टेढी खीर

मुसद्दी लाल के घर में आज रौनक थी , सभी के चेहरे खुशिओं से भरपूर थे । मुसद्दी लाल की पत्नी और तीन बच्चे भी चहक रहे थे क्योंकि आज बच्चों के मामा अपनी बहन के घर आ कर टिके थे । मुसद्दी लाल की पत्नी का नाम तो सीता है मगर उसके पति प्यार से उसे धन्नो पुकारते हैं । धन्नो भी बेहद खुश थी। जी हाँ उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था और मुसद्दी लाल यह सोच कर ख़ुद को खुशकिस्मत मान रहा था कि कुछ भी हो आज धन्नो के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है । मुसद्दी लाल एक सरकारी दफ्तर में मामूली सा क्लर्क है । उसे यह नहीं मालूम था कि उसके लिए तसल्लीबक्ष माहौल कब तक ऐसा बना रहेगा । वह तो मन ही मन यही दुआ कर रहा था कि घर में जो कुछ मौजूद है उसी से मेहमान नवाजी पूरी कर ली जाए क्योंकि महीने की २८ तारीख यानी महीने के आखिरी दिन । इन दिनों में तो बाबू की जेब वैसे ही जवाब देने लगती है जैसे गैस का सिलेंडर आखिरी सांसें लेता है। मुसद्दी लाल भले ही खुश था मगर अन्दर ही अन्दर उसे यह महसूस हो रहा था कि अगर बाज़ार से कोई चीज़ मंगवानी पड़ी तो ढोल की पोल खुल जायेगी । उसने चुपके से जा कर धन्नो से कहा ---देखो जो है घर में उसीसे गुज़ारा कर लेना । धन्नो ने भले ही कोई जवाब नहीं दिया मगर उसने इस तरह आँखें दिखाई जैसे जल्लाद फांसी
चड़ने वाले को घूरता है । धन्नो बोली ---क्या कह रहे हो सरकारी क्लर्क , तीन साल बाद मेरा भाई घर आया है तो आव भगत तो करूंगी ,थोडी सी खीर बनाऊँगी, बच्चे भी खुश हो जायेंगे । इतना सुनते ही मुसद्दी लाल को पसीना आने लगा । अभी कल ही तो उसने एक मंत्री का ब्यान अखबार में पढ़ा था कि चीनी और चावल की कीमतें बेकाबू हो रही हैं । कुछ दिन पहले ही तो उसने दूध के दाम बढ़ने पर अपने घर की दूध की सप्लाई तीस फीसद कम कर दी थी। खीर का नाम सुनते ही मुसद्दी लाल के सीने में तीर चुभने लगे। उसे मीठी खीर भी टेढी खीर लगने लगी। मुसद्दी लाल ने सोचा कि अब तो उसकी आन ,बाण , शान दाव पर है अब तो कुछ न कुछ करना होगा । कुछ दिन पहले तो वह अपनी कलाई घड़ी गिरवी रख के घर का राशन भरवा चुका था आज उसे धन्नो की घड़ी दिखाई दी । उसने चुपके से उस खड़ी को थैले में लपेटा और टेढी खीर को मीठी खीर बनाने के लिए लाला की दुकान पर पहुँच गया ।

1 टिप्पणियाँ:

Good read... a timely satire on the ignored sufferings of the mass due to unabated price rise...the only difference is that the Mussadi Lals have lost their political voice or their relevance...

an advice...plz break para after every two or three sentences, as that will make the reading more easy...as condensed sentences put lots of stress on eyes...

and also...your writing is getting refined everyday...thats good...lots of compliments

 

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