दिल्ली,देश,दुनिया---सत पाल
वाह पानी
कहते हैं कि पानी यानी जल है तो जीवन है, पानी है तो जिंदगी की रवानी है, पानी है तो रौनक है, पानी है तो सियासत है, पानी है तो अगली बार की आस है, पानी है तो जीत का उल्लास है, पानी है तो जनता का विश्वास है। 2013 से अब तक दिल्ली की राजनीति या यूं कहिये सफलता की राजनीति का आधार पानी बना हुआ है। पानी ने दिल्ली की सियासत के दायरे का विस्तार किया है । पहले दो दलों का परिवार था अब तीन दलों का परिवार है। दिल्ली की नयी पार्टी जिसका उदय करप्शन की आह और दर्द से हुआ था आखिर इस पार्टी ने  पानी को मुद्दा बना कर दो स्थापित पार्टियों को इतनी बेदर्दी से हराया कि वह दोनों पूरे देश के सामने पानी पानी हो गयीं। इसे कहते हैं दो बूंद के बिना पानी में डूबो देना। डुबाना भी ऐसे कि छटपटाते रहो मगर निकल न सको। इस पार्टी ने जैसे समझा दिया हो कि अब सियासत की लड़ाई का मैदान मंच और प्रपंच नहीं अपितु जल स्तर ही मैदान है। पानी का असर वास्तविक होता है न कि फानी यानि अवास्तविक और पानी कद बढ़ाने, संख्या बल बढ़ाने और अपना वजूद टिकाऊ बनाने में मददगार रहा है। पानी ही के बल पर पहली बार इस पार्टी को 18 सीट मिलीं तो दूसरी बार में 67 सीटों में पानी ने जीत दिलवाई। तभी तो इस पार्टी के टिकाऊ कन्वीनर को पांच साल के कार्यकाल के बीचों बीच पानी की याद आयी और पानी के महकमे को दिल के करीब, अपना नसीब समझने लगे। यह बात अलग है कि बीते ढाई साल तक उन्होंने सभी महकमों से एकतरफा तलाक बरकरार रखा। अचानक उन्हें लगा कि हमने दिल्ली के ज्यादा से ज्यादा परिवारों को मुफ्त पानी पिला कर उनकी बरसों तथा सदियों की प्यास बुझाई है। इतना ही नहीं बहुत लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि उनका  पानी का बिल जीरो आता है।  यह पानी में ही दम है कि वह किसी को हीरो बना देता है तो किसी को जीरो भले ही वो बिल हो या कोई पुरानी से पुरानी पार्टी। दिल्ली वालों को हैरानी हो रही है कि जिस वजीरे आला ने ढाई साल तक किसी फाइल से मुहब्बत नहीं कि वह किस तरह उसे पलट पलट कर, निहार निहार कर, बार बार, लगातार , कई कई बार देखेगा और फिर उस पर कुछ लिख कर अपने प्यार के करार को स्वीकार करेगा। कुछ  भी हो दिल्ली आगे बढ़ेगी।
फेरबदल
बहुत शोर सुनते थे मगर आवाज तक नहीं आई और कई दिनों की चर्चा बिना किसी हलचल के शांत हो गयी। जिनके नाम चल रहे थे वे फेरबदल की मधम रोशनी में गुमनाम हो गये। न जाने कितने दिन पत्रकार नये नये नाम  कहां कहां से निकाल कर लाते रहे। इतना ही नहीं पटना और चेन्नई में आस पालते रहे मगर नौकरशाह तथा आमची पुलिस के शंहंशाह बाजी मार कर कुर्सियों पर जम गये। नौकरशाह तो अपने सेवाकाल में भी राज करते हैं। उन्हें फिर से राज देने के पीछे क्या राज हो सकता है। राज को राज रहने दो।
प्यार किया तो
जापान की राजकुमारी ने अपने प्यार की खातिर शाही जलवे और रुतबे की कुर्बानी दे दी। राजकुमारी माको ने एक आम आदमी कोमुरो से सगाई की तो राजकुमारी पर शाही परिवार की बिजली गिर गयी। प्यार में रुतबे नहीं मिलते दिल मिलते हैं। जब प्यार किया तो डरना क्या।

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