हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तान क्या होगा. हर कदम पर फर्जीवाड़ा है , अब अपना मुस्तकबल क्या होया. बेईमानी , हेराफेरी, घोटाले की आखिर कोई हद तो होनी चाहिए . यहाँ दिल्ली में तो लोग बेहद सिर्जोर होकर हदें पार कर रहे हैं . न कोई खौफ है न कोई शर्म लिहाज़ , कहाँ जा पहुंचेगा अपना ये समाज. दर्द अगर एक हो तो दवा याद करू
, यहाँ तो दर्द का बेइंतहा समंदर है. कोई आवाज़ सुने यकीन नहीं होता, सुनाने वाला तो महफूज़ बैठा अन्दर है. हरेक रोज़ नयी बात निकल के आती है. नयी करतूत से इंसानियत शर्माती है . न जाने कब ये सिलसिला थम जायेगा या फिर इंतजार में दम निकल जायेगा.
कहते हैं दिल्ली की सब से बड़ी लोकल बाड़ी में लगभग २३ हज़ार ऐसे मुलाजिम हर महीने तनख्वाह ले जाते हैं जिन्हें न कभी किसी ने देखा न महसूस किया. जी हाँ जो रजिस्टर में तो हैं मगर वजूद में नहीं हैं जो काम तो कर रहे हैं , मगर कहाँ यह मालूम नहीं. उनके काम की कोई अफसर ताईद भी करता है, तस्दीक भी करता है. कोई नहीं जानता कि ऐसा सब कुछ किस बिनां पर किया जाता है. कौन बनता है ऐसे मुलाजिमों की हाजिरी का गवाह , कहाँ कहाँ बंटती है इनकी भारी भरकम तनख्वाह . ये मुलाजिम किसी न किसी जगह काम तो करते हैं या फिर फर्जी नाम से काम कर रहे मुलाजिमों की तनख्वाह सफ़ेद पोश अफसर और इज्ज़तदार बिचौलिए बंदरबांट कर खा जाते हैं. ये भी मालूम नहीं कि ऐसे फर्जी मुलाजिम किस किस बड़े अफसर या किस किस असरदार लीडर या फिर पहुन्च्दार बिचौलियों के घर क्या क्या , कैसा कैसा काम करते हैं या फिर तरह तरह के गैर कानूनी कामों मैं शरीक होते हैं.
बहरहाल इस लोकल बाड़ी को इससे हर साल २०४ करोड़ रुपये का चूना लग रहा है. न जाने कितने साल से ऐसा गोरखधंधा जारी है . कहते हैं , ऐसे फर्जी मुलाजिम ज़यादातर सफाई करनेवाले और बागन में काम करने वाले हैं . सचमुच ये बड़ी सफाई से हमारे खजाने की सफाई कर रहे हैं और अपने आकाओं के घर गुलज़ार कर रहे हैं. भला हो उस बियोमत्रिक सिस्टम का जिससे यह हेराफेरी सामने आई वर्ना ये मुस्तैदी से की जा रही लूट खसूट चलती रहती. इतना ही नहीं जिस तरह मुलाजिम काम करते हैं तो यह महसूस होता है , एक एक मुलाजिम की ज़रुरत पर पांच पांच मुलाजिम लगाये गए हैं . अगर कुल काम और ज़रूरी मुलाजिम की तादाद की स्टडी कराइ जाये तो कम से कम एक तिहाई तो सरप्लस हो जायेंगे . अगर ऐसा हो जाये तो हमें मौजूदा टैक्स के मुकाबले महज़ एक चौथाई टैक्स देना होगा. मगर यह लोकल बाड़ी बहुत बड़ी है, उसे हर रोज़ जूझना होता और ऐसी छोटी मोटी हेरा फेरी पर गौर करने का शायद उसके पास वक्त नहीं है.
