दिल्ली,देश,दुनिया- सत पाल
मरे 300
देश की राजधानी दिल्ली में रविवार को आये आंधी तूफान में कुछ समय में एक साथ 300 मरे यानि 300 पेड़ों की जीवन लीला समाप्त हो गयी। आंधी तूफान में दो लोगों की जान गयी और वाहनों और कच्चे निर्माण तबाह हो गये। जान के नुकसान की भरपाई कोई नहीं कर सकता जबकि वाहनों और निर्माण के नुकसान की भरपाई कुछ महीनों में की जा सकती है। पेड़ की मौत पर्यावरण तथा मानव जीवन के लिये खतरे की घंटी होती है और इस नुकसान की भरपाई न तो पल में, न ही आज और कल में की जा सकती है। इस नुकसान को दूर करने में कई साल लगते हैं । दिल्ली में 15 साल चली सरकार ने पेड़  गिराये जाने को बड़ा जुर्म मान कर ऐसा कानून बनाया जिसमें आर्थिक दंड, सजा, और विकास योजनाओं के लिये पेड़ काटने की मंजूरी ले कर एक पेड़ काटने पर दस पेड़ लगाने का प्रवधान किया गया, पेड़ काटने की मंजूरी लेना कठिन और जटिल  है क्योंकि मंजूरी केवल उप राज्यपाल दे सकते हैं। पेड़ लगाने आसान हैं, उन्हें बड़ा करना, सदियों के लिये खड़ा करना बहुत मुश्किल होता है। एक कवि ने पेड़ काटने को कत्ल बताते हुये कविता लिखी और कहा--- खून के बदले खून, यानि जंगल का कानून, जंगल से अधिक सभ्यता में चलता है। आदमी के कत्ल पर मिलती मौत की सजा, पेड़ का कत्ल कर आदमी बच निकलता है। रविवार को जिन पेड़ों की जीवन लीला खत्म हुयी उस का कारण प्राकृतिक आपदा थी। ऐसी आपदा पर सरकार सहायता देती है। कई बार तेजी से बड़ी सहायता जारी करने के पीछे वोट की अभिलाषा के तराजू को आधार बनाया जाता है। पेड़ों के दिवंगत होने पर सहायता का प्रबंध शायद वोट की आभिलाषा के दायरे में नहीं माना जाता। बहुमत की सरकार के पास जनहित के बेतहाशा काम होते हैं और ये काम शायद प्राथमिकता में न आये। लेकिन 300 पेड़ों के न रहने से सजग दिल्लीवासियों को चिंता होना स्वाभाविक है। इन स्वर्गीय पेड़ों से हुई अपूरणीय क्षति की भरपाई केवल 3 हजार से अधिक पेड़ लगा कर और उनका परिवार के सदस्य की तरह लालन पालन कर की जी सकती है। उम्मीद है दिल्ली जागेगी।
पिटते रहे
अक्सर कहा जाता है कि आदमी औरतों को पीटते हैं। इसे अपराध मान कर घरेलू हिंसा रोकथाम कानून में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया । इस कानून ने घरेलू हिंसा से बचाने में औरतों को सहारा दिया मगर ऐसी घटनायें लगातार होती हैं। खबर है कि देश के एक प्रांत में हर महीने पत्नियों द्वारा पतियों की पिटाई के 200 मामले हो रहे हैं। दिल्ली में कभी पत्नी पीड़ित संघ सक्रिय था, आज उसका कोई नामलेवा नहीं बचा। सरकार ने दुष्कर्म के मामले में लिंग समानता का कानून बनाने की शुरुआत की है। अगर पतियों की पिटाई के मामले सही हैं तो सरकार को घरेलू हिंसा कानून को लिंग समानता का आधार देने पर विचार करना होगा।
73 साल साथ साथ
भारत में वैवाहिक जीवन के 50 साल पूरे होने को अहम मानते हैं। किस्मत वालों को यह सौभाग्य नसीब होता है। ऐसे दम्पति इसे धूमधाम से मनाते हैं। अमरीका में विवाह टूटना आम बात है, वहां अगर किसी का वैवाहिक जीवन 73 साल चल जाये तो अचरज होता है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश सीनियर की पत्नी बारबारा का जब देहांत हुया तो उनके वैवाहिक जीवन को 73 साल हो गये थे। 73 साल साथ साथ, गौरव का सबब है।

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