प्राण जाए पर पद न जाए

mohe kursi laage प्यारी, मेरी कुर्सी जान से प्यारी। न जाने कितना प्यार हो जाता है कुर्सी से। शायद अपनी संतान से भी ज़्यादा प्यारी लगने लगती है कुर्सी , कुर्सी पर काबिज़ व्यक्ति के विवेक को छलने लगती है कुर्सी, दुनिया जहान के हरेक रिश्ते से न्यारी लगती है कुर्सी ।

ये कुर्सी कितने लोगों को ध्रतराष्ट्र बना देती है क्योंकि पद पर रहते हुए कुर्सीधारी को अपनी औलाद का भी कोई बुरा काम दिखाई नहीं देता , उसकी आलोचना सुनाई नहीं देती और अपनी जुबान इतनी अचेतन हो जाती है कि वह कुछ कह नहीं पाती । दूसरे शब्दों में कहें तो कुर्सीधारी अपनी संतान के मोह में अँधा , बहरा और गूंगा हो जाता है फ़िर भी उसे कोई मलाल नहीं होता और वह सोच भी नहीं सकता कि कभी कुर्सी छोडनी पड़ेगी ।

औलाद की वजह से कुर्सी पर खतरा मंडराने के कई उदहारण हैं । हमारा पिछला पाँच दशक का इतिहास ऐसी घटनाओं की बानगी है ।
हाल ही में अपने कथित सुपुत्र की करतूतों के कारण मीडिया में कथित रूप से विख्यात हुए एक वरिष्ठ नेता ने तो साफ़ साफ़ कह दिया कि पद कभी नहीं छोडूंगा भले ही प्राण चले जायें । उनके दर्द को कोई तो समझने की कोशिश करे । उनका दर्द वाजिब है । क्या कोई पिता अपने पुत्र के दुःख और परेशानी से अलग थलग रह सकता है । हरेक पिता की यह कोशिश होती है कि वह अपने मुसीबतजदा पुत्र की मदद करे । अगर बदनामी के डर और सिधांत तथा ईमानदारी की वजह से वह त्याग पत्र दे देता है तो पुत्र की रक्षा और सहायता कैसे होगी । पुत्र का बचाव कुर्सी पर बने रहने से सम्भव है इसलिए कुर्सी को बेवजह लात मारना सही नहीं लगता क्योंकि संकट में फंसे व्यक्ति की मदद करना भी तो धर्म होता है ।

kuch udahan aise bhi हैं जब औलाद की करतूत की वजह से फंसे कुर्सी पर काबिज़ पिता ने कुर्सी छोड़ने के बजाये पुत्र से रिश्ता छोड़ने की घोषणा कर दी मगर कुर्सी पर रहते हुए पुत्र का बचाव करते रहे । यह पुत्र एयरपोर्ट पर घड़ियों की स्मगलिंग करते हुए पकड़ा गया था और उसका पिता उस समय देश की चुनी हुई सरकार में बड़े पद पर थे । उनहोंने पुत्र को बचाने की भरसक कोशिश की । उसे हरियाणा में कुर्सी पर बैठने की दो तीन बार कोशिश की । वे कामयाब भी हुए लेकिन युवराज कुछ दिन तक ही पद रह सका क्योंकि विरोध भारी था। यह बात अलग है कि दो दशक बाद वह पुत्र फ़िर सत्ता में आया मगर उसका और घोटाला का रिश्ता जारी रहा ।

एक बार एक लोकप्रिय विधायक छात्रों के हितों की रक्षा करने उनके धरने में गए और वहां भाषण देने लगे । छात्रों ने कहा कि अगर हमारे हित इतने प्यारे हैं तो असम्बली से इस्तीफा दे दीजिये , इस पर विधायक ने कहा ,यह तो बहुत छोटी चीज़ है मैं तो आपके लिए जान दे सकता हूँ । आख़िर कुर्सी छोटी हो या बड़ी बनी रहनी चाहिए ।

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