घाट घाट पर नेताजी

देश की राजधानी दिल्ली --यहाँ पिछले दिनों घाट घाट पर उल्लास और गहमा गहमी रही . नेताओं को घाट घाट पर देखा गया या यूँ कहिये , जमुना जी के घाट पर भई नेतन की भीड़ . इससे यह भी मतलब निकला जा सकता है , उन छुट भैया नेताओं को भी घाट मिले जो न तो घर के थे न ही घाट के . घाट पर नेताओं का हो जमावडा तो क्या यह सुर्खी नहीं बनती . कई दिन तक अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर यह छाया रहा और छठ के मौके पर नेताओं ने खूब जलवा बिखेरा .

दिल्ली दरअसल राजनीती का महासमर स्थल है, पौधशाला है, प्रयोगशाला है और विश्वविद्यालय होते हुए भी सचमुच राजनीती का अखाडा है . यहाँ हरेक घटना का राजनीतिकरण होने में देर नहीं लगती. यहाँ की वायु को राजनीती की गंध, सुगंध, दुर्गन्ध से जुदा नहीं किया जा सकता. यहाँ हर प्रकार के प्रदुषण के खिलाफ आवाज़ उठती है मगर राजनितिक प्रदुषण को लेकर कोई चिंतित नहीं होता क्योंकि राजनीती तो दिल्ली की प्राणवायु है , सचमुच आक्सीजन है और इसमें जितना भी प्रदुषण हो , जितनी भी क्रिमिनल डाइऑक्साइड मिले राजनीती पर कोई असर नहीं होता अपितु यह और प्रखर , त्वरित ,मुखरित और नवीन, समकालीन और रंगीन होती है . तभी तो दिल्ली में हर घटना का इस तरह राजनीतिकरण हो जाता है जैसे बस में सफ़र करते करते युवक अपनी निगाहों से भी युवतियों की इव टीजिंग कर देते हैं . यहाँ कोई मरा तो राजनीती, किसी बड़े परिवार में जन्म पर राजनीती, दुर्घटना पर राजनीती , नीति और नियत पर राजनीती, बीमारी महामारी पर राजनीती, लाचारी पर राजनीती, त्यौहार पर राजनीती, दुराचार पर राजनीती, फीस पर टीस पर राजनीती, कीमतें गिरने पर राजनीती और महंगाई पर राजनीती होने लगती है . रोजा इफ्तार आयोजन की दौड़ में नेताओं की राजनितिक महत्वकांक्षा और रामलीलाओं तथा छठ पर्व में घाट घाट पर हाजिरी देने की ललक के पीछे भी तो कुछ न कुछ राजनितिक मनोभावना है . सभी नेताओं की इच्छाएं पूरण हों यही हमारी शुभकामनायें हैं .

1 टिप्पणियाँ:

Aapki kalam mein jaadu hai...Regards Nishant

 

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