फटी जींस का ज़माना

फटी जींस का ज़माना

दिल्ली सचमुच बहुत निराली है । यहाँ भरा हुआ बर्तन भी दिखता खाली है । यहाँ हालात बदलते हैं , रिश्ते बदलते हैं, कायदे क़ानून बदलते हैं , वायदे बदलते हैं । सब कुछ तेज़ी से बदलता है । इससे भी ज्यादा तेज़ी से बदलता है फैशन ।
जिस तेज़ी से नेता दल बदल करने के लिए अपना ईमान बदलते थे उससे भी ज्यादा तेज़ी से फैशन भी बदलने लगा है। फैशन का आलम तो यह है कि एक शायर ने कहा --अब तो ऐसे लिबास बिकते हैं जिनमे मुश्किल ही तन छिपाना है । कभी सुंदर , सजीले
, शर्मीले , ढीले कपड़े पहनने का फैशन हुआ करता था तो आज कसे हुए, फंसे हुए , सटे हुए कपडों का संसार है । कपड़े जितने कम फैशन उतना गर्म , क्या कहने वक्त की रफ़्तार । आगे क्या होगा मेरे यार । फैशन ऐसा कि अँधा भी देखे तो देखता रह जाए , यानी फैशन से महक भी है ,चहक भी है, रौनक भी है , ज़ोर भी है, शोर भी है , ऐसा शोर जिससे दृष्टिहीन को भी महसूस हो जाए कि नए फैशन का ज़माना है । कुछ साल पहले तक घिसी पिटी, बदरंग, जींस पहनने का ज़माना था तो आज फटी जींस का ज़माना है। यानी जींस की खिड़की खोल के रखना ताकि ज़माने की हवा को आने जाने में कोई दिक्कत न हो । एक घर में तो जब कालेज जाती लड़की फटी जींस ले कर आयी तो उसकी माता ने सिलाई मशीन से उसकी जींस को सिल दिया । इस पर लड़की ने अपनी माता को बताया कि यही तो फैशन है । जी हाँ यही फैशन है , यही पैशन है । कहते हैं कि फैशन अँधा है लेकिन फैशन की दौड़ अंधी है । इतना ही नहीं फैशन ने पूरे ज़माने को अँधा बना दिया है कि आज के ज़माने की poshaak ऐसी है कि पता नहीं चलता कि पहनने वाला है या पहनने वाली है । चलो इतना तो हुआ कि लड़के और लड़की का अन्तर ख़त्म कर दिया नए फैशन ने । फैशन न आलू है , न गाजर है , न मूली है, फैशन तो एक सूली है जिस पर chadhne के लिए आज हरेक युवा युवती तैयार है । भले ही इसके बाद जुलूस ही न निकल जाए । जिस फैशन के जुलूस को जितने ज्यादा लोग देखेंगे उससे तो कामयाब माना jayega । ये फैशन शो , ये रैंप, ये shame प्रूफ़ शरणार्थी मसखरों के कैम्प जुलूस नहीं तो क्या है। इन जुलूसों को देखने के लिए संभ्रांत घरानों के लोग आते हैं और अपनी जायज़ औलाद को नाजायज़ poshaak में देख कर तालियाँ बजाते हैं , वीडियो banvate हैं , टी वी पर चलवाते हैं, अखबार में छपवाते हैं । jab itnaa ho jaata hai to fashion ka jadoo khunkhar ban jata hai aur aise parivaron ke sharifjade aur sharifjadiyan bhi chupke se ja kar fati jeans le aati hain aur ghar aa kar kahti hain khulepan ka zamana hai, sabhi bandish tod do, naye fashion ko thikaana do, naye faishion ko thaur do .

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