थाना बना मयखाना

ये दिल्ली है मेरी जान, यहाँ हर दिन बनता है नया फ़साना श्रीमान । देश की राजधानी में खुले आम एक पुलिस थाना रात होते होते मयखाने में बदल गया । जश्न का माहौल था न कि कोई मखौल था । जश्न था एक सब इंस्पेक्टर की तरक्की यानी इंस्पेक्टर बनने और एक सब इंस्पेक्टर की ठाणे में तैनाती का । जश्न ज़ोरदार था क्योंकि यह एक साथ दो खुशिओं का सबब बना हुआ था। खुले आम शराब पार्टी पूरी मौज मस्ती और शोर शराबे के साथ । यह पार्टी किसी दूर दराज के गाँव , जंगल या कसबे में नहीं हो रही थी अपितु राजधानी दिल्ली की एक घनी बसी कालोनी के बीचों बीच स्थित नियमित पुलिस स्टेशन में औपचारिक रूप से टेंट और कनात लगाकर आयोजित की गई थी । इससे लगता है कि हमारी पुलिस कितनी निर्भय हो गई है, कितनी कथित रूप से पारदर्शी हो गई है कि इस पार्टी में इंस्पेक्टर लेवल के आधा दर्जन सेजयादा अधिकारी मौजूद थे । यह हमारे समाज की उचछ्रिनखल्ता का एक नमूना है आख़िर पुलिस भी तो समाज का अभिन्न अंग है । इस पार्टी का खुशनुमा वातावरण इतना मुखर और गुंजायमान था कि आम आदमी के अमन चैन में खलल पड़ने लगा । आख़िर एक संवेदनशील और zimmedaar नागरिक से न रहा गया और उसने पुलिस आयुक्त को एस एम् एस भेज कर इस मामले की शिकायत कर दी। उसने तो शायद अपना फ़र्ज़ निभाया लेकिन इस के बाद ही तो मामले में क्लाइमेक्स
आया । पुलिस आयुक्त ने जिस बड़े एवम वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को जांच के लिए शराब पार्टी के मौके पर भेजा तो वहां के इंस्पेक्टर ने उस वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हाथ में भी झलकता हुआ जाम पकड़ा दिया मगर जाम से जाम नहीं टकराया , बड़ा अधिकारी इस पेशकश पर नहीं मुस्कराया और थाना इंस्पेक्टर घबराया । ऐसे लगा कि खिली धुप में मूसलाधार बारिश आ गई और शांत हवा के बीच सौ किलोमीटर प्रति घटा की रफ़्तार से तूफ़ान आ गया । बस माहौल बदलने लगा और थाना इंस्पेक्टर जो कि नशे में धुत्त था , गिरता हुआ , मुंह छिपाता हुआ अपनी कार
उठाकर गेट और अन्य गाड़ियों से टकराता हुआ नौ दो ग्यारह हो गया । खुशी का जश्न भगदड़ में बदल गया । उस इंसपेक्टर को तो मुअत्तिल कर दिया गया है मगर इसके बाद पुलिस स्टेशन के अंतर्गत कालोनी में ऐसी खुशी की लहर छा गई जैसे उनके लिए दीवाली आ गई हो । आम आदमी इस इंसपेक्टर के व्यव्हार , दुर्व्यवहार , अनाचार ,निरंकुश भ्रष्टाचार से पहले ही तौबा कर रहा था इसलिए उसे इंसपेक्टर का किसी न किसी तरह पकड़ में आना अच्छा लगा। ये दिल्ली है जनाब। यहाँ जिस स्थान पर जिस काम की मनाही होती है वहीं वह काम करना शान माना जाता है। ठाणे में शराब यानी खुलेआम मयखाना कोई सोच नहीं सकता । लोग वहीं लघुशंका करेंगे जहाँ दीवार पर लिखा होगा कि ऐसा नहीं करें । लोग बस के अगले दरवाज़े से चढेंगे क्योंकि वहां लिखा है कि अगले दरवाज़े से चढ़ना मना है । सार्वजानिक स्थानों और karyalyon में नो स्मोकिंग लिखा है , वहीं से धुएँ के छल्ले उठते दिखाई देते हैं । ये तो कुछ उदहारण हैं मगर खुलेआम थाना मयखाना बनने की कोई मिसाल नहीं मिलती । शायद यहीं पर ऐसे आलम का अंत हो जाए, हम तो यही उम्मीद कर सकते हैं ।

1 टिप्पणियाँ:

जब आज समाज रखवाले भी भझक बन जाय तो तब थाना क्यो न बन जाय मयखाना

 

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