दिल्ली, देश, दुनियासत पाल  25.062017
पद से लाभ
पद से लाभ प्रत्येक लेना चाहता है मगर आज प्रश्न है कि लाभ के पद पर रहे दिल्ली में सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों ने पद से लाभ उठाया कि नहीं। मुद्दे की तह तक जाने के लिये समझना होगा कि दिल्ली विधानसभा के 70 सदस्य होते हैं और दिल्ली सरकार में 7 से ज्यादा मंत्री नहीं बन सकते। 2015 के चुनाव में जब करप्शन विरोधी पार्टी के 67 उम्मीदवार जीते तो 7 मंत्री बनाने के बाद पार्टी के लिये बाकी 55 से अधिक विधायकों को कोई पद देने की बड़ी चुनौती सामने आयी। पार्टी ने अन्य राज्यों में थोक में बनाये गये संसदीय सचिवों की तरह 21 विधायकों को मार्च 2015 में यह सौगात दी मगर इससे पहले इन पदों को लाभ के पद के दायरे से हटाने के लिये कानून में संशोधन नहीं किया और विधायकों को पद देने के लिये एल जी से मंजूरी भी नहीं ली। इस पर हंगामा होने पर दिल्ली सरकार ने कानून में संशोधन का विधेयक पारित करवाया और इसे पिछली तिथि से लागू करने का प्रावधान रखा। ऱाष्ट्रपति ने पारित विधेयक को मंजूरी नहीं दी। इसके बाद हाई कोर्ट में संसदीय सचिवों के पदों को गैर कानूनी घोषित करने का मामला आया और एक वकील ने राष्ट्रपति को याचिका दे 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की। राष्ट्रपति ने याचिका निर्वाचन आयोग के पास कारर्वाई के लिये भेज दी। हाई कोर्ट ने 8 सितंबर 2016 के फैसले में इन पदों को अवैध घोषित कर दिया और 21 विधायक उस दिन से संसदीय सचिव नहीं रहे मगर जून 2017 के तीसरे सप्ताह में आयोग ने इन विधायकों का अनुरोध खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि हाई कोर्ट के निर्णय के मद्देनजर आयोग में आगे सुनवाई की जरूरत नहीं है। आयोग के अनुसार इन विधायकों ने सही मायने में संसदीय सचिव के रूप में काम किया और अब तय किया जाना है कि उन्होंने मार्च 2015 और सितंबर 2016 के बीच पद से जुड़ी सुविधाये लीं कि नहीं।  अगली सुनवाई के बाद विधायकों की सदस्यता पर अयोग्यता  की तलवार का खतरा अधिक गंभीर होता जायेगा। पार्टी कहती है कि सदस्यता को कोई खतरा नहीं होगा और वह आयोग के निर्णय को समुचित अदालत में चुनौती देगी। यह अधिकार बनता है मगर यह मामले को लटकाये रखने की मंशा लगती है, पार्टी पहले भी आयोग को सूचना देने में शायद जानबूझ कर देरी करती रही है, शायद वह चाहती हो कि किसी तरह 2019 तक समय निकले और अगला चुनाव आ जाये। पार्टी को गिरती साख की चिंता है अगर यह नहीं होता तो वह 21 विधायकों को विधानसभा से त्यागपत्र दिला कर फिर चुनाव में उसी तरह जितवा देती जैसे रायबरेली से देश की सबसे पुरानी पार्टी की अध्यक्ष फिर जीतीं थी।
गजब की फुर्ती
 मध्य प्रदेश की बरकतउल्ला युनिवर्सिटी के परीक्षापत्र जांचकर्ता ने गजब की फुर्ती दिखाते हुये 24 घंटों में 645 पेपर जांच दिये, एक पेपर के लिये 20 मिनट के बजाय लगे सवा दो मिनट। खाक मूल्यांकन हुआ होगा परीक्षार्थिर्यों के ज्ञान का।
कनाडा में बल्ले बल्ले
कनाडा में मेहनत के कारण सिखों की बल्ले बल्ले हो रही है। इस समुदाय से रक्षा मंत्री बना, संसद में पंजाबी दूसरी भाषा बनी और अब पगड़ीधारी पहली सिख महिला योग्यता के कारण सुप्रीम कोर्ट की जज बनी । इस समुदाय ने कनाडा को वतन माना है, अन्य समुदायों को इनसे सीखना चाहिये।

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