ऑटो एक्सपो

देश की राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में लगी ऑटो एक्सपो प्रदर्शनी दिल्ली के लिए नयी नयी सौगात ले कर आई तो सड़कों तो सड़कों पर ट्राफ्फिक जाम की आफत भी ले कर आई . नयी नयी चमकती आकर्षक गाड़ियों को देखने बड़ी तादाद में गाड़ियों वाले आये.
प्रदशनी के अन्दर नयी गाड़ियों के सामने देखने वालों की भीड़ , प्रगति मैदान के गेट पर अन्दर जाने वालों की भीड़ और सड़कों पर एक के साथ एक चिपक कर चलती गाड़ियों की लम्बी फौज . यूँ लगा कि जैसे सडको पर एक सुई रखने की जगह भी नहीं दिख रही थी . कार देखने वह भी आये जो कभी खरीदने का सपना ही नहीं देख सकते . चारों ओर कार के लिए हा हा कार था . यह कार मेला था या हा हा कार मेला . इस प्रदर्शनी में महँगी से महँगी और सस्ती से सस्ती कारें , मोटर सयिक्लें और बयिसयिकलें भी दिखाई दी . इतना ही नहीं जब विंटेज कारों की ओर निगाह गयी तो लगा जैसे ८० से ९० वर्ष की लाठी के सहारे चलती बालाएं भी दुल्हन की पोशाक डाल कर अपनी अदाओं का जादू बिखेर रही हों.

बहरहाल इस प्रदर्शनी ने यह साबित कर दिया कि किसी भी अच्छी से अच्छी चीज़ की मार्केटिंग केवल उसकी खूबियों के बूते पर बिलकुल नहीं की जा सकती मगर इसकेलिए ग्लेमर की ज़रुरत होती है . अगर ग्लेमर का साथ हो तो आप मिटटी को भी सोना बता कर बेच सकते है . ग्लेमर के बिना सोने का भी खरीददार ढूँढना मुश्किल होता है. इसलिए कार निर्माताओं ने कारों के आभामंडल को आकर्षक बनाए के लिए हुस्न परियों यानि डीअर गर्ल्स का सहारा लिया जैसे कि ट्वंटी ट्वंटी क्रिकट को पापुलर बनाने के लिए चीयर गर्ल्स का सहारा लिया गया. इस का मतलब है .....बिना हुस्न सब सून, दिल्ली हो या देहरादून.

3 टिप्पणियाँ:

Aapki kalam mein jaadu hai... pard kar hamesh kuch seekhne ko milta hai. Regards Nishant

 

shandaar lekhan sir -ashish

 

sir is bajar me har koi aapna munaf dekhata hai...
chahe use...dosaro ka ghar koi na jalna pade...
accha likha hai

 

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