दिल्ली,देश,दुनिया----सत पाल
मंतर जंतर
जंतर मंतर को उलटा मंतर जंतर लिखने का मतलब है कि 1993 से विरोध प्रदर्शनों, धरनों और कई कई महीनों तक किसी मुद्दे को लेकर लगातार 24 घंटे विरोध जारी रखने का स्थान बंद होने वाला है। लगभग 24 साल तक जो स्थान गुलजार रहा वहां अब सुनसान होने वाला है। एन जी टी की चिंता वाजिब है कि जंतर मंतर पर प्रदर्शनों के शोर, नारों और लाउड स्पीकर की भारी आवाज से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से ऐतिहासिक , पुरातन, खगोलीय अध्ययन के निर्माण को नुकसान हो सकता है। यह स्थान अन्ना आंदेलन के सूत्रपात, निर्भया के लिये जली मोमबत्तियों, जिम्मेदार लोगों के देखते देखते एक किसान की आत्म हत्या और तमिलनाडु  के किसानों के अर्ध नग्न हो कर कंकालों के सामने  किये गये लम्बे विरोध के लिये याद किया जायेगा। आखिर सवाल है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में विरोध करने वाले कहां जायें। इससे पहले बोट क्लब पर ऐसे प्रदर्शनों, विरोध और धरनों का नजारा दिखायी देता था। इस स्थान का फायदा यह था कि लंच के समय बड़ी संख्या में बाबू वहां जमा होते थे और विरोध करने वालों को बिना किसी कोशिश के दर्शक और श्रोता मिल जाते थे। इसलिये यहां विशाल राजनीतिक रैलियां हुआ करती थीं और लंच के समय बाजार और सत्संग वालों को भी स्थान मिल जाया करता  था। सचमुच बोट क्लब भारत में लंदन जैसा हाइड पार्क बना  हुआ था। इसी स्थान से सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन किये जाते थे और देश की जनता की नब्ज का अंदाजा भी लग जाता था। आपात काल हटाये जाने के बाद होने वाले लोक सभा चुनाव के दौरान तत्कालीन प्रधान मंत्री की चुनावी रैली में उनके आते ही एक मिनट में रैली समाप्त होने से समूचे देश को पता चल गया था कि भारत में बदलाव की आंधी चल रही है। इसी मैदान पर 1984 में देश की महान महिला और दुर्गा जैसी शक्ति की प्रतीक प्रधानमंत्री की हत्या के बाद हुयी एक विशाल सभा में नये पी एम राजीव गांधी ने कहा था कि बड़े पेड़ के गिरने से धरती तो हिलती है। इसी स्थान पर स्वर्गीय ताऊ की रैली में आयी भीड़ ने बोट क्लब और आस पास सामान खाने   की और अन्य वस्तुओं की लूट पाट की थी। हद तो तब हुयी जब टिकैत के बुलावे पर बोट क्लब आये हजारों किसानों के काफी दिन चले धरने से यह स्थान विशाल खुला शौचालय बन गया था। ऐसी घटनाओं के कारण विरोध अभिव्यक्ति और मांगें मनवाने की शक्ति प्रदर्शन का स्थान बदल कर जंतर मंतर कर दिया गया। इससे पहले 1966 तक संसद के गेट तक प्रदर्शन की अनुमति थी। गौ हत्या के विरोध प्रदर्शन में कई संतों की मौत होने के बाद यह स्थान बंद हो गया। अब रामलीला मैदान में विरोध लीला करने का प्रस्ताव है,देखते हैं क्या होगा।
मंदिर दर्शन
मंदिर दर्शन का क्या चुनावी कामयाबी से कोई संबंध है। देश की सबसे पुरानी पार्टी में बड़ी भूमिका का इंतजार कर रहे नेता ने मंदिर दर्शन और पूजा पाठ शुरू कर दिया है। इसके विश्लेषण से दो बातें सामने आती हैं, क्या यह देखा देखी किया जा रहा है या धर्म के प्रति अचानक लगाव शुरू हुआ है।
दीवार
अमरीका में मेक्सिको से अवैध प्रवेश रोकने के लिये तीन करोड़ रु की लागत से तीन हजार किमी लंबी दीवार बनाने के लिये चार कंपनियों ने रुचि दिखायी है। यह अनूठी दीवार होगी और इसकी नई तकनीक से निगरानी की जायेगी।








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अहंकार
अहंकार, एक ऐसा पौधा है, जो हर मौसम में हरा है। अहंकार , सार्वभौमिक शब्द कोश का, अजर, अमर शब्द है, जो न मिटेगा, न मरा है। अहंकारी को  महसूस नहीं होता कि वह अहंकार करता है अपितु उसे अपने ऐसे व्यवहार से सुख की अनुभूति मिलती है और उसे ऐसा करने में आनंद आता है। अहंकारी को कोई भले तानाशाह कहे, निरंकुश कहे या कुछ और संज्ञा दे उसे कुछ  फर्क नहीं पड़ता। वह अपनी धुन का पक्का होता है और उसे किसी का हाहाकार, दुख, दर्दभरी पुकार सुनाई नहीं देती। उसके कान तो केवल तारीफ सुनने और बार,बार, लगातार, हर बार केवल आस्था तथा विश्वास व्यक्त करने वाले लोगों की आवाज सुनने के लिये होते हैं। क्रांति के पांच साल के आयोजन में कवि स्वभाव के एक नेता ने अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा को या तो सोचे समझे या फिर अनजाने में संकेत के तौर पर अहंकार से भरा कह दिया। यह  अच्छा हुआ कि इस तंज का जवाब पार्टी के सबसे बड़े नेता यानि सर्वेसर्वा ने नहीं दिया मगर  बड़े नेता के एक वफादार भरोसेमंद नेता से जवाब दिये रहा नहीं गया। अगर गहराई से सोचें,  हरेक पार्टी में सबसे बड़े नेता को तानाशाह और अहंकारी कहा जाता रहा है और अब  भी कहते हैं। ये तो बड़े पद पर रहते रहते आ ही जाता है। यह अहंकार बिल्कुल उसी तरह आता है जैसे किसी बेहद हसीन को अपने आप नाज नखरे आ जाते है। खुदा जब हुस्न देता है नजाकत आ ही जाती है। हम बात कर रहे थे अहंकार की, ये जब आता है बिना बताये आता है, न तो कोई धमाका करता है और न ही किसी तरह का शोर शराबा। आते आते जिसे आता है उसका अंदाज, मिजाज ,लहजा,दर्जा  नजरिया, प्रतिक्रिया, हाव भाव, स्वभाव बदलता महसूस होता है और उसे  बदलाव रास आने लगता है और इसका आनंद आने लगता है। उसे अपने बारे में तानाशाह कहा जाना बुरा  नहीं लगता। ये बीमारी केवल नेताओं में नहीं होती ,अफसरों  में होती है और नवाबों, राजाओं, महाराजाओं में भी हुआ करती है। किसी के बारे में अहंकारी और तानाशाह अक्सर वही लोग कहते हैं जो खुद को वंचित महसूस करते हैं या फिर कहते हैं कि हमारे साथ छलावा हो रहा है। अगर राजनीतिक दलों की बात करें तो हर एक पार्टी में अहंकार और तानाशाह का जुमला सुनाई देता है क्योंकि हर पार्टी में बड़ी संख्या में वंचित  होते हैं। सुख सुविधा वाले पद  कम होते हैं और देने के लिये तो अपनों को या वफादारों को मिलते हैं। न तो बांटने वाला दृष्टिबाधित होता है और न ही ये पद रेवड़ियों की तरह बांटे जाते हैं। ये अहंकार अंग्रेजों के समय भी था और 1947 के बाद अब तक जारी है, जारी रहेगा। आखिर मानना ही होगा जब तक संसार है , तब तक अहंकार है।

एहतियात
हरियाणा में रविवार को एहतियात का दिन था क्योंकि दूध का जला छाछ को फूंक फूंक कर पीता है। रोहतक और उससे कुछ दूरी पर जींद में दो अलग अलग रैलियां हुईं।  एक दमदार जाति के रिजर्वेशन के लिये और दूसरी इसका अंदरखाने विऱोध कर रहे तथा  खफा रही जातियों के आऱक्षण की मांग को ले कर।  भगवा पार्टी के सासंद और जींद रैली बुलाने वाले सांसद नया दल बना सकते हैं।

भिखारी हूं गरीब नहीं
चीन में एक आदमी ने भिखारी को गरीब कहते हुये भीख दी तो वह चिल्लाया,  भिखारी हूं ये मेरा पेशा है मगर मैं गरीब नहीं।   रात में नोटों को बिस्तर बना कर सोता हूं और मेरा परिवार स्विटजरलैंड  रहता है।  
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वाह पानी
कहते हैं कि पानी यानी जल है तो जीवन है, पानी है तो जिंदगी की रवानी है, पानी है तो रौनक है, पानी है तो सियासत है, पानी है तो अगली बार की आस है, पानी है तो जीत का उल्लास है, पानी है तो जनता का विश्वास है। 2013 से अब तक दिल्ली की राजनीति या यूं कहिये सफलता की राजनीति का आधार पानी बना हुआ है। पानी ने दिल्ली की सियासत के दायरे का विस्तार किया है । पहले दो दलों का परिवार था अब तीन दलों का परिवार है। दिल्ली की नयी पार्टी जिसका उदय करप्शन की आह और दर्द से हुआ था आखिर इस पार्टी ने  पानी को मुद्दा बना कर दो स्थापित पार्टियों को इतनी बेदर्दी से हराया कि वह दोनों पूरे देश के सामने पानी पानी हो गयीं। इसे कहते हैं दो बूंद के बिना पानी में डूबो देना। डुबाना भी ऐसे कि छटपटाते रहो मगर निकल न सको। इस पार्टी ने जैसे समझा दिया हो कि अब सियासत की लड़ाई का मैदान मंच और प्रपंच नहीं अपितु जल स्तर ही मैदान है। पानी का असर वास्तविक होता है न कि फानी यानि अवास्तविक और पानी कद बढ़ाने, संख्या बल बढ़ाने और अपना वजूद टिकाऊ बनाने में मददगार रहा है। पानी ही के बल पर पहली बार इस पार्टी को 18 सीट मिलीं तो दूसरी बार में 67 सीटों में पानी ने जीत दिलवाई। तभी तो इस पार्टी के टिकाऊ कन्वीनर को पांच साल के कार्यकाल के बीचों बीच पानी की याद आयी और पानी के महकमे को दिल के करीब, अपना नसीब समझने लगे। यह बात अलग है कि बीते ढाई साल तक उन्होंने सभी महकमों से एकतरफा तलाक बरकरार रखा। अचानक उन्हें लगा कि हमने दिल्ली के ज्यादा से ज्यादा परिवारों को मुफ्त पानी पिला कर उनकी बरसों तथा सदियों की प्यास बुझाई है। इतना ही नहीं बहुत लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि उनका  पानी का बिल जीरो आता है।  यह पानी में ही दम है कि वह किसी को हीरो बना देता है तो किसी को जीरो भले ही वो बिल हो या कोई पुरानी से पुरानी पार्टी। दिल्ली वालों को हैरानी हो रही है कि जिस वजीरे आला ने ढाई साल तक किसी फाइल से मुहब्बत नहीं कि वह किस तरह उसे पलट पलट कर, निहार निहार कर, बार बार, लगातार , कई कई बार देखेगा और फिर उस पर कुछ लिख कर अपने प्यार के करार को स्वीकार करेगा। कुछ  भी हो दिल्ली आगे बढ़ेगी।
फेरबदल
बहुत शोर सुनते थे मगर आवाज तक नहीं आई और कई दिनों की चर्चा बिना किसी हलचल के शांत हो गयी। जिनके नाम चल रहे थे वे फेरबदल की मधम रोशनी में गुमनाम हो गये। न जाने कितने दिन पत्रकार नये नये नाम  कहां कहां से निकाल कर लाते रहे। इतना ही नहीं पटना और चेन्नई में आस पालते रहे मगर नौकरशाह तथा आमची पुलिस के शंहंशाह बाजी मार कर कुर्सियों पर जम गये। नौकरशाह तो अपने सेवाकाल में भी राज करते हैं। उन्हें फिर से राज देने के पीछे क्या राज हो सकता है। राज को राज रहने दो।
प्यार किया तो
जापान की राजकुमारी ने अपने प्यार की खातिर शाही जलवे और रुतबे की कुर्बानी दे दी। राजकुमारी माको ने एक आम आदमी कोमुरो से सगाई की तो राजकुमारी पर शाही परिवार की बिजली गिर गयी। प्यार में रुतबे नहीं मिलते दिल मिलते हैं। जब प्यार किया तो डरना क्या।
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तेज धड़कन
देश की राजधानी दिल्ली में इन दिनों कुछ अजब बेकरारी है, ज्यादातर लोगों के दिलों में तेज धड़कन और लाचारी है।  ऐसे माहौल के लिये किसी व्यक्ति या सरकार को दोषी और जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इन दिनों राजनेता, चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवार, व्यापारी- दुकानदार, अभिभावक यानी माता पिता और नये, पुराने, डटे हुये, थके हुये, टिके हुये राजनीतिक दल, उनके समर्थक, चिंतक सभी के दिलों में धड़कन तेज होती जा रही है तथा कल क्या होगा, इसे लेकर कशमकश बढ़ती जा रही है। ये नहीं कहा जा सकता कि हर दिशा में निराशा का आलम है आखिर कई दिलों में आशा का उजाला घुप्प अंधकार को चीर कर बाहर निकलने को तैयार है। ऐसे माहौल के  कारण की तलाश करें तो ज्यादा मशक्कत नहीं करनी होगी केवल आपके दिलो दिमाग में पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम की  याद की कुछ न कुछ मौजूदगी होनी जरूरी है। कारण हैं सीलिंग, विधान सभा के 20 निर्वाचन क्षेत्र में उप चुनाव की आशंका, हाई कोर्ट के फैसले मे सीट बच जाने की उम्मीद, अच्छे से अच्छे स्कूल में लॉटरी से या तीर तुक्के से आंखों के तारे के दाखिले की आशा और हक में सब कुछ होने या नहीं होने के बीच का बनता बिगड़ता संतुलन और भीतर का मन जो चैन की बंसी को नदी, नाले, तालाब में फेंक कर सब कुछ ऊपर वाले के हवाले करना चाहता है मगर मजबूर है, ऐसा कर नहीं सकता। मन के सवालों के साथ भविष्य जुड़ा है तभी तो मन इंतजार के कच्चे धागे के बंधन के साथ बेमन हो कर भी खड़ा है। दिल्ली की नयी पार्टी परेशान है कि हाई कोर्ट सीटें बचने का फैसला देगा और अगर उप चुनाव हुये तो लुटिया बचेगी या डूबेगी, सबसे पुरानी पार्टी को भय है कि कहीं फिर शून्य का महाकाल उसे डकार तो नहीं जायेगा और भगवा पार्टी को देश में चल रही हवा का भरोसा है तो सीलिंग के दंश से तगड़ा झटका लगने से डर लग रहा है। पुरानी पार्टी और नयी पार्टी की सोच है कि सीलिंग का जिन्न भगवा दल को पाताल में जा पटकेगा तो भगवा पार्टी को लगता है कि नयी पार्टी की चमक को ऐसा ग्रहण लगा है कि उसकी बुलंदी का कुतुब मीनार 130 साल के वृद्ध की तरह कुबड़ा गया है। उधर पुरानी पार्टी का मानना है कि  बाकी दोनों पार्टियों के गले में फंसा सीलिंग का फंदा उनको जीने नहीं देगा। ऐसे ही व्यापारियों के दिल सीलिंग के नाम पर इंजन की सीटी की तरह आवाज करते हैं तो बच्चों के अभिभावकों के चेहरे  दाखिले की चिंता में पपीते के रंग में हैं और खाना पीना भूल रहे हैं। दिन है कि धड़कता है, बजता है, दिलासा नहीं देता।
नेक विचार
केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टा के एक सासंद ने सलाह दी है कि बेहद अमीर सांसदों को अपनी सैलरी गिव अप करनी चाहिये। देश हित में दी गयी सलाह तो नेक है मगर कोई एक माने तो। अगर मुश्किल से परिवार चलाने वाले  लाखों लोग गैस की सब्सिडी छोड़ सकते हैं तो समाज सेवा का इरादा कर के राजनीति में आये सांसदों को वेतन गिव अप करना चाहिये आखिर उन्हें तो अनेक सुविधायें मुफ्त में मिलती हैं।
स्पिल्ट हार्ट
स्पिल्ट ऐ सी तो आप ने देखा होगा मगर स्पिल्ट हार्ट नहीं। ब्रिटेन की सेल्वा हुसैन अपना आर्टिफिशियल दिल थैले में ले कर घूमती है और थैले में से दो तार उसके सीने से जुड़ी रहती हैं। डाक्टरों ने उसे मौत के मुंह से निकाल कर कृत्रिम दिल लगाया है। दुनिया में अब तक ऐसा दिल केवल दो इंसानों को लगा है। दिल है कि रुकता नहीं।

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 सारे बच गये
इस टिप्पणी का राजनीति से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है। आप सभी जानते हैं कि कई महीनों से दिल्ली में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बाद के घटनाक्रम और लाभ के पद को लेकर खबरों, ब्यानबाजी, तरह तरह के परिणाम के दावों तथा संभावित उठापटक, राजनीतिक दलों के ख्याली पुलावों को अलग अलग तरीके से दिल्ली तथा एनसीआर के लोगों तथा सियासत में दिलचस्पी रखने वाले पाठकों के लिये परोसने का सिलसिला चल रहा था। परोसने के इस पराक्रम में सारी राजनीतिक पार्टियां तथा राजनीति को अपने निहित स्वार्थ के बल से सही या गलत दिशा देने के इच्छुक तत्व भी शामिल थे। परोसने की दावत में खाली होने वाली सीटों के उप चुनाव के संभावित उम्मीदवारों और जीत हार के गणित के पकवान शामिल रहे। इसके अलावा उप चुनाव के इच्छुक प्रत्याशी  उम्मीदों के  मल्टी विटामिन से सक्रिय होते रहे। यह मुद्दा अखबारों, इलेक्ट्रानिक मीडिया, पत्रिकाओं, गली , चौराहों, संसद और विधान सभा के गलियारों में भी छाया रहा। इसके अलावा निर्वाचन आयोग और हाई कोर्ट में इस पर हो रहीं चर्चाओं, बहस और बहस पर आधारित अटकलों का तो लोगों ने पापड़ी और गोल गप्पे के पानी की तरह रसस्वादन किया। आखिर दिल्ली उच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले जो फैसला दिया उसे लेकर कुछ पक्षों में घोर निराशा हुई तथा कुछ में खुशियों की बहार आ गयी। खुशियों वाले आंगन में जश्न मनाये जाने पर किसा तरह की विपरीत टिप्पणी करने का किसी का कोई हक नहीं बनता। सारे बीस के बीस बच गये। इस बड़ी खबर पर जिस पक्ष को राहत मिली उसके लिये जश्न या दीवाली या होली मनाना गलत नहीं कहा जा सकता। जश्न ए बहारा की धमक और गूंज गली, कूचे, घर, आंगन, बाजार, पार्टी दफ्तर, विधान सभा आदि में दिखायी और सुनायी दी। कुछ पक्षों ने कहा कि फैसला फौरी राहत है तो अन्य पक्षों ने कहा कि अभी तो फाइनल परीक्षा होनी शेष है। कुछ भी हो जश्न मना रही दिल्ली की नयी पार्टी को पडोसी हरियाणा में जा कर दमखम दिखाने का इस फेसले ने टॉनिक दे दिया।
राम मंदिर निर्माण जारी
सचमुच राम मंदिर का तेजी से निर्माण जारी है । यह मंदिर हूबहू अयोध्या में बनाये जाने वाले राम मंदिर के डिजाइन के अनुसार बन रहा है मगर यह गुजरात के वलसाड के कोसंबा में बन रहा है। राम भक्तों को इसके भी दर्शन करने का अवसर मिलेगा। कोसंबा में अयोध्या के प्रस्तावित राम मंदिर की प्रतिकृति का 35 फीसद निर्माण हो गया है। शिलाओं की नक्काशी की जा रही है, खंभे तैयार हैं, भव्य मंदिर का पलैटफार्म तैयार है। इसे पौराणिक श्रीराम मंदिर का कायाकल्प करके बनाया जा रहा है। भगवान श्रीराम सर्वव्यापक हैं, मंदिर कहीं भी बन सकता है।
बाली में हिन्दू नववर्ष
इंदोनेशिया के बाली में हिन्दू नववर्ष पूरी आस्था, विश्वास, श्रद्धा और तल्लीनता से मनाया जाता है और इस दिन की पूजा अर्चना में कोई शोर शराबा न हो इसलिये इस दिन को – डे ऑफ साइलेंस भी माना जाता है। हजारों साल से विघ्न को दूर रखने के इंतजाम किये जाते हैं और अब इंटरनेट, टीवी, एयरपोर्ट, रेडियो, निजी तथा सरकारी परिवहन में से इस दिन शोर नहीं निकलने के कड़े निर्देष दिये जाते हैं।  इन निर्देषों का उल्लंधन करने का कोई रत्ती भर दुस्साहस नहीं करता, शांतिपूर्ण माहौल में होता है जय श्रीराम।   


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मरे 300
देश की राजधानी दिल्ली में रविवार को आये आंधी तूफान में कुछ समय में एक साथ 300 मरे यानि 300 पेड़ों की जीवन लीला समाप्त हो गयी। आंधी तूफान में दो लोगों की जान गयी और वाहनों और कच्चे निर्माण तबाह हो गये। जान के नुकसान की भरपाई कोई नहीं कर सकता जबकि वाहनों और निर्माण के नुकसान की भरपाई कुछ महीनों में की जा सकती है। पेड़ की मौत पर्यावरण तथा मानव जीवन के लिये खतरे की घंटी होती है और इस नुकसान की भरपाई न तो पल में, न ही आज और कल में की जा सकती है। इस नुकसान को दूर करने में कई साल लगते हैं । दिल्ली में 15 साल चली सरकार ने पेड़  गिराये जाने को बड़ा जुर्म मान कर ऐसा कानून बनाया जिसमें आर्थिक दंड, सजा, और विकास योजनाओं के लिये पेड़ काटने की मंजूरी ले कर एक पेड़ काटने पर दस पेड़ लगाने का प्रवधान किया गया, पेड़ काटने की मंजूरी लेना कठिन और जटिल  है क्योंकि मंजूरी केवल उप राज्यपाल दे सकते हैं। पेड़ लगाने आसान हैं, उन्हें बड़ा करना, सदियों के लिये खड़ा करना बहुत मुश्किल होता है। एक कवि ने पेड़ काटने को कत्ल बताते हुये कविता लिखी और कहा--- खून के बदले खून, यानि जंगल का कानून, जंगल से अधिक सभ्यता में चलता है। आदमी के कत्ल पर मिलती मौत की सजा, पेड़ का कत्ल कर आदमी बच निकलता है। रविवार को जिन पेड़ों की जीवन लीला खत्म हुयी उस का कारण प्राकृतिक आपदा थी। ऐसी आपदा पर सरकार सहायता देती है। कई बार तेजी से बड़ी सहायता जारी करने के पीछे वोट की अभिलाषा के तराजू को आधार बनाया जाता है। पेड़ों के दिवंगत होने पर सहायता का प्रबंध शायद वोट की आभिलाषा के दायरे में नहीं माना जाता। बहुमत की सरकार के पास जनहित के बेतहाशा काम होते हैं और ये काम शायद प्राथमिकता में न आये। लेकिन 300 पेड़ों के न रहने से सजग दिल्लीवासियों को चिंता होना स्वाभाविक है। इन स्वर्गीय पेड़ों से हुई अपूरणीय क्षति की भरपाई केवल 3 हजार से अधिक पेड़ लगा कर और उनका परिवार के सदस्य की तरह लालन पालन कर की जी सकती है। उम्मीद है दिल्ली जागेगी।
पिटते रहे
अक्सर कहा जाता है कि आदमी औरतों को पीटते हैं। इसे अपराध मान कर घरेलू हिंसा रोकथाम कानून में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया । इस कानून ने घरेलू हिंसा से बचाने में औरतों को सहारा दिया मगर ऐसी घटनायें लगातार होती हैं। खबर है कि देश के एक प्रांत में हर महीने पत्नियों द्वारा पतियों की पिटाई के 200 मामले हो रहे हैं। दिल्ली में कभी पत्नी पीड़ित संघ सक्रिय था, आज उसका कोई नामलेवा नहीं बचा। सरकार ने दुष्कर्म के मामले में लिंग समानता का कानून बनाने की शुरुआत की है। अगर पतियों की पिटाई के मामले सही हैं तो सरकार को घरेलू हिंसा कानून को लिंग समानता का आधार देने पर विचार करना होगा।
73 साल साथ साथ
भारत में वैवाहिक जीवन के 50 साल पूरे होने को अहम मानते हैं। किस्मत वालों को यह सौभाग्य नसीब होता है। ऐसे दम्पति इसे धूमधाम से मनाते हैं। अमरीका में विवाह टूटना आम बात है, वहां अगर किसी का वैवाहिक जीवन 73 साल चल जाये तो अचरज होता है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश सीनियर की पत्नी बारबारा का जब देहांत हुया तो उनके वैवाहिक जीवन को 73 साल हो गये थे। 73 साल साथ साथ, गौरव का सबब है।