दिल्ली बनी कूड़ा घर
      शहर-ए-दिल्ली का दर्द सुनाता हूं। चप्पे चप्पे कूड़ा बिखरा दिखाता हूं । हाय ये क्या हुआ महके चमन को। इसका बदहाल हाल बताता हूं। आज दिल्ली का बिगड़ा रंग रूप देख कर हरेक दिल्ली वाला और इसे चाहने वाला हैरान परेशान हो रहा है। वह सोचता है कि क्या हो गया उस दिल्ली को जिस की सुंदरता और शान पर सभी को नाज था।  आज शहर के हर मोड़ पर , हर सड़क पर, हर चौराहे पर, हर बड़ी इमारत के सामने कूड़े कर्कट का ढेर है, सफाई कर्मचारी अपनी मांगें मनवाने के लिये झुंड बना कर इस तरह घूम रहे हैं जैसे उन्होंने अपने सिर पर कफन तो नहीं सरकार को अपने कदमों में झुकाने के मकसद का सेहरा बांध रखा हो।  उन का संघर्ष न्यायोचित है। उनके दर्द को समझने और समाधान निकाले जाने की जरूरत है। आज के मंहगाई के जमाने में किसी मुलाजिम को तीन तीन महीने तक वेतन न मिले तो इससे बड़ी कोई ज्यादती नहीं हो सकती। यह दशा केवल सफाई कर्मचारियों की नहीं है अपितु नगर निगमों के डाक्टरों, नर्सों और स्कूलों के टीचरों की भी है। हैरानी इस बात की है कि अलग अलग पार्टियां, नगर निगम और केन्द्र सरकार सभी तो इस मुद्दे को लेकर खुल्लम खुला बिना किसी शर्म और लाज के राजनीति कर रहे हैं। वे इस बदहाली के आलम में भी अपने लिये फूल यानी राजनीतिक फायदा तलाश रहे हैं और कूड़े कचरे के दुर्गंध से सिसक रहे पहाड़ में से गुलाब चुन रहे हैं। उन्हें इस पहाड़ से दिल्ली में बीमारियां फैलने की कोई चिंता नहीं है शायद उन्हें सड़कों पर और मंत्रियों के घरों और दफ्तरों के सामने गर्व से कूड़ा फेंकने का नजारा सुहाना लग रहा है। वे शायद चाहते हैं कि यह हड़ताल और लम्बी चले ताकि ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक रोटियां सेंकी जा सकें। दिल्ली में कूड़े कर्कट के दृश्य अखबारों में हर रोज पहले पन्नों पर छापे जा रहे हैं और इस तरह देश विदेश के तपस्वी मच्छरों को बुलावा दे रहे हैं कि दिल्ली में आ कर नयी से नयी बीमारी फैला कर अपना जलवा साबित करें। इसी तरह सोशल मीडिया पर दिल्ली की ऐसी तस्वीरें वायरल हो रहीं हैं । इससे दिल्ली के गौरव पर ग्रहण लग रहा है फिर भी न तो सियासत करने वालों को और न ही हकूमत करने वालों को रत्ती भर नहीं सूझ रहा कि इन कर्मचारियों की लगातार बढ़ती समस्याओं का हल निकालने की तत्काल जरूरत है। दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार दोनों विज्ञापनों पर न जाने कितनी रकम खर्च कर सकती हैं मगर उन्हें मुलाजिमों का वेतन जारी करने की चिंता नहीं है। हैरानी इस बात की है कि पिछले 15 साल में जब कभी नगर निगम ने रकम जारी करने की मांग की दिल्ली सरकार ने कभी कोई देर नहीं की  और सड़कों पर कूड़े के पहाड़ नहीं बनने दिये। आज के हालात क्या राज्य की नयी सरकार के अभूतपूर्व रवैये का नतीजा तो नहीं। इससे पहले कि हालात नासूर बनें हम यह दुआ करते हैं  कि अदालत इस मुद्दे का स्वत: संज्ञान ले कर सभी पक्षों से तत्काल हल निकालने के निर्देष दे ताकि दिल्ली की आन,बान, शान बिगड़ने न दी जाये।

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