दिल्ली,देश, दुनिया--- सत पाल
अहंकार
अहंकार, एक ऐसा पौधा है, जो हर मौसम में हरा है। अहंकार , सार्वभौमिक शब्द कोश का, अजर, अमर शब्द है, जो न मिटेगा, न मरा है। अहंकारी को  महसूस नहीं होता कि वह अहंकार करता है अपितु उसे अपने ऐसे व्यवहार से सुख की अनुभूति मिलती है और उसे ऐसा करने में आनंद आता है। अहंकारी को कोई भले तानाशाह कहे, निरंकुश कहे या कुछ और संज्ञा दे उसे कुछ  फर्क नहीं पड़ता। वह अपनी धुन का पक्का होता है और उसे किसी का हाहाकार, दुख, दर्दभरी पुकार सुनाई नहीं देती। उसके कान तो केवल तारीफ सुनने और बार,बार, लगातार, हर बार केवल आस्था तथा विश्वास व्यक्त करने वाले लोगों की आवाज सुनने के लिये होते हैं। क्रांति के पांच साल के आयोजन में कवि स्वभाव के एक नेता ने अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा को या तो सोचे समझे या फिर अनजाने में संकेत के तौर पर अहंकार से भरा कह दिया। यह  अच्छा हुआ कि इस तंज का जवाब पार्टी के सबसे बड़े नेता यानि सर्वेसर्वा ने नहीं दिया मगर  बड़े नेता के एक वफादार भरोसेमंद नेता से जवाब दिये रहा नहीं गया। अगर गहराई से सोचें,  हरेक पार्टी में सबसे बड़े नेता को तानाशाह और अहंकारी कहा जाता रहा है और अब  भी कहते हैं। ये तो बड़े पद पर रहते रहते आ ही जाता है। यह अहंकार बिल्कुल उसी तरह आता है जैसे किसी बेहद हसीन को अपने आप नाज नखरे आ जाते है। खुदा जब हुस्न देता है नजाकत आ ही जाती है। हम बात कर रहे थे अहंकार की, ये जब आता है बिना बताये आता है, न तो कोई धमाका करता है और न ही किसी तरह का शोर शराबा। आते आते जिसे आता है उसका अंदाज, मिजाज ,लहजा,दर्जा  नजरिया, प्रतिक्रिया, हाव भाव, स्वभाव बदलता महसूस होता है और उसे  बदलाव रास आने लगता है और इसका आनंद आने लगता है। उसे अपने बारे में तानाशाह कहा जाना बुरा  नहीं लगता। ये बीमारी केवल नेताओं में नहीं होती ,अफसरों  में होती है और नवाबों, राजाओं, महाराजाओं में भी हुआ करती है। किसी के बारे में अहंकारी और तानाशाह अक्सर वही लोग कहते हैं जो खुद को वंचित महसूस करते हैं या फिर कहते हैं कि हमारे साथ छलावा हो रहा है। अगर राजनीतिक दलों की बात करें तो हर एक पार्टी में अहंकार और तानाशाह का जुमला सुनाई देता है क्योंकि हर पार्टी में बड़ी संख्या में वंचित  होते हैं। सुख सुविधा वाले पद  कम होते हैं और देने के लिये तो अपनों को या वफादारों को मिलते हैं। न तो बांटने वाला दृष्टिबाधित होता है और न ही ये पद रेवड़ियों की तरह बांटे जाते हैं। ये अहंकार अंग्रेजों के समय भी था और 1947 के बाद अब तक जारी है, जारी रहेगा। आखिर मानना ही होगा जब तक संसार है , तब तक अहंकार है।

एहतियात
हरियाणा में रविवार को एहतियात का दिन था क्योंकि दूध का जला छाछ को फूंक फूंक कर पीता है। रोहतक और उससे कुछ दूरी पर जींद में दो अलग अलग रैलियां हुईं।  एक दमदार जाति के रिजर्वेशन के लिये और दूसरी इसका अंदरखाने विऱोध कर रहे तथा  खफा रही जातियों के आऱक्षण की मांग को ले कर।  भगवा पार्टी के सासंद और जींद रैली बुलाने वाले सांसद नया दल बना सकते हैं।

भिखारी हूं गरीब नहीं
चीन में एक आदमी ने भिखारी को गरीब कहते हुये भीख दी तो वह चिल्लाया,  भिखारी हूं ये मेरा पेशा है मगर मैं गरीब नहीं।   रात में नोटों को बिस्तर बना कर सोता हूं और मेरा परिवार स्विटजरलैंड  रहता है।  

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