सिंह दो , बातें हज़ार

राजनीती की दृष्टि से सबसे महतवपूर्ण राज्य है उत्तर प्रदेश . यहाँ की राजनीती की ज़मीन पर फिसलन है, अपने संगी साथी बदलने और कई बार अवसरवाद के बीज बो कर अपने फायदे की फसल काटने की रिवायत भी है . यहाँ के कई कद्दावर नेता बड़े से बड़ा या अन्य कोई महत्वपूर्ण पद हासिल करने के लिए यकायक कलाबाज़ी खाने , अपने विचार बदलने और दोस्त को दुश्मन बनाने तथा दुश्मन को गले लगाने में संकोच नहीं करते . इतना ही नहीं , व्यक्तिवाद पर आधारित पार्टियाँ चलाने वाले नेता चुनाव, पार्टी बदल बदल कर लड़ने में अपनी शान मानते हैं, भले ही चुनाव दो तीन माह बाद हो रहे हों. कुछ एक नेताओं का मकसद हर सरकार में मंत्री पद हासिल करने की कोशिश जारी रखना है. उत्तर प्रदेश राजनितिक चतुराई और राजनितिक चालबाजी की गहराई के मामले में उत्तम प्रदेश कहा जा सकता है. यहाँ के राजनितिक दल बिना मांगे केंद्र में सत्तारूढ़ गठबन्धनों को समर्थन देते हैं, सरकार बनवाते है, शक्ति परीक्षण में सरकार बचाते हैं, कई बार प्रदेश में एक पार्टी से तलाक लेने के बावजूद केंद्र में उसी पार्टी को समर्थन देते रहते हैं. समर्थन वापस लेने की धमकी देते हैं मगर ऐसा नहीं करते और कई बार समर्थन देकर सरकार बचाने के अपने योगदान को राजनीती की सबसे बड़ी भूल बताते हैं. इतना सब कुछ करते हुए उन्हें न तो कभी कोई शर्म आती है, न कभी कोई परेशानी होती है क्योंकि यही उनकी सिधान्त्वादी राजनीती है.

इसी पृष्ठभूमि में इन दिनों इस राज्य के दो सिंह यानी दो पूर्व मुख्यमंत्री या यूँ कहिये अपने आप को शेर मानने और बिना किसी कारण के दहाड़ने वाले दो नेता अपने विचारों और कर्मों को खुलेआम जनता में धो रहे हैं. ये दोनों नेता अपने को दुसरे से बढ़ कर धुरंधर बताते हुए तरह तरह की हज़ार बातें कर रहे हैं. जो खुद को सबसे कठोर , दमदार, वज़नदार बताते थे वही नेता कह रहे हैं कि साम्प्रदायिकता के दामन को आग लगाकर उनके साथ आये नेता से उनकी दोस्ती थी ही नहीं जबकि दुसरे सिंह को इस वक्त फिर भगवान श्री राम और सांस्कृतिक समरसता के आधार पर काम कर रहे अपने मूल संगठन की याद आयी है.

भगवान श्रीराम की शरण में रहने का दावा करने वाले नेता भूल गए कि उनके सिर पर जब लाल टोपी पहनाई गई थी तो उनकी बांछें खिल उठी थीं और जब उनके सोशलिस्ट दोस्त ने उन्हें लोकसभा की सीट उपहार में दी थी उस समय उन्हें भगवान श्री राम के नाम दी गयी कुर्बानी याद नहीं आई थी . अब वह अपने पुत्र के साथ घर वापसी की कोशिश में हैं. एक सिंह जो कह रहा है दूसरा सिंह उसे गलत बता रहा है . कभी कहा जाता था कि दोस्ती नहीं टूटेगी मगर अब दोस्ती के खडहर भी खाक में मिलाये जा रहे हैं .

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