मोबाइल से अश्लीलता

मोबाइल से अश्लीलता

महानगरों में जब से मोबाइल का ज्यादा चलन हुआ है और हरेक के पास मोबाइल फोन कनेक्शन है तब से इन का इस्तेमाल फोन के अलावा भी होने लगा है. एक मोबाइल अनेक सुविधाएँ , क्या कहने, इसी मोबाइल में घडी, केलकुलेटर , कैमरा , फोटो गैलरी , ई मेल, मेसेंजर, फेस बुक , ब्लू टीथ, टी वी, और न जाने क्या क्या. मोबाइल ने तो लोगों को सारा संसार एक मुठ्ठी में दे दिया है. इन सब सुविधाओं से नौजवानों की पौ बारह हो गयी है और वह इससे हर दोस्त ज़रूरी होने का सपना साकार कर रहें है. इतना सब कुछ अपने पास हो जाने से नौजवानों ने इस का इस्तेमाल कॉल करने के बाद सबूत मिटाने के लिए डीलीट बटन का इस्तेमाल किया. मोबाइल के कैमरे से तस्वीरे लीं , वीडियो बनाये , एम् एम् एस बनाये और पूरी मित्र मंडली में फैला दिए. एस एम् एस के बाद सोशल साइट्स की मदद से हर तरह की फाईलें फटाफट भेजी जाने लगीं. अश्लीलता ने लड़कों और लड़कियों को कुंठित किया और उन का मन और तन दूषित, शोषित और प्रदूषित होने लगा . इस कारण स्कूलों में मोबाइल फोन ले जाने की पाबन्दी लगायी गयी. लेकिन मोबाइल सेट और काल दरें सस्ती हो जाने से मोबाइल की तादाद बढ़ने लगी और अश्लीलता का दायरा भी बढ़ता गया . विद्यार्थी चोरी चोरी क्लास में मोबाइल ले जाने लगे और वाईब्रेटर पर रख कर चोरी और सीनाजोरी चलती रही. यही हाल घरों और दफ्तरों में हुआ .

स्कूलों, कालेजों और दफ्तरों में तो मोबाइल पर रोक लगाना संभव है मगर लोक सभा और विधान सभाओं में माननीयों के लिए ऐसी पाबन्दी नहीं लगायी जा सकती क्योंकि वे तो हमारे भाग्य विधाता है हमारे प्रतिनिधि हैं . जी हाँ उन्हें तो संपर्क विहीन नहीं किया जा सकता . वे सदन के काम काज के बीच फोन सुनते रहे भले ही काम काज में बाधा उत्पन्न हो . उन्हें तो रोका नहीं जा सकता . अब तो इन माननीयों ने सदन को भी अश्लीलता का मंच बना दिया . कर्णाटक में इन कानून बनाने वालों ने हद ही कर दी . दो मंत्री सदन में मोबाइल फोन से अश्लील वीडियो देखते पकडे गए.. उन्हें तो हर काम को जायज़ बताने का हक हैं आखिर ऐसे मंत्री तो बिगडैल नौजावानों से भी बढ़ कर निकले. ये लोकतंत्र के पवित्र मंदिर को कलुषित करने के बराबर है. इस से यह तो साबित हो गया कि कोई भी इन्सान अश्लील तो नहीं कहलाना चाहता मगर अश्लीलता देख कर इससे रोमांचित होना चाहता है.

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