आधी आबादी ,पूरा हक

आधा है तो पूरे का इरादा है । आधी दुनिया पूरा हक , रोक सकोगे कब तक ? राज करेगी औरत, बाकी रहे न कोई, यह जग सारा अपना , रोक सके न कोई । ये आवाज़ मेरी आपकी या हमारी नहीं है , ये आवाज़ है हमारे मुल्क की औरतों की । हमारे देश की औरतें अब पूरे राज काज पर कब्ज़ा करने के लिए अंगडाई ले रही हैं। उनके इरादे बुलंद हैं , उन्हें चुनौतियाँ पसंद हैं। अब सरकार ने पंचायतो , नगर पालिकाओं और नगर निगमों यानी तमाम लोकल बाडीज में औरतों के लिए आधी यानी पचास फीसद सीटें रिज़र्व करने का अहम् फैसला किया है । इस का मतलब है , लोकल बाडीज में एक तिहाई सीटों को रिज़र्व किए जाने पर औरतों के हाथ में सरकारी काम काज और राज काज की जो कमान आयी थी उसे उनहोंने कामयाबी से अंजाम दिया है । औरतों ने दिखा दिया है , न तो वो रबर स्टांप हैं और न ही कोई खिलौना । लोकल बाडीज में एक तिहाई सीटें मिलने पर पहले पहले तो औरतों को कटपुतली बना कर मर्दों ने मनमानी करने की कोशिशें की मगर हमारे मुल्क की औरतों ने इन कोशिशों को बेअसर करते हुए यह साबित कर दिया है , मर्द भले ही बौना है औरत नहीं खिलौना है ।

औरत सदियों से यह दिखा चुकी है , मर्द घर नहीं चला सकता क्योंकि घर का बजट बनाना मर्दों के लिए मुमकिन नहीं है । घर का बजट बनाना देश के बजट बनाने से भी कहीं ज़यादा मुश्किल है। । औरत घर चलाती है , परिवार चलाती है और कई बार तो मर्दों को हांकती भी है । संसार में इस प्रकार के उदाहरण भी हैं जब एक मज़बूत औरत रूलर
ने मर्दों को अपनी मर्ज़ी से चलाया या यूँ कहिये हांका । हमारे मुल्क में अब भी एक रीजनल पार्टी की सदर एक ऐसी औरत हैं जिसके आगे उस पार्टी के मर्दों को ज़मीन पर लेट कर सलाम करना पड़ता है । बहरहाल ये तो बहस का मुद्दा हो सकता है मगर इस बात को तो मानना ही होगा , अब लोकल बाडीज में औरतों के लिए पचास फीसदी सीटें रिजर्व हो जाने के बाद नगर निगम मैं आधी महिलाएं दिखाई देंगी , नगर निगम इमारत में औरतों के टायलेट की तादाद बढ़ जायेगी और हो सकता -- इस इमारत में एक बालवाडी भी खोलनी पड़े जिससे छोटे छोटे बच्चों वाली कारपोरशन की सदस्यों को आसानी हो और वो कारपोरशन की मीटिंग के दौरान अपने तुतलाते बच्चों के लिए भी हाज़री लगा सकें। कारपोरशन के सदन में आधी से ज़्यादा औरतें होने से बहस का म्यार बदल जाएगा , सदन रंगीन जाएगा , सदन का नज़ारा बदल जाएगा और विजिटर गैलरी में रोज़ बिगडैल लफंगे आ कर धम्म चौकडी लगायेंगे और बिना बात के औरतों की तक़रीर की तारीफ़ में पुल बंधेंगे । ये तो सब ठीक है मगर मर्द क्या करेंगे । औरतों के पति या तो उनके साथ पर्स उठा कर घुमंगे , या उनका दफ्तर चलाएंगे , या फ़िर रात में ऐसे ख्वाब देखेंगे --औरतों का रिजर्वाशन खत्म होने वाला है ।

चुनाव जंगल में

लगता है चुनाव सभ्यता में नहीं जंगल में होते हैं तभी तो एक नेता दूसरे को चूहा और एक अन्य नेता किसी एक नेता को मेंडक कहता है । इतना ही नहीं हरेक नेता अपने को तो शेर कहता है मगर दूसरों को बन्दर, गधा, लोमडी, लंगूर और कुत्ता कहते हुए कह देता है कि ये तो बस बक बक ही कर सकता है। मुझे एक चुनाव याद है जब देश की एक सबसे बड़ी नेता दक्षिण में चिकमगलूर से उम्मीदवार थीं तो उनके ख़िलाफ़ सारा विपक्ष एकजुट हो गया था और इस बड़ी नेता को तरह तरह से बदनाम किया जाने लगा तो इस बड़ी नेता के समर्थकों ने एक नारा दिया, चिकमंगलूर चिकमंगलूर , एक लोमडी सौ लंगूर ।
इस से लगता है , सभी नेता चुनाव को जंगल का दंगल समझते हैं और एक दूसरे को पशुओं का नाम देते हैं तभी तो चुने जाने के बाद सदन को जंगल का अखाडा और ख़ुद को जानवर जैसा प्रर्दशित करते हैं।