सब्जी सम्मलेन

बापू के अहिंसक देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित सब्जी सम्मलेन में इस बात पर चर्चा होनी थी कि सबसे अधिक चाकू और छुरियां हर रोज़ सब्जियों पर ही चलते हैं। सम्मलेन में लगभग हरेक सब्जी हिस्सा लेने पहुँची। सबसे पहले सम्मलेन की अध्यक्षता करने का दायित्व किस सब्जी पर सौंपा जाए , इस पर चर्चा हुई। इसे देख कर लगा कि सब्जियों में भी नेताओं की तरह प्रमुख नेत्रत्व सँभालने की व्यग्र इच्छा है। सम्मलेन में मुख्य विषय पर चर्चा से पहले ही , अध्यक्षता के मुद्दे पर गर्मागर्म बहस और एक, दूसरी सब्जी की आलोचना और आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा ।अध्यक्ष का चुनाव र करना सचमुच इस्राइल और फिलस्तीन समस्या का समाधान जैसा अहम मुद्दा बन गया। सबसे पहले आलू ने अध्यक्षता के लिए अपना दावा पेश किया तो हर दिशा से आवाजें आने लगी कि ये आलू क्या अध्यक्षता करेगा, जिसका अपना कोई अलग अस्तित्व नहीं है। आलू तो हरेक सब्जी के साथ मिल कर ही अपनी पहचान बनाता है। जब सीताफल का दावा आया तो आपत्ति उठी कि इसका अपना नामn भी नहीं है। सीता के नाम पर ये सब्जी कैसे अध्यक्षता कर सकती है , क्या कोई अनाम या किसी नाम की पिछलग्गू सब्जी भी सदारत कर सकती है।भिन्डी यानि लेडी फिंगर के दावे पर भी सभी सब्जियों ने पानी फेर दिया और कहा कि लेडी की नजाकत वाली सब्जी अध्यक्षता के दायित्व का भार नहीं संभाल सकती। प्याज़ ने भी अपना दावा पेश करते हुए कहा कि उसमें तो सरकारें बदलने तक की ताकत है मगर बाकी सब्जियों ने कहा कि हमें प्याज़ को सदारत दे कर अपनी अपनी आँखों में आँसू की धारा नहीं लानी। इस प्रकार अश्रुधार और आँखों में जलन के सूत्रधार का दावा भी खारिज हो गया। प्याज़ भी मायूस दिखाई दिया। टिंडे के दावे को तो यह कह कर रद्द कर दिया गया कि टिंडा सा छोटा सा टिंडा क्या सदारत कर सकेगा। बैंगन भी दावा करने में पीछे नहीं रहा मगर सभी सब्जियां बोली कि थाली के बैंगन की क्या औकात कि वह सब्जी सम्मलेन की अध्यक्षता कर सके। हरी मिर्च के दावे को इस प्रकार बेदम कर दिया गया कि यह कोई अलग से सब्जी नहीं है। आम के दावे को इसलिए खारिज क्या गया कि यह सब्जी नहीं अपितु फलों का राजा है ।कद्दू और घीये के दावे को तो सिरे से ही सब्जियों ने समाप्त कर दिया और कहा कि अध्यक्षता के लिए कम से कम छवि तो होनी चाहिए । जब छवि की बात हुई तो पालक ने दावा पेश कर दिया और कहा कि हर तरफ़ हरियाली और खुशहाली का माहौल होगा यदि उसे अध्यक्षता सौंप दी जाए तो। इस पर कहा गया कि पालक के अध्यक्ष बनने पर तो हरियाली के अंधे को भी हरा हरा दिखे गा। इसलिए पालक को तो अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता। नीम्बू के दावे पर तो सभी सब्जियां हंसने लगीं और कहा कि नीम्बू का तो तब तक असर रहेगा जब तक उसमें रस होगा , उसके बाद तो वह बेअसर हो जाएगा। जिमीकंद और कटहल के दावे पर कहा गया कि जाओ ,जाओ पहले शीशे में अपनी शक्ल तो देख लो। अब दावा पेश करने की टमाटर की बारी थी। टमाटर के दावे पर तो सभी सब्जियां व्यंग्य करने लगीं और कहा , अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठते ही यह दब जाएगा और इससे छींटे निकलने लगेंगे। बहरहाल सभी सब्जियों के दावों की हवा फुर्र कर दी गई, बहुत कोहराम हुआ और सम्मलेन शरू भी नहीं हो सका । इसे देख कर शान्ति की प्रतीक मूली बोली , बहनों और भाईयो यदि इसी प्रकार लड़ते रहे तो मुख्य मुद्दे पर चर्चा कैसे करोगे, यूँ ही चाकुओं के वार सहते रहोगे ,कराहते रहोगे। यदि इससे बचना है तो अपनी जड़ों को मज़बूत करो , यानि अपनी अपनी ज़मीन पक्की करो ताकि हमें कोई उखाड़ न सके , जब हम उखरेंगे नहीं तो चाकुओं की मार से भी बच जायेंगे। इस पर सभी ने कहा , वाह वाह ये किस खेत की मूली है, मगर इसकी बात नहीं मामूली है। इस पर सम्मलेन में शान्ति हुई और अध्यक्ष चुनने का मुद्दा अगले सम्मलेन के लिए स्थगित कर दिया गया और हर सम्मलेन की परम्परा के अनुसार एक समिति का गठन किया गया और प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई सम्मलेन कामयाब रहा ।

1 टिप्पणियाँ:

oh this is is excellent. ha ha ha. you are the best.regards Nishant

 

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