डर्टी पॉलिटिक्स---सत पाल
       देश की राजधानी दिल्ली की सियासत का म्यार यानि स्तर इतनी तेजी से गिर जायेगा, ऐसा कभी किसी ने सोचा नहीं था। आखिर दिल्ली कहां से कहां तक पहुंच गयी है, यह सब देख कर किसी को विश्वास ही नहीं होता। कहते हैं कि जब किसी को उम्मीद से ज्यादा और समय से पहले बहुत बड़ी कामयाबी मिलती है तो उसका अंदाज, मिजाज, स्वभाव, हाव भाव, काम करने की शैली और प्रतिक्रिया करने के साधारण तरीके में तेजी से परिवर्तन आने लगता है भले ही वह कोई आदमी हो या फिर कोई राजनीतिक पार्टी। आज के दिल्ली के सियासी हालात को देख कर बस इतना कह देना ही काफी है। समझदार लोगों के लिये इतना पर्याप्त है और वे इसी के आधार पर सोच विचार कर सकते हैं तथा अपना निष्कर्ष भी निकाल सकते हैं। राजधानी में दो पक्ष ऐसी अभूतपूर्व जंग में उलझ गये हैं कि अब उन्हें इसके रणक्षेत्र से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा । इस वजह से दिल्ली की न केवल जगहंसाई हो रही है अपितु सरकारी काम काज और विकास पर विपरीत असर भी पड़ रहा है यानि सोचा तो था कि अच्छा होगा, सुधार होगा मगर दिख रहा है कि दिनबदिन बिगाड़ ओर उजाड़ हो रहा है। हर कदम पर टकराव है, सियासत है, आरोप- प्रत्यारोप हैं, कटुता है, शत्रुता है, नफरत है, शरारत है, असहयोग है, अविश्वास है, बयानबाजी है, हवाबाजी है, जनता के साथ किये वायदों के साथ दगाबाजी है, बदमिजाजी है, उलट पलट निर्णय लेने की आजादी है। इन सबसे दिल्ली में डर्टी पॉलिटिक्स का बोलबाला है और कुछ नहीं मालूम कि आगे क्या होने वाला है। इस अजीब जंग से अधिकारी परेशान हैं और दिल्ली से बाहर तैनाती लेने को बेकरार हैं, तैयार हैं। केवल दिल्ली में यह होता है कि एक पद पर दो दो अधिकारी काम करें, एक ही सरकार में किसी नियुक्ति को जंग में शामिल एक पक्ष रद्द करे तो दूसरा बहाल कर दे, अधिकारों की लड़ाई अमर्यादित तरीके से लड़ी जाये, सत्य ओर ईमानदारी की नयी नयी परिभाषाएं गढ़ी जायें, स्थापित संस्थाओं और परंपराओं को खुली चुनौती दी जाये, प्रचंड बहुमत को कुछ भी करने का लाइसेंस मान लिया जाये और जो पहले कभी न हुआ हो वह करने में गर्व महसूस किया जाये। झुग्गी बस्तियों में  किसी मासूम की मौत  और जन सभा में किसी किसान की आत्म हत्या पर भी सियासत होने लगी है। ये जुनून दिल्ली को कहां तक ले जायेगा , भगवान को भी शायद कुछ अंदाजा न हो। और अब तो बात शब्द खराब होने तथा कर्म खराब होने की हो रही है। यह तो डर्टी पॉलिटिक्स का कोई नया अध्याय दिखायी देता है।
       हिमाचल प्रदेश में प्रदर्शनकारियों को लेने के देने पड़ गये। शिमला में नेशनल हेराल्ड मामले में विरोध प्रदर्शन करने गये कांग्रेसजनों में बहुत जोश था और उन्होंने पी एम का पुतला भी जलाया। सब ठीक चल रहा था मगर जब पुतले में लगायी गयी आग प्रदर्शनकारियों तक पहुंच गयी तो कई कार्यकर्त्ता बुरी तरह झुलस गये, अफरा तफरी मच गयी और झुलसे लोगों को अस्पताल ले जाया गया। कहते हैं कि तेज हवा के झोंकों से पुतले में लगी आग की पकड़ में प्रदर्शन करने वाले भी आ गये। आग किसी का लिहाज तो नहीं करती भले ही किसी को लेने के देने न पड़ जायें।
       

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