दिल्ली, देश, दुनिया—सत पाल 06-06-2017
शहीद रविन्द्र कुमार
इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली में कई लोगों, संस्थाओं और नगर निगमों को स्वच्छता के क्षेत्र में काम करने और परिणाम दिखाने का जुनून चढ़ा हुआ है। कई सरकारी संगठनों और नगर निगमों पर अपना रैंक सुधारने या फिर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की प्रति दिन की फटकार के कारण अनूठा दबाव भी बना हुआ है। दबाव होता है तो तेजी से काम होता है और लक्ष्य हासिल करने की जिद्द भी बढ़ती है। जब किसी काम में दिवानगी सिर चढ़ कर बोले तो लगता है कि अब कुछ न कुछ बदलाव आने वाला है। सरकारी संगठनों में तो अक्सर काम और लक्ष्यों को ज्यादातर हलके में लिया जाता है और कठिन समय में भी कई लोग अपने अवकाश लेने या अकारण घर बैठ जाने से संकोच नहीं करते मगर पुलिस सेवा में ऐसा नहीं चलता, अवकाश लेना हो तो पहले मंजूरी लेना जरूरी होता है। न फर्लो चलती है और न ही मन मर्जी। अर्जी दी तो मानने या नहीं मानने की मर्जी बॉस की, कहते हैं अर्जी मेरी मर्जी उनकी। इन लोगों को तो गंभीर समय में अवकाश रद्द कर काम पर वापस बुला लिया जाता है। अगर हम किसी ऐसे आदमी की बात करें जिसे कुछ न कुछ करने का जुनून हो तो मानना होगा कि वह चट्टानों, तूफानों, आंधियों, परिणामों से नहीं डरता और अपने संकल्प में बाधा नहीं आने देता भले ही कितनी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़े। ऐसे ही एक आदमी का नाम था रविन्द्र कुमार जिसका मंत्र था- स्वच्छता परमो धर्म। इस ई रिक्शा चालक को यह बर्दाश्त नहीं था कि कोई आदमी देश की राजधानी में सड़क पर दीवार की तरफ खड़ा होकर ईज करता दिखाई  दे और खुले में दबाव भरा नित्य कर्म करता  दिखे। एक दिन सड़क पर दीवार की ओट में नंबर वन कर रहे दो लोगों को जब रविन्द्र कुमार ने रोका तो उसे शायद यह मालूम नहीं होगा कि उसकी आखिरी रात दस्तक दे रही है। उन बिगडैलों ने रात में रविन्द्र को पीट पीट कर यमराज के हवाले कर दिया मगर स्वच्छता के परवाने का जज्बा नहीं समझा। क्या हमें रविन्दंर को शहीद नहीं मानना चाहिये, क्या देश में सबसे उदार दिल्ली सरकार को उसके परिवार को दस करोड़ की अनुग्रह राशि नहीं देनी चाहिये। जब उदार सरकार दूसरे राज्यों के कथित शहीदों की झोलियां भर देती है तो रविन्द्र के लिये कैसी मजबूरी है। पी एम को भी रविन्द्र कुमार का जिक्र मन की बात कार्यक्रम में करना चाहिये और बिग बी को भी अपने अभियान में इस शहीद को नमन करना चाहिये। जज्मे को सलाम करो, न झुको न डरो।
पानी का दर्द
कर्नाटक के पावागाडा तालुक के निवासियों का जीवन मुसीबतों से भरा है क्योंकि उन्हें हर रोज आंध्र प्रदेश जा कर चिकन्नाडुका से पीने और दूसरी जरूरतों के लिये पानी भर कर लाना जरूरी होता है। दस किलोमीटर की इस यात्रा में उनका हमसफर होता है एक साइकिल और वहां पानी की लाइन में इंतजार का वक्त गुजारने का साथी होता है दर्द। उनका यही महज काम है क्योंकि और कुछ करने का उनके पास कोई समय ही नहीं बचता। हे भगवान,सब परेशान।
दो पहलू
आयरलैंड में भारतीय मूल के डाक्टर महाराष्ट्र के 38 साल के लियो वराडकर पी एम बने हैं। जब विदेशों में भारतीय मूल के किसी आदमी को ऐसा पद मिलता है तो हमें अच्छा लगता हैं। वराडकर स्व घोशित समलैंगिक हैं। उधर मलेशिया सरकार ने समलैंगिकता के विरोध में बेहतरीन वीडियो बनाने वाले को एक हजार डॉलर का इनाम देने का एलान किया है। समझा होते हैं न दो पहलू।

0 टिप्पणियाँ:

Post a Comment