्मोकिंग को मरदाना शौक मानते रहे हैं और लोग अपनी ऐंठ दिखाने के लिए भी कश लगाते हैं। इतना ही नहीं अब तो लड़कियां भी लड़कों जैसा दम ख़म दिखाने के लिए सुट्टा लगा लेती हैं। ऐसे नज़ारे तो कालिजों और उनिवेर्सितियों में अक्सर दिखाई देते है। बहरहाल पब्लिक प्लेसिस पर सुट्टा बंद होने से कुछ हद तक सिगरेट में सुल्फा दूसरी नशीली दवाएं लेने वालों पर तो कुछ पाबंदी लागू होगी। सुट्टा बंद करने के फायदे उन लोगों के लिए हैं जो स्मोकिंग नहीं करते , ये लोग पेस्सिव स्मोकिंग के शिकार हो कर बीमारी के शिकार होते हैं। केन्द्र सरकार ने क़ानून तो अच्छा बनाया है। मगर इसे सख्ती से लागू करने से ही नतीजे मिलेंगे । जहाँ ज़रूरी है वहां स्मोकिंग ज़ोन भी बनने चाहिंए और कानून के नियमों कोनज़रंदाज़ करने वाले लोगों से अगर २०० रुपये जुर्माना मौके पर वसूल किया जाए तो बेहतर नतीजे मिल सकते हैं । क़ानून बेहतर है क्योंकि इसके सिवा कोई चारा नहीं था। इंसानों को कैंसर और फेफड़ों
की बीमारी से बचाने का क़ानून इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि सरकार अपने रेवेन्यु को देखते हुए सिगरेट बनाने पर तो पाबन्दी लगे नहीं सकती इससे होने वाले नुक्सान को तो रोक सकती है।