ये प्रापर्टी डीलर्स

प्रापर्टी बाज़ार में बनावटी , दिखावटी उतार चढाव लाने और सजावटी सपने बेचने वाले प्रापर्टी डीलरों की माया भी अपरम्पार है । इस माया को समझ पाना बहुत कठिन है क्योंकि इस माया का मकसद नकद यानी माया के मायाजाल से ज़्यादा से ज़्यादा माया कब्जे में लेना है । इसके लिए भले ही कितनी गलत बयानी न करनी पड़े और कितने ही पापड़ न बेलने पड़ें । माया तो वैसे सब को आकर्षित करती है मगर सच मानें तो माया के भरमाये सत्य , तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता। कई लोगों का कहना कि जल्दी रिटर्न हासिल करनी हो तो प्रापर्टी का धंधा सबसे बेहतर है मगर प्रापर्टी डीलरों की सुनें तो उनका दर्द भी कुछ हद तक सही प्रतीत होता है। उनका कहना है कि कई कई दिन तक कोई सौदा नहीं होता , होता है तो टूटने का डर रहता है । प्रापर्टी डीलरों के लिए सौदा टूट जाना रिश्ता टूट जाने से कम दुखदायी नहीं होता क्योंकि उनका काम दो पक्षों का मेल कराना है भले ही इस चेष्टा में ब्राडगेज पर स्टैण्डर्ड गेज की और स्टैण्डर्ड गेज पर नैरो गेज की गाड़ी चढा दी जाए या फिर देसी घी के साथ कड़वे तेल का मेल करा दिया जाए। सौदा सिरे चढ़ने के बाद तो बेमेल सौदे वाले को ख़ुद ही भुगतना पड़ता है । यह बात अलग है कि हरेक प्रापर्टी डीलर यह दावा करता है कि उसने कुछ भी छिपाया नहीं है , केवल सौदा कराने के लिए शब्दों की बाजीगरी की है। इन दिनों प्रापर्टी डीलरों का सब से बड़ा दर्द यह है कि उन्हें फैनान्सरों के शिकंजे में कसे होने का कष्ट सता रहा है । तभी तो वे कोशिश करते है कि किसी भी तरह उनके बिछाए जाल में मछली तो फंसे । इसी कशमकश में वे खरीदने वालों को कुछ दाम बताते हैं तो बेचने वालों को कुछ और दाम बताते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रापर्टी डीलर के बिना गुजारा भी तो नहीं। इतनी आबादी है, इतने परिवार हैं जिन्हें मकान की दरकार है आख़िर वे कहाँ जायें । यहाँ प्रापर्टी डीलर ढूंढ़ना मुश्किल नहीं है । ये तो कुकुरमुत्तों की तरह पनप रहें हैं । अब तो ये ख़ुद को प्रापर्टी डीलर या दलाल कहलाना पसंद नहीं करते क्योंकि वे इस्टेट कन्सल्तैंत बन गए हैं। कुछ हद तक पहले भी इज्जतदार थे अब जयादा इज्जतदार बन गए हैं । इज्जतदार हैं क्योंकि वे सिर्फ़ बातों का खाते हैं और अपनी बातों से ही ज़रूरतमंद लोगों का मेल कराते हैं। इतना ही नहीं आप को सपनों में नहीं वास्तविक रूप में आपके सपनों का घर दिलवाते हैं ।

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