एक गुमनाम मौत

आप भी इस मौत पर ज़रूर अपने अपने दो आंसू बहाना चाहेंगे । जी हाँ इस मौत पर दिल्ली के कई पढ़े लिखे लोगों , पढने वालों और दानिशमंदों ने भी जी भर के आंसू बहाने की कोशिश की । इतने आंसू बहाने पर भी दिल्ली में बाढ़ नहीं आई क्योंकि इस मौत के सदमे में हरेक समझदार aआदमी
इतना दुखी था कि उसकी आँख के आँसू जम गए और कुल मिलाकर दो ही आँसू निकले जैसे आंसूओं ने भी इस जुमले पर अमल कर लिया हो कि दो के बाद बस । आख़िर आप जानना चाहेंगे कि यह गुमनाम मौत का माजरा क्या है । जी हाँ यह एक ऐसी मौत है जिसकी ख़बर सुर्खी नहीं बन सकी , एक ऐसी मौत है जिसके बाद कोई जनाजा नहीं निकला और कोई शोक सभा नहीं हुई । दरअसल यह कुदरती मौत नहीं बल्कि दिन दहाड़े का कत्ल है । यह कत्ल है एक ४५ साल तक जवान रहे अहसास का , ४५ साल तक मददगार रहे बाज़ार का, ४५ साल से इल्म का खजाना बाँट रहे रोज़गार का । यह कत्ल हुआ पुरानी दिल्ली के भीड़ भरे इलाके दरिया गंज के उस फुटपाथ पर जहाँ हर इतवार को हजारों हजारों लोग अपनी ज़रूरत कि किताबे खरीदने के लिए आया करते थे । आप शायद समझ गए होंगे कि ट्रैफिक और ला एंड आर्डर कि दुहाई देते हुए दरिया गंज के बुक्स बाज़ार को बिना किसी नोटिस दिए इतिहास का पन्ना बनाते हुए शहीद कर दिया गया । जिस इतवार को यह हादसा हुआ उसे सही मायने में ब्लैक सन्डे भी कहा जा सकता है । उसी दिन दिल्ली के कोने कोने से औए एन सी आर के कई शहरों से किताबों कि तलाश में हजारों नौजवान बच्चे बुजुर्ग पहुँच गए थे । इतना ही नहीं वहां किताबों कि दूकान लगाने वाले भी तो जमा थे । कहते हैं कि यह बाज़ार पिछले ४५ साल से गैर कानूनी तरीके से लगाया जा रहा था । इससे तो यह पता चलता है कि सरकारी अमले को एक्शन के सही वक्त कि तलाश करने में ४५ साल लगते हैं । इस बाज़ार कि शहादत तब हुई जब ये समूचे हिन्दुस्तान औए अस पास के मुल्कों में मशहूर हो गया । इस बाज़ार में सस्ते से सस्ते दाम पर बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी वे किताबे मिल जाती थी जो दिल्ली में कहीं नहीं मिलती थी । ये बाज़ार उन नौजवानों के लिए सचमुच गरीब नवाज़ था जो बड़ी रकम खर्च करके महँगी किताबें खरीद नहीं सकते थे । इस बाज़ार में विदेशी किताबें और रिसाले भी बिकते थे । इतना ही नहीं हर जुबा कि किताबेंरिसाले ग्रन्थ खरीदते लोग यहाँ दिखाई देते थे । इल्म के इस खजाने के समंदर में अपनी ज़रूरत कि तलाश करते यहाँ देश विदेश के लोग दिखाई देते थे । अब ये नज़ारा देखने को नहीं मिलेगा मगर बुक लवर्स के दर्द का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता । क्या इस शहादत पर कोई गांधीगिरी नहीं करेगा और दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस को गुलाब नहीं भेजेगा ।

9 टिप्पणियाँ:

This is a great piece
Nishant

 

Bhai Vaah kya baat hai...Maza aa gaya..kaun sochta hai aajkal kitabo ke baare itni gambhirta se. Great written. Mrig Nayani

 

यह गुमनाम मौत वाकई मे कई लोगो के लिये दुखदयी है
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सही कह रहें है मित्र लेकिन यहीं इस देश की समस्य जिसका हल ढूंढना मुश्किल है

 

bhayee vyang se hee naheen kam chalega .gambheer mamala hai.

agar ye 45 sal se gair kanoonee tha to fir 62 saal kee tathakathit azadee is se bhee badh kar gair kanoonee hai.sarkaren to kamobesh rahee hee hain.

aur is kanoon ko todana ' namak kanoon' ko todne se bhee jyada jarooree hai . kyon na kiya jaye.

chama . transit me hone ke karan nagree me na kah paya .

 

क्यों न आप किसी अच्छी जगह एक बुक स्टाल खुलवा दें ताकि हज़ारों बुक लवर्स अपनी मनपसंद पुस्तकें भी खरिद सके और भीड़्भाड वाली सड़क के फ़ुटपाथ का अतिक्रम भी रोका जा सके!

 

सच ही तो कहा है आपने....जानते सब है ....बोलता कोई नहीं..

 

my sincere thanks to all well wishers, only because of your support,said book bazar at darya ganj has been allowed to continue. regards sat pal

 

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