कैटल क्लास

फर्स्ट क्लास , सैकंड क्लास । थर्ड क्लास तो सुना था , कैटल क्लास तो अब सुनाई दिया है । थर्ड क्लास के अपमान और म्यार के मद्देनज़र रेलवे ने तो थर्ड क्लास को ही दूसरे मायने में सैकंड क्लास कर दिया था । हवाई जहाज़ में तो दो ही क्लास होती हैं ---ऐज़कुतिव

और इकानामी क्लास लेकिन अब एक जिम्मेदार और अंतर्राष्ट्रीय फेम के एक बड़े आदमी ने इकानामी क्लास को कैटल क्लास यानि मवेशियों के लिए हवाई जहाज़ में बनी सीट कह दिया है । ये बड़ा आदमी एक बड़े मंत्रालय में छोटा मंत्री है । एक सवाल यह उठता है ,अगर इस बड़े आदमी को रेलवे के सैकंड क्लास के गैरs आरक्षित कम्पार्टमेंट में सफर करना पड़े तो उसे वह चींटी क्लास कहने को मजबूर हो जायेंगे । इस कम्पर्त्मंत
में मुसाफिर एक दूसरे के साथ सटे सटे , धक्के खाते हुए ,ऊपर नीचे लटकते ,गिरते , थकते, दबते हुए सफर करते हैं । या यूँ कहिये, चीतींयों की तरह रेल डिब्बों में भरे होते हैं । कई लोग तो मुश्किल से ही साँस लेते है ।
ऐसे बड़े आदमी को शायद मालूम नहीं होगा कि महात्मा गाँधी भी थर्ड क्लास के गैर आरक्षित डिब्बे में सफर किया करते थे । अगर आम आदमी की नब्ज़ की सही रूप से जानकारी लेनी है तो गैर आरक्षित डिब्बे , यात्री बस , रेल स्टाप पर हो रही बेबाक बातचीत यानी गुफ्तगू ही फायदेमंद रहती है । मगर उन बड़े आदमियों का क्या किया जाए जो आम आदमी से हट कर और कट कर रहना चाहते हैं । यह बात अलग है कि ऐसे बड़े लोग अक्सर आम आदमी को ठगते हैं। इलेक्शन के वक्त तो ऐसे बड़े आदमी झुग्गी झोंप्री में घुड़साल में रहने वाले आदमी से भी उम्मीद के मुन्तजिर होते हैं। कड़कती धुप में काम कर रहे अधनंगे मजदूर को भी बड़े आदमी पूरी इज्ज़त के साथ नमस्कार करते हैं और उनके सामने झुके झुके दिखाई देते हैं।

यह सच है कि इलेक्शन के बाद और उससे पहले का दौर और मंत्री बन के रहने का दौर एक जैसा नहीं माना जा सकता । इलेक्शन जीतने और मंत्री बनने के बाद रहन सहन, चाल ढाल , नजरिया सोच सब बदल जाता है । ऐसे में आम आदमी गिरा हुआ इंसान दिखाई देता है। बड़े आदमियों को ऐसे आम आदमियों से बदबू आने लगती है और इलेक्शन के दिनों में गले मिलने से परहेज़ नहीं करने वाले बड़े आदमी अब आम आदमी से हाथ भी नहीं मिलाते , हाथ तो दूर नज़रें भी नहीं मिलाते । अचानक जनता जनार्दन बड़े आदमियों को बोझ लगने लगते हैं।

ऐसे ही एक बड़े आदमी ने इकानामी क्लास को मवेशी क्लास तो कहा मगर यह नहीं सोचा कि हिन्दुस्तान के महज पाँच फीसद लोग ही अपने बूते पर हवाई जहाज़ की इकानामी क्लास में सफर कर सकते हैं। इस तरह इकानामी क्लास को मवेशी क्लास कहने से देश के गरीब और मध्यम वर्ग के लोग आहात हुए हैं। मवेशी क्लास का बवाल बन रहा है। आम आदमी इस घटना से आहत है और अब तो इस बड़े आदमी की पार्टी के एक सी ऍम ने इस बड़े आदमी के इस्तीफे की मांग भी कर दी है ।

मेंस फैशन शो

देश की राजधानी दिल्ली सदैव ज्यादातर क्षेत्रों में सबसे आगे रहती है । दिल्ली में ही पहली बार आयोजित किया गया आल मेंस फैशन शो। एक ऐसा फैशन शो या फैशन परेड जिसमें केवल आदमी शामिल हुए । इस शो में कहने को तो नजाकत और नफासत की धनी सॉफ्ट स्किन नदारद थी मगर शो में शामिल पुरुषों में इन गुणों के अंश दिखाई दे रहे थे । कहते हैं कि फैशन का रिश्ता तो केवल महिलाओं से होता है मगर पुरुषों ने इस धारणा
को पूरी तरह तहस नहस कर दिया है । जिस तरह रैंप पर अलग अलग सजीली , रंगीली , चमकीली , रसीली , तंग और ढीली पोषक में थिरकते हुए पुरूष दिखाई देने लगे दर्शकों पर बिजलियाँ गिरने लगीं । पुरुषों ने दिखा दिया कि फैशन का जादू सर चढ़ कर बोलता है जी हाँ ऐसा सचमुच दिखाई दिया और इस शो की सराहना करने वालों में औरतों से ज़यादा आदमी थे जो शायद इस नए चलन का समर्थन कर रहे थे । इस फैशन शो में ड्रेस डिजाइनरों की फैशन सेंस का जलवा स्थापित हो गया । फैशन तो व्ही होता है जो व्याकुल आंखों को शीतल कर दे तभी तो कहते है ,फैशन कूल कूल करता है मगर हॉट होता है। इस शो में पुरुषों ने नए नए ड्रेस के साथ अपने हैण्ड
सम होने की ताईद कर दी । अक्सर कहा जाता है कि फैशन और शर्म का शेर और बकरी का सम्बन्ध होता है तभी तो पुरुषों ने भी फैशन के इस रैंप पर महिलाओं की
तरह अंग प्रदर्शन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । फैशन में तो सब जायज़ ही माना जाता है , संसार इस का पुख्ता सबूत है ।