दिल्ली,देश,दुनिया-सत पाल
शोर
रिकार्डिड संगीत ज्यादा शोर करता है या लाइव संगीत, हो सकता है यह सबसे बड़ा प्रश्न हो मगर दिल्ली सरकार ने एक दिन इसका कुछ जवाब दिया और अगले दिन पहले जवाब से विपरीत जवाब पेश किया। शराब सर्व करने वाले रेस्तरां, पब, होटलों और क्लबों में आने वालों के लिये म्यूजिक पेश  करना इसलिये जरूरी हो गया है क्योंकि दो घंटे तक लगातार लाल परी को सामने रख कर उसे अपने होंठों और गले का प्यार देने के बाद रिंदों के मन में मस्ती प्रदर्शित करने की तमन्ना बढ़ जाती है और उनके कदम और उनका मिजाज लड़खड़ाने लगता है। ऐसे में उनमें लाउड म्यूजिक के धमाके में इसका इजहार करने का ज्वार उबलने लगता है। पीने वालों की असलियत और उनकी वाजिब, गैर वाजिब हरकतें देखने लायक बन जाती हैं। यह तो सत्य है कि संगीत यानि मासूकी को मारा नहीं जा सकता। एक मुगल बादशाह को मासूकी से नफरत थी और वह नहीं चाहता था कि इसकी आवाज सुनाई दे। बादशाह औरंगजेब ने मासूकी को जमीन से बहुत नीचे दफन करा दिया  ताकि ये कभी सामने न आ सके। मगर संगीत आज भी जिंदा है और जिंदा रहेगा, जब तक सूरज चांद रहेगा, मासूकी का इकबाल रहेगा। यह संतोष का सबब है कि सरकार ने मासूकी के वजूद पर कोई सवाल नहीं किया मगर उससे होने वाले शोर को मुद्दा बनाया। शायद उसका मानना था कि रिकार्डिड संगीत से ज्यादा शोर होता है मगर लाइव संगीत से कम। हमारा मानना है कि दोनों तरह के संगीत से लगभग बराबर शोर होता है। अगर दिल्ली सरकार ने इस शोर से जनता को बचाने के लिये फैसले लिये तो इसकी तारीफ की जा सकती है। और अगर पियक्कड़ जमात के हुड़दंग  कम करने के लिये रिकार्डिड संगीत नहीं बजाने की बात की तो उसे समझ लेना चाहिये कि हुड़दंग उनके बस में नहीं होता । ऐसे मदिरालय रिहायशी कालोनियों के बीचोंबीच भी हैं और वहां के निवासियों की रातें डिस्टर्ब होती हैं। अगर इसे देखते हुये सरकार ने फैसला लिया तो उसे रेस्तरां के खुले इलाके में संगीत बजाने पर रोक लगानी होगी और बंद ह़ॉल में संगीत बजता है तो उस हॉल को सांउड प्रूफ बनवाना होगा ताकि स्थानीय निवासियों के सकूं और उनकी नींद में खलल न हो।
बंदर की याद में
रायबरेली के एक दंपत्ति के संतान नहीं थी और उसने प्रताड़ित किये जा रहे एक बंदर को देखा और उसे खरीद कर अपनी संतान की तरह पाला तथा उसे अपनी जान से बढ़ कर प्यार दिया । अपनी सारी जायदाद बंदर यानि चुनमुन के नाम कर दी। बंदर 15 वर्ष के बाद संसार से महाप्रयाण कर गया। दंपत्ति को चुनमुन की याद सताने लगी। उन्होंने अपने  मंदिर में बाल हनुमान के रूप में चुनमुन की सोने की मूर्ति लगवाई और शहर में बेहतरीन सुविधा संपन्न चुनमुन अस्पताल बना कर जनता को समर्पित कर दिया। किसी को अपना बनाने पर उससे कितना लगाव हो जाता है। इससे उत्तम उदाहरण तलाशना कठिन होगा।
फुटबाल का जुनून
किसा भी खेल की दीवानगी में कोई क्या नहीं कर सकता। तुर्की में फुटबाल के मैच के सभी टिकट बिक गये और एक फुटबाल प्रेमी को निराश होना पड़ा। उसने टिकट जुटाने की लाख कोशिशें कीं मगर कोई नतीजा नहीं मिला। उसने किसी भी तरह मैच देखने की ठान ली। उसने एक क्रेन किराये पर ली औऱ उस पर चढ़ के सारा मैच देखा। वह तो मैच का आनंद ले रहा था मगर स्टेडियम में बैठे तमाम दर्शक बार बार केवल उस फुटबाल प्रेमी की दीवानगी देख रहे थे।



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