ताजा गजल

मेरा देश बंट रहा है, मार काट से ।
सियासत पनप रही,ठाठ बाठ से ।।

बिदक रही भीड़, हिंसा हुई बुलंद,
भारत करें हैं बंद, ये भेड़ चाल से।

रेल,बस के जलने का दर्द अनसुना
बैठे हैं नेता, कान ‌में सीसा डाल के।


बेखौफ शौक से तोड़ फोड़ कर रहे 
बेलगाम हो रहे वो बिगड़े दिमाग से ।

हाथ में पत्थर, दिल नफरत से लबरेज 
चिंगारी बिखर रही,बेतुके बोलचाल से।

मुद्दे बरस रहे हैं, सच बरसात की तरह
शोलों की फैक्ट्री है चलना संभाल के।

सवाल बन रहे सभी तबाही के बवाल
फूट के सबब न बनें, बचें जंजाल से।

अमन ,खुलुस अब गायब कहीं न हों
कोशिश करें पुरजोर सब देखभाल के।


यह मेरी मौलिक और अप्रकाशित रचना है। मेरी दो फोटो संलग्न हैं।

सत पाल,
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