दिल्ली में नारेबाजी



दिल्ली में नारेबाजी- सत पाल
 देश की राजधानी दिल्ली में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में की गयी नारेबाजी को लेकर पूरे देश में जितनी चिंता होनी चाहिये थी , न जाने क्यों, उतनी दिखायी नहीं देती। बहुत अच्छा होता अगर इस मुद्दे को सियासत में सोने के अंडे देने वाली मुर्गी नहीं बनने दिया जाता। हैरानी की बात है कि दिल्ली में ऐसे नारे सुनायी दिये जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। जिस तरह नारे लगाये जा रहे थे, लगता था कि पूरी तैयारी के साथ सब कुछ किया गया होगा। इन लोगों ने जिस की भी शह पर नारे लगाये या फिर किसी पक्ष ने किसी दूसरे पक्ष को मुसीबत में डालने के लिये नारे लगवाये, यह जांच का मुद्दा है और इसकी बारीकी से छानबीन करवायी जानी चाहिये ताकि ऐसी बेशर्म शरारत करने वालों को कानून के हवाले किया जा सके। इससे पहले तो जरूरत यह थी कि समूचा देश और तमाम राजनीतिक पार्टियां इस घटना की जबर्दस्त निंदा करतीं । इसके अलावा देश के सभी लोगों ओर सभी संगठनों से इस तरह की नारेबाजी के हक में या खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं करने की जोरदार अपील करतीं। ऐसा हो जाने से एक चिंगारी को आग बनने से रोका जा सकता था। हमारे देश की अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिये भी यह अच्छा होता कि वे इस घटना के वीडियो न दिखाते, बार बार नहीं दिखाते, खबरों को बड़ा आकार नहीं देते। अगर ऐसा होता तो कम से कम ऐसी घटना किसी दूसरे शहर और किसी दूसरे स्थान पर नहीं होती। ऐसा नहीं हुया तभी तो एक दूसरे पर आरोप लगाये जा रहे हैं, एक दूसरे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं,  अलग अलग पार्टियों के हितैषी संगठन तथा उग्र संगठन सक्रिय हैं, आपस में अदालत और घटना स्थल पर झगड़े हो रहे हैं।  अब माहौल को गर्म कर दिया गया है। ऐस मुद्दे पर धारदार, उकसाऊ बयानों ने भी आग में घी डालने का काम किया है। जहां तक देश विरोधी नारे लगाने की बात है, अगर ऐसा करने वाले स्पष्ट दिखायी दे रहे हैं तो उन पर कानूनी एक्शन लेने की आलोचना करना तो सही नहीं माना जा सकता। जहां तक सवाल इस बात का है कि घटना के पीछे कौन कौन थे और किस किस ने किसी को बदनाम करने के लिये तोड़ मरोड़ कर या सही वीडियो बनाये या देश के अमन, चैन, खुलूस बिगाड़ने के लिये ऐसा किया, उनकी शिनाख्त कर उन पर कार्रवाई बाद में की जा सकती है। खुले आम सामने नारे लगाते दिख रहे लोगों पर एक्शन लिये जाने की आलोचना करने का किसी को हक नहीं दिया जा सकता, भले ही वह कोई नेता हो, मंत्री हो या मानवाधिकार संगठन से जुड़ा कोई सदस्य हो। देश के विरोध में और देश के टुकड़े टुकड़े करने के बारे नें नारे लगाने या ऐसा ही लिखने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कभी नहीं माना जा सकता, इस पर सभी की एक राय होना जरूरी है।
        

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