दिल्ली,देश,दुनिया---सत पाल 18.07.2017
भगवान बचाए
दिल्ली की सड़कें दिन रात, चौबीसों घंटे अलग अलग किस्म के बेलगाम वाहनों से लबालब, खतरों के साये में घिरी, दुर्घटना, अनहोनी से आशंकित, चालकों के लिये चुनौती, पैदलचालकों के लिये मौत का कुंआ और घर पर इंतजार कर रहे परिजनों के लिये लिये भारी, लाचारी और बेबसी का सबब बनी रहती हैं। चालक और पैदलचालक जब घर से निकलते हैं तो उन्हें केवल भगवान का भरोसा होता है। वे मानते हैं कि जिसने जीवन दिया है वही रक्षा करेगा। यह सही है कि राजधानी में वाहनों की संख्या दिनबदिन तेजी से बढ़ती जा रही है, इसके अलावा दिल्ली में चालकों की आदत बन गयी है कि यातायात नियमों को नये नये तरीकों से धत्ता बता कर, जान हथेली पर रख के बेधड़क बादशाह बनते हुये अपनी शेखी बघारें। न जान की चिंता है न परिवार से कोई लगाव, हम राज करें सड़कों पर, भले हो जाये सब तबाह। कुछ भी हो एसे लोग भी मरने से डरते हैं मगर अपनी दौलत, दबंगई, अकड़ और रुतबे तथा मदहोश जवानी के बल पर निडर हो कर नियमों का उल्लंघन करते हैं। ये लोग मरने के डर को मीलों दूर रखने के लिये देवी, देवताओं और गुरुओं की तस्वीर और छोटी छोटी सुंदर मूरत वाहन के डैश बोर्ड पर लगाते हैं। देखा गया है कि एसी तस्वीर और मूरत उन्हें दुर्घटना और मौत से नहीं बचा पाती और उनकी तकदीर और सूरत पर रत्ती भर भी रहम नहीं करती। अब ऐसे चालकों को बचाने के लिये देवी, देवताओं और गुरुओं की ऐसी तस्वीरें और मूरत बनायी गयीं हैं जो खतरे के समय चालकों से संभलने, सावधान रहने और जान बचाने की कोशिश करने का  ऑटोमेटिक स्पष्ट संदेश बोल कर देतीं हैं। जी हां एक कंपनी ने ऐसी मूर्तियां बनायी हैं जो स्पीड का उल्लंघन करने पर बोल कर हिदायत देती हैं क्योंकि वाहन के डैश बोर्ड पर विराजमान मूर्तियों की एक तार स्पीडो मीटर तक जुड़ी रहती हैं और खतरे के समय चालकों को सावधान हो कर जान बचाने को मजबूर कर देती हैं। चालक अपनी श्रद्धा और आस्था के अनुरूप गणपति, शिव शंकर, श्री राम, कृष्ण भगवान, बाबा नानक, यीशू मसीह, काली माता, सरस्वती मां, वैष्णो देवी की मूरत अपने वाहन में प्रतिष्ठापित कर रहे हैं। उनका विश्वास है कि उनकी आस्था की मूरत हर खतरे में उन्हें सुरक्षित बनाये रखेगी। आखिर भगवान ही उनका आसरा बना हुआ है।
गंगा और तिरंगा
कवि कुमार विश्वास की कविता है- दिल में गंगा हो हाथों में तिरंगा हो। ऐसा तभी हो सकता है जब सांसें गिन रही पवित्र गंगा को जीवन देने के लिये एनजीटी के निर्देशों का पूरी तरह सभी पक्ष पालन करें और गंगा को दूषित, प्रदूषित नहीं करें। इसी तरह तिरंगे की आन, बान, शान तभी बढ़ेगी जब निर्लज्ज, बिगड़ैल,उद्दंड,धूर्त गऊ भक्तों पर पूरी तरह लगाम लगे और उनका पुख्ता इलाज किया जाये।
महिला रहित द्वीप
यूनेस्को ने जापान के एक ऐसे द्वीप को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है जहां किसी भी महिला का आना वर्जित है। यहां हर साल एक बार मंदिर में पूजा के लिये  200 पुरुषों को  केवल दो घंटे के लिये आने की अनुमति दी जाती है। पुरुषों के लिये निर्वस्त्र हो कर समुद्र में स्नान कर के मंदिर में जाने की शर्त है। ओकिनोशिमा द्वीप में मंदिर में केवल एक पुजारी रहता है। इस सुंदर द्वीप के पर्यावरण को बचाने के लिये अब पर्यटकों के आने पर पाबंदी लगा दी गयी है।   
 


दिल्ली,देश,दुनिया—सत पाल  11.07.2017
पिछड़ गयी दिल्ली
ऐसा नहीं कि देश की राजधानी दिल्ली हर एक क्षेत्र में पिछड़ रही है मगर दिल्ली लगातार कोशिशों के बावजूद वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा हासिल नहीं कर सकी हालांकि अहमदाबाद को यह दर्जा मिलने से भी पूरे देश को खुशी है। अगर देखा जाये तो दिल्ली के पास यूनेस्को से यह दर्जा प्राप्त करने के लिये शायद अहमदाबाद से बहुत अधिक आधार हैं तो फिर क्या कारण हैं कि दिल्ली आज तक इस गौरवपूर्ण कीर्तिमान से वंचित है। दिल्ली के पास अपना विविध समृद्ध इतिहास, सात से अधिक शहरों के  अलग अलग समय बसने की कहानी और उनके बोलते, रहस्य खोलते किले, पिछले सैंकड़ों वर्षों के दौरान मुगलकाल, फिरंगी शासन और आजादी के बाद सात दशक के काल और इन सबसे पहले के दौर में बनाये गये स्मारकों, शानदार भवनों की अनमोल विरासत है। आजादी की लड़ाई से जुड़ी अनेक सच्ची कहानियों और कुर्बानियों से संबंधित पूजनीय स्थान हैं। यहां पुराने शाहजहांबाद और लुटियन दिल्ली तथा आधुनिक शाहजहां यानि डीडीए द्वारा विकसित खुली, नई शैली के निर्माण वाली नयी नकोर दिल्ली के विस्तृत क्षेत्र का एक ऐसा अनूठा  संगम है जो किसी अन्य शहर में नहीं हो सकता। इसके अलावा हरियाली और अलग अलग रहन सहन का नजारा भी है। सवाल यह है कि दिल्ली को यह दर्जा क्यों नहीं मिला । दिल्ली सरकार ने 2008 और 2013 के दौरान इस दर्जे के लिये गंभीर प्रयास किये थे, बड़े स्तर पर शोध और डाक्युमेंटेशन किया गया. प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा गया। नयी सरकार बनने पर भी कहते हैं कि कोशिश जारी रखी गयी, यह नहीं कहा जा सकता कि कोशिशों में कितनी गंभीरता थी, मगर यूनेस्को के पास से प्रस्ताव वापस मंगा लिया गया।  इस तरह दिल्ली अब भी अपने वाजिब हक से महरूम है।    
पिता ने पुत्र को डांटा
ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि किसी प्रमुख नेता ने अपने पुत्र यानि अपनी ही पार्टी के जूनियर नेता और प्रदेश में बड़े पद पर आसीन पुत्र को खुले आम डांटा हो। इस बार सीबीआई के शिकंजे में फंसे पूर्व सीएम तथा केन्द्रीय मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में अपने पुत्र उप मुख्यमंत्री को इसलिये डांटा क्योंकि वह प्रेस कांफ्रेंस में कुछ ज्यादा आपत्तिजनक बात कर रहा था जिससे बवाल बढ़ सकता था। खुद ऐसी बातें करते रहने के बावजूद पिता ने पुत्र को डांट कर फर्ज निभाया। इससे पहले एक पिता देश के सबसे बड़े प्रदेश के सीएम अपने पुत्र की सर्रेआम खिंचाई करते रहे हैं।
योग का कमाल
योग तन, मन को स्वस्थ, सजग रखने के अलावा और भी कमाल कर सकता है। इससे हजारों मील दूरी के बावजूद मित्रता बढ़ाई जा सकती है। इस्राइल के पीएम ने  कहा कि ताड़ासन करते हुये गर्दन दाऐं ओर करने पर उन्हें भारत दिखता था और इंडिया के पीएम को वशिष्टासन करते हुये बाऐं ओर गर्दन घुमाने पर इस्राइल दिखता था। योग जीवन शैली संवारे, मैत्री बढ़ाये।  

दिल्ली,देश,दुनिया—सत पाल  01.07.2017
तौबा, एमटीएनएल
दिल्ली समेत देश में अक्सर यह चर्चा रहती है कि सरकारी सेवाओं के मुकाबले निजी सेवाप्रदाताओं की सेवायें बेहतर हैं। सरकारी सेवाओं के बारे में लोगों में विश्वास जमना कठिन हो रहा है। सेवा का उपयोग करने वाले यह सोच कर परेशान हैं कि आखिर किस तरह और किस से उत्तम सेवायें मिल सकती हैं। युवा वर्ग तो सरकारी सेवाओं से एक बार दिक्कत महसूस करते ही सरकारी सेवाओं का मूल्यांकन शून्य मान कर तुरंत निजी सेवाप्रदाता की ओर दौड़ने लगता है। अगर हम टेलिफोन सेक्टर की बात करें तो यह कहना मुश्किल हो जाता है कि उपयोगकर्ताओं का संतुष्टि का स्तर अच्छा है। लोग बड़ी संख्या में अपने कनैक्शन कटवा कर निजी कंपनियों के पास जा रहे हैं। इसके बावजूद एमटीएनएल को कोई चिंता नहीं हालांकि वह अपनी सेवाओं में सुधार के लगातार दावे करते हैं। कहते हैं कि दिल्ली के बाहर भारत संचार निगम लिमिटेड-बीएसएनएल की सेवायें दिल्ली के एमटीएनएल से बेहतर हैं। कुछ भी हो बीएसएनएल ने ग्राहकों को बांध कर रखने के लिये एक नहीं अनेक आकर्षक पैक देने का सिलसिला शुरू किया है मगर एमटीएनएल को इस बारे में सोचने की चिंता ही नहीं है। सरकारी सेवाप्रदाताओं के मुकाबले निजी कंपनियों की सेवायें, शिकायत निवारण की तत्परता, कर्मचारियों का व्यवहार औऱ शिष्टाचार लाख दर्जे बेहतर है। दिल्ली में तो एमटीएनएल की सेवाओं को देख कर यह जुमला इस्तेमाल किया जाता है कि मेरा टेलिफोन नहीं लगता। टेलिफोन और वाई फाई की बार बार शिकायत करने के बाद अगर सुनवाई नहीं हो तो ग्राहकों को गुस्सा आता है और वह दूसरे विकल्प तलाश करते हैं। एमटीएनएल के सुविधा केन्द्र सच कहें दुविधा केन्द्र बन गये हैं। हमारे एक मित्र का वाई फाई कनैक्शन कई दिन तक खराब रहा और शिकायत करने और बार बार एसडीओ से बात करने पर भी कनैक्शन ठीक नहीं हुआ।  आखिर तंग आ कर कनैक्शन कटवाने और निजी कंपनियों का कनैक्शन लेने का मन बना लिया गया। कनैक्शन कटवाने में तो हमारे मित्र को पसीने आ गये और वह  फोन और मोडम ले कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक चक्कर लगाता रहा। जैसा संचार केन्द्र ने कहा वैसा मान कर दो स्थानों की दौड़ लगानी पड़ी मगर संचार केन्द्र पर भी स्पष्ट समाधान नहीं मिला आखिर जैसै जैसे तीन घंटे के बाद फोन और मोडम वापस किया जा सका। दो दिन बाद एमटीएनएल से बार बार फोन आया कि क्या आप का वाई फाई काम नहीं कर रहा।   उधर निजी कंपनी के लोग फोन पर अनुरोध मिलने के एक घंटे के भीतर वाई फाई चालू कर गये। यह फर्क है सरकारी सेवाप्रदाता और निजी सेवाप्रदाता में। अब मित्र की लैंडलाइन खराब है, शिकायत दर्ज कराई गयी । ऊपर वाला जाने फोन ठीक होगा या उसका भी वाई फाई की तरह असमय इंतकाल होगा।
आंध्र में शिष्टाचार
आंध्र प्रदेश में सरकारी बसों की दुर्घटनायें बहुत अधिक होने पर राज्य सरकार ने मनन किया तो एक समाधान सामने आया, इसका परिणाम अच्छा निकल रहा है। अब रात में पुलिस जगह जगह बसों को रोक कर चालकों की थकान और तनाव दूर करने के लिये उन्हें  ठंडा पानी और गर्म चाय दे रही है। इसे शिष्टाचार कह सकते हैं।
लंदन की नयी पहल
लंदन में अब स्ट्रीट लाइट से इलेक्ट्रिक कार चार्ज की जा सकेगी। इस तरह वहां हर 200 मीटर पर चार्जिंग स्टेशन बन जायेगा। कारों को एक ऐसी लीड दी जायेगी जिससे ली गयी बिजली का हिसाब होगा और बिल का भी सीधे बैंक से भुगतान होता रहेगा। नयी सुविधा, नयी पहल।
दिल्ली, देश, दुनियासत पाल  25.062017
पद से लाभ
पद से लाभ प्रत्येक लेना चाहता है मगर आज प्रश्न है कि लाभ के पद पर रहे दिल्ली में सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों ने पद से लाभ उठाया कि नहीं। मुद्दे की तह तक जाने के लिये समझना होगा कि दिल्ली विधानसभा के 70 सदस्य होते हैं और दिल्ली सरकार में 7 से ज्यादा मंत्री नहीं बन सकते। 2015 के चुनाव में जब करप्शन विरोधी पार्टी के 67 उम्मीदवार जीते तो 7 मंत्री बनाने के बाद पार्टी के लिये बाकी 55 से अधिक विधायकों को कोई पद देने की बड़ी चुनौती सामने आयी। पार्टी ने अन्य राज्यों में थोक में बनाये गये संसदीय सचिवों की तरह 21 विधायकों को मार्च 2015 में यह सौगात दी मगर इससे पहले इन पदों को लाभ के पद के दायरे से हटाने के लिये कानून में संशोधन नहीं किया और विधायकों को पद देने के लिये एल जी से मंजूरी भी नहीं ली। इस पर हंगामा होने पर दिल्ली सरकार ने कानून में संशोधन का विधेयक पारित करवाया और इसे पिछली तिथि से लागू करने का प्रावधान रखा। ऱाष्ट्रपति ने पारित विधेयक को मंजूरी नहीं दी। इसके बाद हाई कोर्ट में संसदीय सचिवों के पदों को गैर कानूनी घोषित करने का मामला आया और एक वकील ने राष्ट्रपति को याचिका दे 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की। राष्ट्रपति ने याचिका निर्वाचन आयोग के पास कारर्वाई के लिये भेज दी। हाई कोर्ट ने 8 सितंबर 2016 के फैसले में इन पदों को अवैध घोषित कर दिया और 21 विधायक उस दिन से संसदीय सचिव नहीं रहे मगर जून 2017 के तीसरे सप्ताह में आयोग ने इन विधायकों का अनुरोध खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि हाई कोर्ट के निर्णय के मद्देनजर आयोग में आगे सुनवाई की जरूरत नहीं है। आयोग के अनुसार इन विधायकों ने सही मायने में संसदीय सचिव के रूप में काम किया और अब तय किया जाना है कि उन्होंने मार्च 2015 और सितंबर 2016 के बीच पद से जुड़ी सुविधाये लीं कि नहीं।  अगली सुनवाई के बाद विधायकों की सदस्यता पर अयोग्यता  की तलवार का खतरा अधिक गंभीर होता जायेगा। पार्टी कहती है कि सदस्यता को कोई खतरा नहीं होगा और वह आयोग के निर्णय को समुचित अदालत में चुनौती देगी। यह अधिकार बनता है मगर यह मामले को लटकाये रखने की मंशा लगती है, पार्टी पहले भी आयोग को सूचना देने में शायद जानबूझ कर देरी करती रही है, शायद वह चाहती हो कि किसी तरह 2019 तक समय निकले और अगला चुनाव आ जाये। पार्टी को गिरती साख की चिंता है अगर यह नहीं होता तो वह 21 विधायकों को विधानसभा से त्यागपत्र दिला कर फिर चुनाव में उसी तरह जितवा देती जैसे रायबरेली से देश की सबसे पुरानी पार्टी की अध्यक्ष फिर जीतीं थी।
गजब की फुर्ती
 मध्य प्रदेश की बरकतउल्ला युनिवर्सिटी के परीक्षापत्र जांचकर्ता ने गजब की फुर्ती दिखाते हुये 24 घंटों में 645 पेपर जांच दिये, एक पेपर के लिये 20 मिनट के बजाय लगे सवा दो मिनट। खाक मूल्यांकन हुआ होगा परीक्षार्थिर्यों के ज्ञान का।
कनाडा में बल्ले बल्ले
कनाडा में मेहनत के कारण सिखों की बल्ले बल्ले हो रही है। इस समुदाय से रक्षा मंत्री बना, संसद में पंजाबी दूसरी भाषा बनी और अब पगड़ीधारी पहली सिख महिला योग्यता के कारण सुप्रीम कोर्ट की जज बनी । इस समुदाय ने कनाडा को वतन माना है, अन्य समुदायों को इनसे सीखना चाहिये।
आरोपों की बरसात

 दिल्ली में पिछले कई वर्षों से आरोपों के बादल छाये रहे। बादलों के साये में करप्शन के खिलाफ अन्ना के नेतृत्व में आंदोलन चला जिसने केवल दिल्ली नहीं अपितु समूचे संसार को हैरान कर दिया जिन्हें निशाना बनाया जा रहा था उन्हें परेशान कर दिया। आरोपों की खबरों को अखबारों के पहले पन्ने पर जगह मिली। अपने मार्गदर्शक की इच्छा के विपरीत आरोपों की जंग में मुखर रहे कप्तान ने आरोपों के बादलों के मंद प्रकाश के तले नयी पार्टी का गठन कर दिया। पार्टी बनाने के बाद बड़ी बड़ी हस्तियों पर जोर शोर से आरोप लगाये जाते रहे लेकिन हर सप्ताह एक और राजनेता को निशाना बना कर कथित रूप से सच्चे-पक्के आरोप लगाये गये। किसी एक और हस्ती पर आरोपों की बौछार की गयी तो पिछले सप्ताह के घोषित आरोपी को भुला कर उसका खाता बंद कर दिया गया। कथित गंभीर और मनोरंजक आरोपलीला के माहौल में पार्टी की चर्चा यत्र,तत्र,सर्वत्र हुई तो इसी आकर्षण में कई पत्रकार और सामाजिक वर्करों ने पार्टी का हाथ थामा। नयी पार्टी के नेताओं ने खुद को पाक साफ, ईमानदार, चरित्रवान होने का जोरदार दावा देश के सामने पेश किया।  दावे के दमखम पर पार्टी ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा और नतीजों ने सभी को स्तब्ध किया। 49 दिन की इस पार्टी की अल्पसंख्यक सरकार की ऑक्सीजन बंद किये जाने के बाद राजधानी ने एक साल तक राष्ट्रपति शासन देखा। इस बीच पार्टी के विधायक तोड़ने की कोशिशें खबरों में रहीं मगर किसी ने कोशिशों का सबूत देने का प्रयास नहीं किया।  पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी का भविष्य शून्य के लघु दायरे में कैद कर दिया और भगवा पार्टी को बस दो या तीन का सबक सिखाया। 2015 में फिर सरकार बनाने के बाद पार्टी ने पुराने आरोपों के संगीत की धुन पर नाचना बंद कर दिया। कुछ महीनों के बाद शायद  पार्टी ने सोचा कि क्यों न आरोपों का खेल इन हाउस खेला जाये। खेल शुरू हुआ तो कई साथियों को हफरा तफरी में बाहर का रास्ता दिखाया गया और पार्टी तथा सरकार के सर्वेसर्वा को कई लोगों ने तानाशाह कहा। आरोपों का खेल मंत्रीमंडल में खेला गया लेकिन पार्टी तथा सरकार में तेजी से सीढ़ियां चढ़ने वाले बर्खास्त मंत्री ने अपने कथित देवता पर आरोपों की मूसलाधार बरसात शुरू कर दी। ऐसा लगा कि वह पूरी हिम्मत और शिद्दत के साथ बेहद गंभीरता से आरोप लगा रहे हैं । वे आरोपों से भले ही सरकार के मुखिया का सीना छलनी नहीं कर सके परंतु उन्होंने करप्शन से लड़ने वाले सबसे बड़े योद्धा को मौन और निरुत्तर कर दिया। ईमानदारी के कथित देवता बचाव नहीं कर सके। बर्खास्त मंत्री रोज आरोपों की बरसात करते हुये गंभीरता की बलि दे बैठे। सरकार के मुखिया ने मौन रहते हुये अपने निवास पर लगातार जनता दरबार लगा साबित कर दिया कि वह अब शासन को चुस्त, दुरुस्त और तंदरुस्त करने में जुटे हैं। मौन में कितनी गंभीरता, ताकत होती है, समय बतायेगा।
मेट्रो की हेरिटेज लाइन


कहते हैं- देर आयद दुरुस्त आयद, जिसका काफी महीनों से था इंतजार, उसका जमीं के नीचे हो गया दीदार। जी हां शाहजहां के बसाये शाहजहांनाबाद में अब बने तहखानों में इस ऐतिहासिक शहर का दिल धड़का तो यूं लगा जैसे पुराने शहर को लगा 21वीं सदी का रौबदार तड़का। वक्त बदलता है, शहर आगे बढ़ता है, नयेपन का जादू चढ़ता है, जमाना चलता है। एसे में दिल्ली गेट से कश्मीरी गेट के बीच दिल्ली मेट्रो के अंडर ग्राउंड रूट का पर्दा हटना, ऐसा लगा कि जैसे पुराने शहर को ताजा तरीन महकती हवा और एक नायाब  तोहफा मिल गया हो। कहने को महज स्टेशन हैं चार मगर इससे फायदे हैं हजार। दिल्ली गेट, जामा मस्जिद, लाल किला और कश्मीरी गेट का जितना रिश्ता दिल्ली के एक करोड़ 87 लाख लोगों के साथ है उससे भी ज्यादा संबंध इतिहास और आजादी के संघर्ष के साथ भी है। इन स्टेशनों के पास से गुजरते और भीतर जाते ही आपको  पुरानी दिल्ली के धड़कते दिल और उसकी कहानी पर से पर्दा हटता महसूस होगा और आपकी नजरों के आगे इतिहास की घटनायें फिर जवान हो कर आपसे एकाकार करने लगेंगी। मेट्रो की हेरिटेज लाइन पर सफर करने के मायने होंगे कि आपने जाने अनजाने दिल्ली के कई सौ साल की हलचल को अपनी आंखों से पढ़ना, देखना और समझना शुरू कर दिया है। अतीत के गौरव और वर्तमान के सत्य तथा भविष्य के सपनों का तिरंगा आपके दिलो दिमाग पर लहरायेगा, दिल्ली की बीते दिनों की करवटों का आभास करायेगा और आपको सफर के झटकों के बगैर मेट्रो के टशन के लटकों के उल्लास से भी रूबरू करवायेगा। इस लाइन के खुल जाने से इतिहास का द्वार खुल गया है और दिल्ली दरबार के अलग थलग रहने वाले मुखिया को भी केन्द्र सरकार के एक अहम वजीर के साथ बैठकर राजधानी के हित में कुछ करने का मतलब समझ आया होगा। नयी हेरिटेज लाइन ने भूमिगत रास्ते से पुरानी दिल्ली की बादशाहत के मरकज लाल किले को नयी दिल्ली के मंडी हाउस तथा जनपथ और अब के राष्ट्राध्यक्ष के भवन एवं  दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ सीधे जोड़ दिया है। इसके अलावा कश्मीरी गेट स्टेशन पर तीन लाइनों का संगम और लाइन बदलने का बड़ा जंक्शन बना दिया है। अब शाहजहांनाबाद के बाजार गुलजार होंगे, सड़कों पर भीड़ कम होगी तो पर्यटक अधिक आयेंगे, स्मारकों के संरक्षण के काम की जरूरत महसूस की जायेगी और शाहजहां की दिल्ली बिना किसी रोक टोक के नये जमाने का आलिंगन कर नवाचार को अपनाते हुये गालिब और जफर के अशआर बार बार लगातार सुनायेगी।


दिल्ली, देश, दुनिया—सत पाल 06-06-2017
शहीद रविन्द्र कुमार
इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली में कई लोगों, संस्थाओं और नगर निगमों को स्वच्छता के क्षेत्र में काम करने और परिणाम दिखाने का जुनून चढ़ा हुआ है। कई सरकारी संगठनों और नगर निगमों पर अपना रैंक सुधारने या फिर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की प्रति दिन की फटकार के कारण अनूठा दबाव भी बना हुआ है। दबाव होता है तो तेजी से काम होता है और लक्ष्य हासिल करने की जिद्द भी बढ़ती है। जब किसी काम में दिवानगी सिर चढ़ कर बोले तो लगता है कि अब कुछ न कुछ बदलाव आने वाला है। सरकारी संगठनों में तो अक्सर काम और लक्ष्यों को ज्यादातर हलके में लिया जाता है और कठिन समय में भी कई लोग अपने अवकाश लेने या अकारण घर बैठ जाने से संकोच नहीं करते मगर पुलिस सेवा में ऐसा नहीं चलता, अवकाश लेना हो तो पहले मंजूरी लेना जरूरी होता है। न फर्लो चलती है और न ही मन मर्जी। अर्जी दी तो मानने या नहीं मानने की मर्जी बॉस की, कहते हैं अर्जी मेरी मर्जी उनकी। इन लोगों को तो गंभीर समय में अवकाश रद्द कर काम पर वापस बुला लिया जाता है। अगर हम किसी ऐसे आदमी की बात करें जिसे कुछ न कुछ करने का जुनून हो तो मानना होगा कि वह चट्टानों, तूफानों, आंधियों, परिणामों से नहीं डरता और अपने संकल्प में बाधा नहीं आने देता भले ही कितनी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़े। ऐसे ही एक आदमी का नाम था रविन्द्र कुमार जिसका मंत्र था- स्वच्छता परमो धर्म। इस ई रिक्शा चालक को यह बर्दाश्त नहीं था कि कोई आदमी देश की राजधानी में सड़क पर दीवार की तरफ खड़ा होकर ईज करता दिखाई  दे और खुले में दबाव भरा नित्य कर्म करता  दिखे। एक दिन सड़क पर दीवार की ओट में नंबर वन कर रहे दो लोगों को जब रविन्द्र कुमार ने रोका तो उसे शायद यह मालूम नहीं होगा कि उसकी आखिरी रात दस्तक दे रही है। उन बिगडैलों ने रात में रविन्द्र को पीट पीट कर यमराज के हवाले कर दिया मगर स्वच्छता के परवाने का जज्बा नहीं समझा। क्या हमें रविन्दंर को शहीद नहीं मानना चाहिये, क्या देश में सबसे उदार दिल्ली सरकार को उसके परिवार को दस करोड़ की अनुग्रह राशि नहीं देनी चाहिये। जब उदार सरकार दूसरे राज्यों के कथित शहीदों की झोलियां भर देती है तो रविन्द्र के लिये कैसी मजबूरी है। पी एम को भी रविन्द्र कुमार का जिक्र मन की बात कार्यक्रम में करना चाहिये और बिग बी को भी अपने अभियान में इस शहीद को नमन करना चाहिये। जज्मे को सलाम करो, न झुको न डरो।
पानी का दर्द
कर्नाटक के पावागाडा तालुक के निवासियों का जीवन मुसीबतों से भरा है क्योंकि उन्हें हर रोज आंध्र प्रदेश जा कर चिकन्नाडुका से पीने और दूसरी जरूरतों के लिये पानी भर कर लाना जरूरी होता है। दस किलोमीटर की इस यात्रा में उनका हमसफर होता है एक साइकिल और वहां पानी की लाइन में इंतजार का वक्त गुजारने का साथी होता है दर्द। उनका यही महज काम है क्योंकि और कुछ करने का उनके पास कोई समय ही नहीं बचता। हे भगवान,सब परेशान।
दो पहलू
आयरलैंड में भारतीय मूल के डाक्टर महाराष्ट्र के 38 साल के लियो वराडकर पी एम बने हैं। जब विदेशों में भारतीय मूल के किसी आदमी को ऐसा पद मिलता है तो हमें अच्छा लगता हैं। वराडकर स्व घोशित समलैंगिक हैं। उधर मलेशिया सरकार ने समलैंगिकता के विरोध में बेहतरीन वीडियो बनाने वाले को एक हजार डॉलर का इनाम देने का एलान किया है। समझा होते हैं न दो पहलू।
दिल्ली, देश, दुनिया---सत पाल 30-06-2017
दुरुस्त आयद
कहते हैं- देर आयद दुरुस्त आयद, जिसका काफी महीनों से था इंतजार, उसका जमीं के नीचे हो गया दीदार। जी हां शाहजहां के बसाये शाहजहांनाबाद में अब बने तहखानों में इस ऐतिहासिक शहर का दिल धड़का तो यूं लगा जैसे पुराने शहर को लगा 21वीं सदी का रौबदार तड़का। वक्त बदलता है, शहर आगे बढ़ता है, नयेपन का जादू चढ़ता है, जमाना चलता है। एसे में दिल्ली गेट से कश्मीरी गेट के बीच दिल्ली मेट्रो के अंडर ग्राउंड रूट का पर्दा हटना, ऐसा लगा कि जैसे पुराने शहर को ताजा तरीन महकती हवा और एक नायाब  तोहफा मिल गया हो। कहने को महज स्टेशन हैं चार मगर इससे फायदे हैं हजार। दिल्ली गेट, जामा मस्जिद, लाल किला और कश्मीरी गेट का जितना रिश्ता दिल्ली के एक करोड़ 87 लाख लोगों के साथ है उससे भी ज्यादा संबंध इतिहास और आजादी के संघर्ष के साथ भी है। इन स्टेशनों के पास से गुजरते और भीतर जाते ही आपको  पुरानी दिल्ली के धड़कते दिल और उसकी कहानी पर से पर्दा हटता महसूस होगा और आपकी नजरों के आगे इतिहास की घटनायें फिर जवान हो कर आपसे एकाकार करने लगेंगी। मेट्रो की हेरिटेज लाइन पर सफर करने के मायने होंगे कि आपने जाने अनजाने दिल्ली के कई सौ साल की हलचल को अपनी आंखों से पढ़ना, देखना और समझना शुरू कर दिया है। अतीत के गौरव और वर्तमान के सत्य तथा भविष्य के सपनों का तिरंगा आपके दिलो दिमाग पर लहरायेगा, दिल्ली की बीते दिनों की करवटों का आभास करायेगा और आपको सफर के झटकों के बगैर मेट्रो के टशन के लटकों के उल्लास से भी रूबरू करवायेगा। इस लाइन के खुल जाने से इतिहास का द्वार खुल गया है और दिल्ली दरबार के अलग थलग रहने वाले मुखिया को भी केन्द्र सरकार के एक अहम वजीर के साथ बैठकर राजधानी के हित में कुछ करने का मतलब समझ आया होगा। नयी हेरिटेज लाइन ने भूमिगत रास्ते से पुरानी दिल्ली की बादशाहत के मरकज लाल किले को नयी दिल्ली के मंडी हाउस तथा जनपथ और अब के राष्ट्राध्यक्ष के भवन एवं  दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ सीधे जोड़ दिया है। इसके अलावा कश्मीरी गेट स्टेशन पर तीन लाइनों का संगम और लाइन बदलने का बड़ा जंक्शन बना दिया है। अब शाहजहांनाबाद के बाजार गुलजार होंगे, सड़कों पर भीड़ कम होगी तो पर्यटक अधिक आयेंगे, स्मारकों के संरक्षण के काम की जरूरत महसूस की जायेगी और शाहजहां की दिल्ली बिना किसी रोक टोक के नये जमाने का आलिंगन कर नवाचार को अपनाते हुये गालिब और जफर के अशआर बार बार लगातार सुनायेगी।
सत्कर्म गये कहां
सत्कर्म ढूंढते रह जाओगे मगर हर शहर, हर डगर पर दास्तान ए दुष्कर्म सुनते, देखते रह जाओगे। कहीं दिल्ली की निर्भया के दर्द वाली दिल्ली, कभी रोहतक, कभी जेवर, कभी बुलंदशहर, कभी मुरथल , कभी बंगलौर क्या है यही है आज का सत्य और नया दौर। इस अंधी हवस और अंधी दौड़ को रोकना होगा वरना हमारा भविष्य दांव पर लगा होगा। कन्या पूजन करने वाला देश किस दिशा में जा रहा है, उत्तर की देश प्रतीक्षा कर रहा है।
क्रिकेट की ओवर डोज
आईपीएल के लगभग दो महीने के शोर शराबे के बाद अब पहली जून से 18 जून के बीच इंगलैंड में आठ देशों के बीच 15 वन डे मैचों कीच चैंपयिंस ट्रॉफी प्रतियोगिता शुरू हो रही है। भारत भी इसमें शामिल है। क्या बात है कि प्लेयर हमारे थकते नहीं हैं। कुछ तो करो रहम , किसी और खेल को भी दे दो सहारा तथा दम। हम 15 देशों के खेल के दीवाने बने हैं मगर 150 से अधिक देशों के खेल फुटबाल में अब भी जीरो हैं।