ये मज़हब वाले

हमारे देश में मुद्दा कोई भी हो , कैसा भी हो, वह सबके लिए खुला मैदान बन जाता है. ऐसा मैदान जिसमें कुछ भी खेलने की सबको आज़ादी यानि पूरी आज़ादी मिल जाती है . मुद्दे का मैदान एक हो सकता है उसमें आप कुश्ती के दांव पेच, उठा पटक, क्रिकेट के बाउंसर , छक्के , हाकी के कार्नर , पेनाल्टी शूट और न
न जाने क्या , क्या देख सकते हैं. इतना ही नहीं, मुद्दा एक हो भी तो उसमें से सैंकड़ों मुद्दों को खींच खींच कर निकाला जाता है. मुद्दा था महिला आरक्षण, इस मुद्दे की इस तरह चटनी बनाई गई कि आरक्षण के भीतर आरक्षण, उसकी हर सांस में आरक्षण यानि इस मुद्दे को इतना उलझाया गया कि अब इस मुद्दे को सुलझाने के लिए शायद ही किसी में दमखम बचा हो. लगता है, यह मुद्दा भी कश्मीर जैसा जटिल बन गया है. बस मुद्दा होना चाहिए , कूदने वालों की कोई कमी नहीं होती और मुद्दों को गर्माने वालों की भी कमी नहीं होती, भले ही देश कुरुक्षेत्र बनने लगे या फिर कर्फ्यु क्षेत्र . कूदने वालों में संगठनों की लम्बी कतार लग जाती है और ये मज़हब वाले भी कहाँ संकोच करते हैं.
अब बात करते हैं केरल की जहाँ की सरकार कुछ दिन से यह मंथन कर रही है कि बढती जनसँख्या पर काबू पाने के लिए कोई कारगर कदम उठाया जाये. इस प्रदेश को शुरू से ही प्रगतिशील माना जाता है. यहाँ का हर शख्स पढ़ा लिखा है. यहाँ के लोग नौकरी के लिए लेह लद्दाख से लेकर मिजोरम तक पहुँच जाते हैं. इतना ही नहीं यहाँ के निवासी दूर दूर के देशों में भी बसे हैं. इसी वजह से इस राज्य की अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई है. सबसे बड़ी बात यह है कि यहाँ बड़ी तादाद में हिन्दू , मुस्लिम और इसाई रहते है. इस के बावजूद यहाँ साम्प्रदायिक दंगे नहीं होते .

इस प्रगतिशील राज्य की सरकार ने एक ऐसा कानून बनाने का विचार किया कि जिस परिवार में तीसरे शिशु का जन्म होगा उसपर दस हज़ार का जुर्माना लगेगा और सरकारी कर्मचारी होने पर और भी दंड लगाया जा सकेगा इसका देश भर में स्वागत किया गया मगर मज़हब वालों ने ठान ली कि कूदना ज़रूरी है. अब खबर है कि केरल के सीरो मालाबार चर्च ने पांचवा शिशु होने पर दस हज़ार रुपये का फिक्स्ड डीपाजित गिफ्ट करने का फैसला किया है . आखिर ये मज़हब वाले क्या चाहते हैं ? क्या इन्हें बढती आबादी के खतरे दिखाई नहीं देते ? इस से पहले एक और मज़हब के लोगों ने जनसँख्या नियंत्रण का विरोध किया था . लगता है अब उन्हें सद्बुधि आ रही है मगर मज़हब वालों को भी सोचना चाहिए कि न तो हर गेंद पर छक्का लगाया जा सकता है और न ही हरेक शेर की मांद में घुसा जा सकता है. मज़हब को मज़हब रहने दो , मुद्दे तो आते जाते रहेंगे.

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